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Saturday, June 28, 2014

पारद कि महिमा

12 Sanskaarit Paardeshwar Shivling.

जयति स दैन्यगदाकुलमखिलमिदं पश्यतो जगद्यस्य |
हृद्यस्थैव गलित्वा जाता रसरूपिणी करूणा ||
इस सम्पूर्ण जगत को गरीबी और रोगों से व्याकुल देखकर जिनके हृदय में स्थित करूणा गलकर पारे के रूप में परिवर्तित हो गयी, उन महादेव शंकर कि जय !


पारद कि बराबरी भगवान् विष्णु से की गयी है
Parad aur Hari me Samanta और पारा खुद स्वयं महादेव शंकर का वीर्य है, उनका सत्व है | सत्व यानी शरीर का सबसे अधिक पवित्र अंग | और इस पवित्रतम शिव अंग के गुण अनंत हैं | यह मूर्छित, बद्ध और मृत तीनों अवस्था में वरदानस्वरुप सिद्ध होता है, जिसे ब्रह्माण्ड के सभी जीव जन्तुयें दिव्य मानती हैं और पूजती हैं | पारे से अधिक दयालु कौन हो सकता है ? जो १. मूर्छित होने पर यानी मूर्छन संस्कार होने पर रोगों को हरता है, २. बद्ध होने पर यानी शिवलिंग अथवा विग्रह बनने पर मुक्ति देता है और ३. भली-भांति मरने पर, भस्म रूप में बन जाने पर मनुष्य को देता है... अमरत्व !




पारे के रोग-नाश का कारण
?



इस विषय पर श्रीमद्गोविंदभगवत्पाद कहते हैं कि

तस्य स्वयं हि स्फुरति प्रादुर्भावः स शंकरः कोऽपि |

कथमन्यथा हि शमयति विलसन्मात्राच्च पापरूजम् ||

स्वयं शंकर से उत्पन्न हुए इस सूतराज का स्वरुप खुद ही चमकता है, दुखों का शमन करने हेतु इसका प्रादुर्भाव खुद उन्ही से हुआ है, अन्यथा कोई कैसे पापजन्य रोगों को खेल-खेल में शांत कर सकता है ? रसेंद्रमंगल में उल्लेखित है, "शताश्वमेधेन कृतेन पुण्यं गोकोटिदानेन गजेंद्रकोटिभिः | सुवर्णभूदान समान धर्मे नरो लभेत् सूतकदर्शनेन"..... सौ अश्वमेध यज्ञ, करोड़ गौ दान-गज दान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, स्वर्ण और भू-दान करने से पूण्य फल मिलता है, वह हमें केवल ऐसे रसेन्द्र के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है |
ये चात्यक्तशरीरा हरगौरीश्रृष्टिजां तनुं प्राप्ताः |
वन्द्यास्ते रससिद्धा मन्त्रगणाः किंकरा येषाम् ||

जिन्होंने शरीर त्याग (मृत्यु) के बिना ही शिव-पार्वती कि सृष्टि का शरीर प्राप्त कर लिया है
, और मन्त्र जिनके दास हैं, वे रस सिद्ध गण वास्तव में ही वन्दनीय हैं | पारा, शिव जी का वीर्य और गंधक, पार्वती जी का रज है, जिनके विशेष योगों का सेवन विशेष विधि से करने से मनुष्य का शरीर ब्रह्मा जी की सृष्टि के नियमों से मुक्त होकर शिव-पार्वती के सृष्टि के गुणों से युक्त हो जाता है | वह अजर (जो हमेशा जवान रहे), अमर (हमेशा जीवित रहने वाला), अत्यंत बलवान, आकाश में उड़ने वाला, स्वेच्छाचारी (जहाँ इच्छा करे वहाँ जा सकने वाला) और भगवान् शिव के समान हो जाता है | उसके मल, मूत्र, पसीने इत्यादि में भी वेध करने कि क्षमता आ जाती है | अष्टादश संस्कारित पारद सेवन से ऐसा संभव होता है, और ऐसे रस सिद्धों को सभी मंत्र बिना सिद्ध किये ही सिद्ध हो जाते हैं |


