पिछले
लेख को पढके अधिकतर साधकों के मन में ये प्रश्न उठा कि ये कैसे ज्ञात करें की
उन्हें किस साधना में जल्दी सफलता मिलेगी ?? तो यह तथ्य भी वह अपनी जन्म-कुंडली को
दखकर बड़ी सरलता से पता कर सकता है | ज्योतिष और कुण्डली अध्ययन भले ही दुरूह और
पेचीदा विज्ञान रहा हो मगर कुछ निर्धारित योगों का मिलाप करना तो किसी भी व्यक्ति
के लिए सहज सुलभ है | आप भी बस थोड़े प्रयत्न से ही इसे देख सकते हैं और मार्गदर्शन
प्राप्त कर सकते हैं | यह योग सर्व प्रथम पूज्य गुरुदेव ने स्पष्ट किये थे जिसे पूरे
भारतवर्ष के विद्वानों ने सराहा है और प्रशंशा की है |
जन्म-कुण्डली में 12 घर होते हैं, जिसे भाव कहते हैं | इसमें 9वें घर, नवम् भाव से
उपासना का ज्ञान होता है | इससे सम्बंधित तथ्य इस प्रकार से हैं -
१. यदि जन्म-कुण्डली में बृहस्पति, मंगल एवं बुद्ध साथ हो या परस्पर दृष्टि हो तो
वह व्यक्ति साधना क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है |
२. गुरु-बुद्ध दोनों ही नवम
भाव में हो तो वह ब्रह्म साक्षात्कार कर सकने में सफल होता है |
३. सूर्य उच्च का होकर
लग्नेश के साथ हो तो वह श्रेष्ठ साधक होता है |
४. यदि लग्नेश पर गुरु की
दृष्टि हो तो वह स्वयं मंत्र स्वरुप हो जाता है, मंत्र उसके हाथों में खेलते हैं |
५. यदि दशमेश दशम स्थान में हो तो वह व्यक्ति साकार उपासक होता है |
६. दशमेश शनि के साथ हो तो
वह व्यक्ति तामसिक उपासक होता है |
७. अष्टम भाव में राहू हो
तो जातक अद्भुत मंत्र-साधक तांत्रिक होता है |
८. दशमेश का शुक्र या
चन्द्रमा से सम्बन्ध हो तो वह दूसरों की सहायता से उपासना-साधना में सफलता प्राप्त
करता है |
९. यदि पंचम स्थान में
सूर्य हो, या सूर्य की दृष्टि हो तो वह शक्ति उपासना में पूर्ण सफलता प्राप्त करता
है |
१०. यदि पंचम एवं नवम भाव में शुभ बली ग्रह हों तो वह सगुणोपासक होता है |
११. नवम भाव में मंगल हो या
मंगल की दृष्टि हो तो वह शिवाराधना में सफलता पा सकता है |
१२. यदि नवम स्थान में शनि
हो तो वह साधू बनता है | ऐसा शनि यदि स्वराशी या उच्चराशी का हो तो व्यक्ति
वृद्धावस्था में विश्व प्रसिद्द सन्यासी होता है |
१३. जन्म-कुंडली में सूर्य
बली हो तो शक्ति उपासना करनी चाहिए |
१४. चन्द्रमा बलि हो तो
तामसी उपासना में सफलता मिलती है |
१५. मंगल बली हो तो शिवोपासना
से मनोरथ प्राप्त करता है |
१६. बद्ध प्रबल हो तो तंत्र साधना में सफलता प्राप्त करता है |
१७. गुरु श्रेष्ठ हो तो
साकार ब्रह्म उपासना से ख्याति मिलती है |
१८. शुक्र बलवान हो तो
मंत्र साधना में प्रणता पाता है |
१९. शनि बलवान हो तो तंत्र एवं मंत्र दोनों में ही सफलता प्राप्त करता है |
२०. ये लग्न या चन्द्रमा पे
दृष्टि हो तो जातक सफल साधक बन सकता है |
२१. यदि चन्द्रमा नवम भाव
में हो और उसपर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो वह व्यक्ति निश्चय ही सन्यासी बनकर
सफलता प्राप्त करता है |
२२. दशम भाव में तीन ग्रह बलवान
हों, वे उच्च के हों, तो निश्चय ही जातक साधना में सफलता प्राप्त करता है |
२३. दशम भाव का स्वामी
सप्तम भाव में हो जातक तांत्रिक होता है |
२४. दशम भाव में उच्च राशी
के बुद्ध पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक जीवन मुक्त हो जाता है |
२५. बलवान नवमेश गुरु या
शुक्र के साथ हो तो व्यक्ति निश्चय ही साधना क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है |
२६. यदि दशमेश दो शुभ ग्रहों
के बिच में हो तो जातक को साधना में सम्मान मिलता है |
२७. यदि वृषभ का चन्द्र
गुरु-शुक्र के साथ केंद्र में हो तो व्यक्ति उपासना क्षेत्र में उन्नत्ति करता है
|
२८. दशमेश लग्नेश पर परस्पर
स्थान परिवर्तन योग यदि जन्म-कुण्डली में हो तो व्यक्ति निश्चय ही सिद्ध बनता है |
२९. यदि सभी ग्रह चन्द्र और
गुरु के बीच हों तो व्यक्ति तांत्रिक क्षेत्र की अपेक्षा मंत्रानुष्ठान में विशेष
सफलता प्राप्त कर सकता है |
३०. यदि केंद्र और त्रिकोण
में सभी ग्रह हो तो साधक प्रयत्न कर किसी भी साधनों में सफलता प्राप्त कर सकता है
|
इसके अलावा भी और कई योग
होते हैं, साधक यूँ एक से ज्यादा देवी-देवताओं की अर्चना भी कर सकता है, जैसे की
अगर किसी के ईष्ट राम हैं तो वह लक्ष्मी साधना भी कर सकता है, शिव साधन भी करे,
हनुमान साधना भी करे ही क्यूंकि गृहस्थ जीवन में पूर्णता प्राप्त करने के लिए कई
देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करना सहायक ही होता है |
- "मंत्र रहस्य" by Dr. Narayan Dutt Shrimali.