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Thursday, February 27, 2014

बिल्वपत्र





भगवान शंकर को सर्वाधिक प्रिय बिल्वपत्र है | शिव को बिल्वपत्र अर्पित करने का मंत्र यह है -

 ॐ नमो बिल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे चवरूथिने च नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुभयाम चा हनन्याय च नमो धृष्णवे ||

बिल्वपत्र चढाते समय यह प्रर्थना की जानी चाहिए-

काशीवास निवासी च कालभैरव पूजनम् | 
प्रयागे माघमासे च बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ||

दर्शनम् बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम् |
अघोर पाप संहारम् बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ||

त्रिदलं त्रिगुणाकारम् त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम् |
त्रिजन्म पापसंहारम् बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ||

अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिवशंकरम् |
कोटि कन्या महादानं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ||

गृहाण बिलवापत्राणि सपुष्पाणि महेश्वर |
सुगंधीनि भवानीश्च बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ||

बिल्वपत्र छ: मास तक बासी नहीं माना जाता। लंबे समय शिवलिंग पर एक बिल्वपत्र धोकर पुन: चढ़ाया जा सकता है।


आयुर्वेद के अनुसार बिल्ववृक्ष के सात पत्ते प्रतिदिन खाकर थोड़ा पानी पीने से स्वप्न दोष की बीमारी से छुटकारा मिलता है।


शिवलिंग पर प्रतिदिन बिल्वपत्र चढ़ाने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं |


शास्त्रों में बताया गया है जिन स्थानों पर बिल्ववृक्ष हैं वह स्थान काशी तीर्थ के समान पूजनीय और पवित्र है। ऐसी जगह जाने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।


बिल्वपत्र एक उत्तम औशद्धि है | यह वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है। ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं। इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं। चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है।


ध्यान रखें इन कुछ तिथियों पर बिल्वपत्र नहीं तोडऩा चाहिए। ये तिथियां हैं चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, द्वादशी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रान्ति और सोमवार तथा प्रतिदिन दोपहर के बाद बिल्वपत्र नहीं तोडऩा चाहिए। ऐसा करने पर पत्तियां तोडऩे वाला व्यक्ति पाप का भागी बनता है।

  
शास्त्रों के अनुसार बिल्व का वृक्ष उत्तर-पश्चिम में हो तो यश बढ़ता है, उत्तर-दक्षिण में हो तो सुख शांति बढ़ती है और बीच में हो तो मधुर जीवन बनता है।


घर में बिल्ववृक्ष लगाने से परिवार के सभी सदस्य कई प्रकार के पापों के प्रभाव से मुक्त हो जाते हैं। इस वृक्ष के प्रभाव से सभी सदस्य यशस्वी होते हैं, समाज में मान-सम्मान मिलता है। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है।

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