रस सिद्धों ने अपने ग्रन्थ में कहा है कि धन से अनेक प्रकार के सुख भोगे जा सकते हैं, परन्तु सुख शरीर से भोगे जाते हैं, और जब शरीर ही स्थायी नहीं है तो सब व्यर्थ है ! इस प्रकार, धन, शरीर और सुख-भोग को ..... अस्थायी समझकर हमेशा मुक्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए, मुक्ति ज्ञान से होती है... ज्ञान अभ्यास (योगाभ्यास) से होता है.. और अभ्यास तभी हो सकता है जब शरीर स्थायी हो ! रोग, बुढ़ापे और मृत्यु से रहित स्थायी शरीर अत्यंत आवश्यक है, अगर मुक्ति प्राप्त करना है तो !
स्थिर देहोऽभ्यासवशात्प्राप्य ज्ञानं गुणाष्टकोपेतम् |
प्राप्नोति ब्रह्मपदं न पुनर्भवावासदुःखेन ||



यहाँ मैंने यह बात उन दिव्य ग्रंथों से लेकर लिख तो दी है.. मगर आज कल अधिकतर लोग पारद के संस्कारों को बिना समझे
, बिना किये विग्रह इत्यादि बेचने में लगे हुए हैं | उन्हें यह भी ज्ञात नहीं है कि वास्तव में इन संस्कारों को करने के पीछे क्या उद्देश्य है और पारद को पूरी तरह शुद्ध तक करने कि क्रिया उन्हें ज्ञात नहीं है | क्योंकि बाज़ार से हमें जो Mercury प्राप्त होती है, उसमें प्राकृतिक रूप से सीसा, रांगा, जस्ता इत्यादि कई प्रकार के अन्य धातुएं मिली हुई होती हैं | अगर इनका शोधन नहीं किया जाता है तो वे धातुएं उस विग्रह इत्यादि में शेष ही रह जाती हैं, और इस प्रकार का सीसेश्वर, रांगेश्वर, भंगेश्वर मार्केट में बहुत आसानी से मिल जाती हैं | और अगर ऐसे दवाईयों का सेवन किया जाये तो यह अत्यंत घातक और प्राण-घातक भी सिद्ध हो सकती हैं ! जहाँ पारद शिवलिंग पर चढ़ा हुआ जल पीने से सभी प्रकार के रोगों से निवृत्ति होती है, वहीँ इस प्रकार के अशुद्ध पारद के जल सेवन से रोगों कि उत्पत्ति होती है, और कच्चा पारा तो विष ही है | इसलिए आँख मूँदकर कुछ भी लेने से अच्छा है जागरूक होकर कोई वस्तु लें, इस प्रकार का शुद्ध संस्कारित शिवलिंग आप कहीं से भी प्राप्त कर सकते हैं, जिसपर कई उच्च कोटि कि साधनायें संपन्न की जा सकती हैं | 


पारे के लिए बताया गया है कि जिस प्रकार परमात्मा में सभी आत्माएं विलीन हो जाती हैं, उसी प्रकार पारे में सभी सत्त्व एवं धातुएं विलीन होते हैं अतः पारा ही एक मात्र ऐसा है जो शरीर को अजर-अमर बना सकता है, हमें स्थायी शरीर प्रदान कर सकता है स्थायी शरीर प्राप्त कर मनुष्य योगाभ्यास के द्वारा ज्ञान को प्राप्त करता है, और ज्ञान के द्वारा वो अष्टसिद्धियों सहित ब्रह्मपद को प्राप्त कर लेता है | बार-बार जन्म-लेकर दुःख झेलते हुए यह संभव नहीं है |

इसलिए जीवन्मुक्ति के इच्छुक लोगों को चाहिए कि सर्वप्रथम पारद और गंधक के योग से अपने शरीर को दिव्य बनाए | और इस हेतु पारद के १८ संस्कार कि पूर्ण विधि योग्य गुरु से सीखे और करे |

Wednesday, June 25, 2014

पारद और हरि में समानता.



