एक साधक के लिए साधना में सफलता प्राप्त करना
उसका एक मात्र लक्ष्य होता है, उसके बिना तो
जीवन जीवन ही नहीं कहा जा सकता | पर क्या
साधारण रूप से केवल कुछ देर मंत्र जप कर लेने को
ही साधना कहते हैं ? क्या ईष्ट दर्शन इतना सहज है
कि नित्य पापों में रत होते हुए भी भगवान के
दर्शन कर सकते हैं ?
कैसा होना चाहिए एक साधक का जीवन, आईये इतिहास के
इन महान साधकों से सीखें...
गुरु साधना पक्ष में सबसे आवश्यक कड़ी है, जिनके बिना किसी भी साधना में सफलता नहीं
पाई जा सकती | “गुरु बिन ज्ञान न होवे, कोटि जतन कीजै..”, यदि हम करोड़ मंत्र जाप
भी करें, तो भी भगवती जगदम्बा के दर्शन कर पाना संभव नहीं है, अगर जीवन में गुरु
नहीं हैं तो | परन्तु गुरु भी तो केवल मार्गदर्शन ही कर सकते हैं, प्रयत्न तो साधक
को ही करना होता है, अगर शुरुआत में थोड़ी दिक्कतें आती भी हैं तो विश्वास छोड़
देना, या गुरु को दोष देना.. क्या उचित है ? और क्या ऐसे साधारण जीवन जीने को जीना
कहते हैं, जो कि केवल जिन्दा रहना और मर जाना है, क्या ऐसा जीवन, जीवन कहलाता है
...? नहीं ! जीवन तो अपने ईष्ट से साक्षात्कार करने के बाद ही पूर्ण कहला सकता है
| और यह सब अगर सम्भव है, तो केवल गुरु कृपा से | अपने गुरु के प्रति अटूट विश्वास
से.. सेवा से.. और समर्पण से...!
रामकृष्ण परमहंस माँ काली के अनन्य उपासक थे | आठ वर्ष तक इन्होंने नित्य अथक
प्रयत्न करके १०१ माला मंत्र माँ के मंदिर में नित्य क्रम से की, परन्तु इन्हें काली
के दर्शन नहीं हुए .. रामकृष्ण जिस मंत्र का जप कर रहे थे वह था- “क्रीं क्रीं क्रीं
ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा”,
तब एक अवधूत ने उन्हें प्रत्यक्ष काली बीज “क्रूं क्रूं क्रूं” लगाकर जप करने को
बोला | उन्होंने इसी प्रकार से जप किया, और अगले चौदह दिनों में ही काली उनके
सामने प्रकट हो गयीं और उनकी मनोंवांछित इच्छा पूर्ण हुई | बाद में तो रामकृष्ण
माँ को स्वयं अपने हाथों से भोग का कौर देते थे और माँ प्यार से ग्रहण भी करतीं
थीं, यह उनकी कठोर साधना का ही फल था |
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तारा महाविद्या उन श्रेष्ठ साधनाओं में से एक है जो धन प्राप्ति में, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए और वाक् सिद्धि के लिए अपने आप में अद्वितीय समझी जाती है | महाराष्ट्र के पर्णीपुर निवासी आत्मारामजी माँ तारा के गृहस्थ साधक थे | अपने गुरु के कहने पर पांच लाख मन्त्रों का अनुष्ठान इन्होंने संपन्न किया, परन्तु किसी प्रकार की कोई अनुभूति इन्हें नहीं हुई..
इतना करने के बाद भी जब उन्हें कुछ नहीं मिला, तब अपने गुरु, तारा मंत्र और महाविद्या
साधना पर संदेह करते हुए, बहुत ही कठोर भाषा में उन्होंने गुरु को पत्र लिखकर भेज
दिया !
