अभी कुछ सालों पहले ही अख़बारों में ख़बर छपी थी एक ऐसे नीलम की, जो कि श्रापित माना गया है, यह नीलम Purple tint का है और खूनी नीलम के नाम से जाना जाता है | सन् 1855 ई० में britishers ने इसे भारत के राजघराने से लूटा था और लूटकर वे इसे इंगलैंड ले गये थे | जिस ब्रिटिश अफसर ने इसे लूटा कुछ ही दिनों में दिवालिया हो गया और अचानक ही तबियत बिगड़ जाने से रहस्यमयी ढंग से उसकी मृत्यु हो गयी ! उसकी मृत्यु के बाद जब वो नीलम बेटे के हाथ में आया तो उसकी भी किस्मत डूबने लगी, तो उसने एक मित्र को वह नीलम दे दिया | आश्चर्य की बात तो तब हुई जब उसके मित्र ने आत्म हत्या कर ली और वह नीलम फिर से एक बार उसके पास लौटकर आ गया | लाख कोशिशों के बाद भी वह उससे पीछा नहीं छुड़ा पाया था |
Edward Heron-Allen, नामक एक रेसर्चर के हाथ यह खूनी नीलम तब लगा जब वह इस मामले
में Natural History Museum
में तहकिकात कर रहा था, 1890 में... पत्थर ने
अपना असर दिखाया और एक के बाद एक हादसे उसके साथ होने के बाद उसने उस पत्थर को
नाले में फेंक दिया, यह सोचते हुए कि उसे अब कभी भी उस पत्थर को नहीं देखना पड़ेगा !
मगर इस बार भी कुछ अजीब ढंग से वह मनहूस पत्थर एक मछवारे को मिला, जिसने उसे एक
सौदागर को बेचा और उस सौदागर ने वापस उसे एडवर्ड के पास ही लाकर छोड़ दिया !
अब एडवर्ड ने उस पत्थर को बैंक में कुछ तावीजों के साथ और ७ लिफाफों के अन्दर बंद
करके जमा करवा दिया था, और स्पष्ट रूप से ये निर्देश दे दिया था कि इसे मेरी
मृत्यु के ३ साल बाद ही खोला जाये, उससे पहले नहीं | वह पत्थर वास्तव में नीलम
नहीं था, बल्कि वह एक Amethyst/जमुनिया है | मृत्यु के बाद उसकी बेटी ने उसे निकलवाकर Natural History Museum के हवाले कर दिया जो कि आज भी वहीँ मौजूद है, लन्दन में | जो
पत्र एडवर्ड ने उसके ऊपर लगाया था उसके शब्द इस प्रकार से थे, “जो कोई भी इसे खोले,
वह पहले इस चेतावनी को पढ़े और उसके बाद जो उसके मन में आए इस पत्थर के साथ करे.
मेरी सलाह उस आदमी, या औरत के लिए यह है कि वह इसे समुन्दर में फेंक दे !”
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