पीताम्बरोऽथ बलिजिन्नागक्षयबहलराग गरूडचरः |
जयति स हरिरिव हरजो विदलितभवदैन्यदुःखभरः ||


पीताम्बर धारण करने वाले, यानी हरि पीत वस्त्र धारण किये हुए रहते हैं, पुराणों में विष्णु कि व्याख्या की गयी है..उनके बारे में बताया गया है... और हम श्रीमद्गोविन्दभगवत्पाद द्वारा रचित 'रस हृदय तंत्र' के इस श्लोक से पारद और हरि में समानता को भली-भाँती समझ सकते हैं, उन्होंने बहुत ही सुन्दर ढंग से इन श्लोकों में कुछ तथ्य बताये हैं, जो कि आश्चर्यजनक हैं, महत्वपूर्ण हैं और विचार करने योग्य हैं !


यहाँ हरि के बारे में क्या बताया गया है ? पीताम्बरः, पीत अंबर वस्त्र धारण किये हुए... और आगे हरि के बारे में क्या बताया गया है ? बलिजित..... यानि दैत्य राजा बलि को जीतने वाले, पुनः क्या बताया गया है ? नागक्षय.. शेषनाग आदि का अंत करने वाले; बहलराग गरूडचरः.... नागों का नाश करने में जिन्हें बहुत आनंद आता है, ऐसे गरूड पर बैठकर चलने वाले | इसके बाद क्या बताया है उन्हें ? विदलितभवदैन्यदुःखभरः... हरि संसार में दलित और दुखी जनों के दुःख को नष्ट करने वाले हैं, उन्हें सुख देने वाले हैं और मनोवांछित वर प्रदान करने वाले हैं | ऐसे हैं हमारे श्री हरि विष्णु |


और अब यदि हम पारद के गुणों को देखें, तो पारद के भी क्या यही गुण नहीं हैं ? पारद भी श्री हरि विष्णु के समान पीताम्बरः.... अभ्रक जारित है, अभ्रक जिसका रंग पीला होता है, उससे जारित है | और आगे इसके क्या गुण हैं ? पारद बलि जित... यानि गंधक जारित है, गंधक जो कि पारद को भी अपने अन्दर विलीन कर लेता है यानी पारे से ज्यादा बलवान है, पारद उसपर भी जीत हासिल किये हुए है | पुनः इसके क्या गुण हैं ? पारद, नागक्षयबहलरागगरूडचरः है, क्यूंकि सीसे को नाग भी कहा गया है संस्कृत में, और पारद सीसे का क्षय होने पर अत्यंत तेजस्वी रंग को प्राप्त होने वाले सोने को खाने वाले हैं | इसके आगे ? विदलितभवदैन्यदुःखभरः.... संसार के लोगों कि गरीबी और दुखों को नष्ट करने वाले हैं पारद | और ?... हरज, यानि शिव जी के वीर्य या पुत्र, पारे कि जय.......||



NOTE - पारे में चारण करने के लिए स्वर्ण से कई प्रकार के बीज बनाते समय उसमें सीसा या सीसे की भस्म को मिलाकर इतनी आँच देते हैं कि सीसा नष्ट हो जाता है और केवल स्वर्ण शेष रह जाता है | इस क्रिया से सोने के रंग और चमक में वृद्धि होती है |


पारद एक होते हुए भी अनेक, और अनेक होने पर भी दुबारा एक हो जाने कि क्रिया करता है |


हरि सर्वव्यापी हैं | एक होते हुए भी अनेक, और अनेक होते हुए भी एक हैं, और बिलकुल यही गुण क्या पारद के भी नहीं हैं ? हमारे एक स्पर्श से पारा सौ टुकड़ों में बंट जाता है और पुनः आपस में मिलते ही एक हो जाता है

Tuesday, June 17, 2014

shrawan maas SHIV SADHANA...