एक दिन वहाँ चलते-चलते एक उच्च कोटि के योगी पहुंचे | वे योगी वास्तव में ही
विद्वान् तो थे ही, तत्त्व ज्ञानी भी थे | जब चर्चा हुई तो उन्होंने कहा कि आत्माराम,
माँ तारा की साधना यूँ बीच में ही मत छोड़ दो | गुरु और साधना के प्रति अविश्वास मन
में लाना घोर पाप है ! पूर्व जन्म में किये गये पापों के कारण तुम्हें सफलता नहीं
मिल पा रही है, जब वे पाप समाप्त हो जायेंगे तब अवश्य तुम्हें सफलता मिल जाएगी |
मैं योग बल से देख रहा हूँ, सात लाख मंत्र जप करने पर तुम्हारे पूर्व-जन्म के पाप काटेंगे,
इसके बाद सवा लाख और मंत्र जपने से निश्चय ही तुम्हें सफलता मिल जाएगी |
आत्माराम जी ने ऐसा ही किया | सात लाख मंत्र जाप के बाद उन्हें कुछ अनुभूतियाँ
होने लगी, उसके बाद जब उन्होंने सवा लाख तारा मंत्र जप किया तो उन्हें माँ तारा के
भव्य दर्शन प्राप्त हुए | आज वे भारतवर्ष में माँ तारा के सिद्ध साधक के रूप में विद्यमान
हैं |
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मध्य
प्रदेश के त्रिभुनेश्वर सिंह को बगला साधना में रूचि थी | बचपन में ही इन्होंने बगला
साधना को सिद्ध करने का संकल्प ले लिया था, परन्तु ४२ वर्ष की आयु प्राप्त करने के
बावजूद भी वे बगला साधना सिद्ध नहीं कर सके | जब वे एक दिन अत्यधिक खिन्न हो गये,
तब उन्होंने क्रोध में बगला चित्र को फाड़कर यन्त्र सहित नदी में प्रवाहित कर दिया
| फिर एक दिन संयोग से दतिया के योगी पूर्णानन्द उन्हें मिले, उन्होंने कहा- मेरे
कहने पर पाँच लाख गुरु मंत्र संपन्न कर गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करें, और फिर
चौदह दिन तक निराहार रह कर इसी मंत्र से बगला साधना संपन्न करें | इन चौदह दिनों
में किसी भी स्त्री का मुँह न देखें, तभी सिद्धि मिलेगी |
त्रिभुनेश्वर सिंह ने इसी प्रकार से साधना संपन्न की.. और जो साधना ४२ सालों में
भी वो सिद्ध न कर सके, वह पहली ही बार में उनको सिद्ध हो गयी ! ये गुरु मंत्र के
पाँच लाख के जप का ही परिणाम तो था..| आज वे अमरकंटक में बगला के अधिकारी विद्वान्
के रूप में जाने जाते हैं |
साधक को कभी भी प्राथमिक असफलताओं से विचलित नहीं हो जाना चाहिए | रास्ते में बाधाएं
तो आती ही हैं, परन्तु हिम्मत हार कर बैठ जाने वाले व्यक्ति को कभी भी सफलता नहीं
मिलती | जो गुरु के प्रति पूर्ण लीन होके सतत प्रयासरत रहता है, वही साधना के क्षेत्र
में अपना नाम अमर करता है |
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जीवन में तुम्हें एक क्षण भी रुकना नहीं है, निरंतर आगे बहना है क्यूंकि जो साहसी होते हैं, जो दृढ़ निश्चयी होते हैं जिनके प्राणों में गुरुत्व का अंश होता है, वही आगे बढ़ सकता है.. और इस आगे बढ़ने में जो आनंद है, जो तृप्ति है, वह जीवन का सौभाग्य है |
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मैंने योगी जीवन भी जिया है, संन्यास जीवन भी जिया है .. और बहुत कट्टरता के साथ जिया है ! दृढ़ता के साथ जिया है. और जो सन्यासी दो सेकंड भी देर करता, आलस्य करता, तो उसे एक लात मारता था तो बीस फुट दूर जाकर के गिरता था...., और दो-चार हड्डियाँ तो चरमरा जाति थीं... गॉरंटी के साथ में.. इतनी हिम्मत इतनी क्षमता उस शिष्य में होनी चाहिये .. मैं बरदाश्त नहीं कर सकता था कि २ सेकंड भी देर वो करे, पर आपको मैं कुछ कह भी नहीं सकता क्योंकि आप गृहस्थ हैं... और..... घोर गृहस्थ हैं !
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दीक्षा का अर्थ, मैंने आपसे कहा कि बस.. एक
क्षण... आँख से आँख लगी.. कि दीक्षा हुई | एक क्षण ही बहुत होता है ! सिर्फ चार फेरे ही बहुत होते हैं, कोई लम्बा-चौड़ा चक्कर नहीं.. ये
फालतू बाराती-वराती से तो कोई मतलब ही नहीं है, ये तो ठीक है, कि बस होना चाहिए ...
मगर मूल अर्थ तो ये है कि लड़का-लड़की अग्नि के चार फेरे खाए, पंडित ने
मन्त्रों को पढ़ा.. और बस घर की सारी चाभी उसके हाँथों में दे दी कि ले ! ध्यान
रख... एक अनजान लड़की ! जिसको आप जानते तक नहीं उसको अपने घर की चाभी दे दी, करोड़ों
की संपत्ति उसके हाँथ में दे दी, इसलिए कि आपने उसके साथ चार फेरे खाए | और केवल
पांच मिनट में वो चार फेरे खा लिए |
- Pujya Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali.
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Kripaya kautuk pradarshan mantra post kijie
ReplyDeletenahi malum hai bhai mujhe :/ Katuk pradarshan mantra
ReplyDeleteKripaya dhundie mere lie plz
ReplyDeleteare bhai kuch batayein to sahi ye कौतुक प्रदर्शन मंत्र kisse sambandhit hai, kis karya ke liye chahiye hai aapko..
ReplyDeleteYe kautuk mantra ke jarie chote chote jadu/kautuk dikha sakte he ( mantra ke jarie)
ReplyDeleteआप मुझे कॉल करे
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