भगवान शिव तो पल में प्रसन्न होने वाले और साधक कि सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाले महादेव हैं, वे प्रसन्न होते हैं तो रावण की नगरी को सोने का बना देते हैं, कुबेर को देवताओं का कोषाध्यक्ष बना देते हैं, इंद्र को अमोघ वज्र प्रदान कर देवताओं का अधिपति बना देते हैं और ब्रह्मा को पूर्ण चैतन्य सिद्ध बना देते हैं |



श्रावण मास शिव को अत्यधिक प्रिय है और
शिव पुराण में स्पष्ट उल्लेखित है कि जो कोई भी, सन्यासी या गृहस्थ, अगर श्रावण मास में विशिष्ट शिव साधना
संपन्न कर लेता है, तो उसके भाग्य में लिखा हुआ दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है, अगर उसके जीवन में दरिद्रता लिखी हुई भी है तो भी भगवान् शिव की यह साधना उस दुर्भाग्य को
मिटाकर सौभाग्य कि पंक्तियाँ लिख देता है, अगर
जीवन में कर्जा है, व्यापार न्यूनता है, आर्थिक अभाव है तो यह साधना श्रेष्ठ साधना है, क्यूंकि यह साधना सरल है, निश्चित फलप्रद है, अद्वितीय है |



१. रोग निवारण – शिव जो वैद्यनाथ हैं, अपने भक्तों को इस साधना को संपन्न करने पर रोग मुक्त करते हैं और अकाल मृत्यु, बीमारी, मानसिक चिंताओं से जीवन भर के लिए मुक्ति दिलाते हैं | हम आज तरह तरह से प्रयास करते हैं कि हमें आराम मिले, कभी हम घुमने चले जाते हैं जीवन से परेशान होकर, कभी ठंडी हवा खाने के लिए ऐ०सी० लगाते हैं, कभी आराम के साधन जुटते रहते हैं, परन्तु सत्य तो यह है कि इन सब के बजाये अगर शिव आराधना पूरे मनोयोग से करें तो उसी में पूर्ण सुख कि प्राप्ति संभव है !

२. लक्ष्मी का घर में स्थायी निवास – शाश्त्रों में तो यहाँ तक लिखा है कि सभी लक्ष्मी कि साधनाओं का इस साधना के सामने कोई महत्वा ही नहीं है, केवल मात्र श्रावन मास में जो व्यक्ति शिव साधना कर लेता है, लक्ष्मी उसके घर में आकर निवास करने को बाध्य हो जाती है, फिर उसे कनकधारा स्तोत्र, अन्य स्तोत्र इत्यादि अलग से करने कि जरोरत नहीं पड़ती, अगर वह यह मंत्र जाप कर लेता है तो...

३. भूत सिद्धि.

४. भगवान शिव के प्रत्यक्ष दर्शन !


इसके लिए अष्ट संस्कारित पारदेश्वर शिवलिंग अनिवार्य है, जिसपर यह साधना मंत्र जाप और पूजन संपन्न करना है | शास्त्रों में यह बात कही है कि शिवलिंग को घर में स्थापित नहीं करना चाहिए और एक बार जहाँ इसका स्थापन हो गया उस जगह से इसे हटाना शास्त्रों के विरुद्ध है, मगर पारद शिवलिंग और नर्मदेश्वर शिवलिंग ही एक मात्र ऐसे हैं जिसे गृहस्थ भी अपने घर में स्थापित कर सकता है और इसे एक जगह से दूसरी जगह भी हटाकर रखा जा सकता है | ऐसा शिवलिंग अति-दुर्लभ तो है ही मगर अगर कहीं से मिल जाये तो इन्हें साक्षात शिव ही समझना चाहिए |

- यह जो मंत्र यहाँ पर दिए जा रहे हैं, इन्हें श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को करना है, मतलब यह नहीं कि आपको पूरे सावन भर यह साधना करनी पड़ेगी, केवल मात्र श्रावण के सोमवार  को ही पूजन और मंत्र जाप संपन्न कर लें |

- इस दिन केवल एक समय शुद्ध सात्विक भोजन करें, इसके अलावा दिन भर में दूध, फल इत्यादि ले सकते हैं |

- प्रत्येक वार रुद्राक्ष माला से रात्रिकाल में ११ माला मन्त्र जाप शुद्धता से कर लें, इससे पहले शिवलिंग का पूजन सामन्य या विशेष किसी भी विधि से अवश्य कर लें, केवल जलाभिषेक, बिल्वपत्र चढ़ाना, दुग्धाभिषेक भी कर सकते हैं |

प्रथम सोमवार – इस मन्त्र से मनोवांछित फल कि प्राप्ति होती है, खासकर जिन कन्याओं का विवाह में विलम्ब हो रहा हो, वे ये साधना करें तो शीघ्र लाभ मिलता है |

|| ॐ ऐं शाम्ब सदाशिवाय नमः ||

द्वितीय सोमवार – इस मन्त्र को स्नान कर पीली धोती पहनकर पीले आसन पर बैठकर करें, उत्तर कि और मुंह किया हुआ हो, सामने शिवलिंग को बाजोट पर पीले वस्त्र पर स्थापित करके सबसे पहले हाँथ में जल लेकर संकल्प लारें कि मैं इस कार्य कि पूर्ती के लिए यह मन्त्र कर रहा हूँ मुझे शीघ्र इस फल कि प्राप्ति हो, और फिर इस मन्त्र कि ग्यारह माला संपन्न कर लें | 

|| ॐ ऐं ऐं सर्व सिद्धि प्रदायै शिवायै नमः ||

तृतीय सोमवार – इस दिन भी आप पीली धोती धारण कर उत्तर या पूर्व कि मुख कर बैठ जायें और हाँथ में जल लेकर संकल्प में अपना नाम और गोत्र बोलेन, फिर अपनी इच्छा बोलें, फिर इस मंत्र कि ११ माला संपन्न कर उठ जायें, कई बार साधना पूरी होते-होते मनोकामना पूर्ती होने का संकेत भी मिल जाता है |

|| ॐ ह्रीं अन्नपूर्णा शिवायै नमः ||

चतुर्थ सोमवार – महादेव पर २१ बिल्वपत्र या पुष्प चढ़ाएं, केसर का त्रिपुण्ड लगायें, फिर इसी प्रकार से मंत्र जप संपन्न करने के पश्चात श्रधा भाव से साधना समाप्ति पर उन्हें अपनी बात व्यक्त करें |  

|| ॐ शक्तयै सदाशिवाय नमः ||

दूसरे दिन पूजन कि सभी सामग्री को पवित्र नदी या मंदिर में विसर्जित कर दें, पाँच कन्याओं को भोजन करा दें, और यथोचित दान दें | यह एक अद्भुत साधना है जिससे निश्चय ही साधक कि सभी मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं | हर हर महादेव.....

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Thursday, June 5, 2014

BEEJ NIRMAN

Density of Mercury - 13


परम पूज्य सगुरुदेव जी ने कई ऐसे रस सिद्धों का उल्लेक अपने ग्रन्थ में किया है, उनमें से काशी के सुधीर रंजन भादोड़ी महाशय जी, एवं इनके पुत्र बम गोपाल भादोड़ी हैं,
A. P. Patel जी हैं..|

गुरु गोरखनाथ जी द्वारा रचित एक ग्रन्थ है जिसका नाम है ‘प्राण सांगली’, वह हिमालय के एक मठ में रखी गयी है, जिसमें पारद के अद्वितीय देह सिद्धि और लौह सिद्धि रहस्य लिखे हुए हैं | और यह ग्रन्थ तो आज भी हमारे बीच उपलब्द्ध है | इस प्रकार के अन्य कई ग्रन्थ आज भी सहज सुलभ हैं, जिनका अध्ययन हम कर सकते हैं एवं लाभ ले सकते हैं |





पारद संस्कारों में अत्यंत महत्वपूर्ण क्रिया है धातु बीज निर्माण कि क्रिया | आज हम इसी विषय पर कुछ चर्चा करते हैं | 



बीज निर्माण कि परिभाषा क्या है ?

उच्चतर धातुओं के ऊपर निम्नतर धाराओं के धातुओं का निरहन करने कि क्रिया को हम बीज निर्माण कहते हैं | निरहन का तात्पर्य है कि उसको खरल करके लुप्त कर देना | यानि उसके स्थूल अंश को ख़त्म करके उसके प्राणांश और आत्मांश को लेना | यानि स्थूल धातुओं के प्राणान्श या आत्मांश को किसी उच्च धातु के ऊपर समायोजन करने कि क्रिया को ही हम ‘बीज निर्माण’ कहते हैं | जैसे लौह, शीशा, ताम्बा, जस्ता इयात्दी का किसी एक उच्च धातु जैसे स्वर्ण या अभ्रक सत्व पर समायोजित कर देना |



यह तो हम सभी जानते हैं कि स्वर्ण से उच्च कोई अन्य धातु नहीं है, लेकिन यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण और समझने योग्य है कि पारद ग्रंथों में ‘अभ्रक सत्व’ को भी स्वर्ण के समकक्ष माना है | अभ्रक सत्व मुख्य रूप से कई धातुओं का समूह होता है, इसके अन्दर समस्त धातुओं को धारण करने कि क्षमता रहती है | अभ्रक सत्व को महारस बीज कि संज्ञा दी है, तो उन विद्वानों ने यूँ ही नहीं दी है.....




बीज निर्माण क्यों करते हैं ?

अग्निस्थायिकरण एवं समस्त धातुओं का शोधन करने के लिए हम बीज निर्माण करते हैं |


धातु शोधन के पीछे हमारा उद्देश्य क्या है ?

धातु शोधन करने के पीछे जो हमारा मूल उद्देश्य है, वह यह है कि हम उसके घनत्व को और तापमान को पारद के या स्वर्ण के निकट ले जा सकें | जैसा कि ऊपर बताया गया है, अभ्रक सत्व में कई सारे धातुओं का सत्व है, आधुनिक सिद्ध रसायन विज्ञान में एक अति महत्वपूर्ण बात यह कही है, कि अभ्रक सत्व ही अग्निस्थायी पारद है, और अग्निस्थायी पारद ही अभ्रक सत्व है ! मगर इसकी गुप्त कुंजी तो सद्गुरु ज्ञान से ही प्राप्य है कि यह किस प्रकार से संभव है, इसका प्रयोग किस प्रकार से है | 


समस्त बीजों में श्रेष्ठ निर्माण कौन से हैं ?


स्वर्ण महानाग बीज, अभ्रक सत्व, ताम्र एवं अष्ट प्रकार के लौह इन सभी को समस्त बीजों में श्रेष्ठ बीज निर्माण कहा गया है |



रस ह्रदय तंत्र के ग्रंथकार, श्री A. P. Acharya जी, जिन्होंने अहमदाबाद में 1969 को सिद्ध पारद के १३ संस्कार संपन्न करके प्रायोगिक रूप से स्वर्ण निर्माण करके दिखलाया था ! यह खबर गुजरात के अख़बारों में आई थी, पर अंत में इन्होने प्रयाग में सन्यास ग्रहण कर लिया और हरिश्वरानंद जी के नाम से प्रसिद्ध हुए | सदगुरुदेव जी ने अपने ग्रन्थ में जो A. P. Patel(आत्माराम प्रभुराम पटेल) का ज़िक्र किया है वो इन्ही के बारे में ज़िक्र किया है | इनके द्वारा रचित एक बहुत ही दिव्य पुस्तक है जिसका नाम है, “मनुष्य अवतार”, जिसमें साधारण मनुष्य से पूर्ण योगी बनने तक कि यात्रा इसमें लिखी है, यह ग्रन्थ अगर किसी भी भाई को अध्ययन करने कि इच्छा हो तो मुझसे प्राप्त कर सकता है, व्यक्तिगत रूप से मिलकर, J


निखिल प्रणाम..

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Saturday, May 31, 2014

PAARAD KE SIDDH ACHARYA, 20th CENTURY KE




पारद संस्कार के बारे में मेरी एक वरिष्ठ गुरु भाई से चर्चा हो रही थी, वे सन
1993 से सदगुरुदेव के निर्देश में पारद संस्कार करते आ रहे है, उन्होंने अति-कृपा करके मुझे कई ऐसे ज्ञानवर्धक एवं अति-दुर्लभ रहस्यमयी बातें बतायीं इस विषय में | पारद पे मेरे लेख उन्हीं कि INSPIRATION से है |


बीसवीं शताब्दी के कुछ रस सिद्ध आचार्यों के नाम इस प्रकार से हैं -

१. श्याम गिरी सन्यासी |
२. बी० एस० प्रेमी |
३. त्रिलोक नाथ आज़मी – पारद के
18 संस्कार के पूर्ण ज्ञाता |
४. ए० पी० आचार्य |
५. कृष्ण राम भट्ट (जयपुर वाले) |
६. रखाल दास घोश (पश्चिम बंगाल से) |
७. सुधीर रंजन भडोदी |
८. बदी नारायण शास्त्रीजी (कालेड़ा वाले) – जिन्होंने रस तंत्र विवेचन एवं रस शास्त्र प्रवेचिता जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे, जो कि अनुभव के आधार पे हैं, एवं रस कर्मियों के पठन योग्य दुर्लभ ज्ञान से ओत प्रोत पुस्तकें हैं |
९. पुष्कर वनखंडी बाबा – जो कि पारद के अन्यतम आचार्यों में से एक गिने जाते हैं |


इन सभी रस ज्ञाताओं ने पारद को बुभुक्षित करने के महत्वा को एक स्वर से स्वीकार किया है, पारद को बुभुक्षित करने कि क्रिया और उससे पारद को अनंत शक्ति संपन्न बनाने कि महत्वता को बताया है | और ये सभी रस सिद्ध जन
20 वीं शताब्दी के ही हैं, यह नहीं कि कोई अति-प्राचीन या लुप्त प्राय बात यहाँ हो रही हो मगर दुविधा ये है हमारे सामने कि इनमें से कोई भी रस सिद्ध वर्तमान में नहीं हैं | उनके अनुसार कार्य करने वाले तो जरूर हैं, हमारे पास उनके लिखे गये ग्रन्थ तो जरूर हैं, मगर उनका इस दुनिया में न होने से इस विषय का क्रियात्मक ज्ञान PRACTICAL KNOWLEDGE हमारे पास नहीं है ! मगर यह भी सही है कि अगर सही से मार्गदर्शन देने वाला मिल जाये तो कुछ भी अप्राप्य नहीं | इनके ही अनुयायी या इनसे सीखकर करने वाले भी बहुत से लोग आज हैं, वे अब सामने आयें यही इस विद्या को जीवित रखने के लिए अत्यंत आवश्यक और अनिवार्य क्रम होगा, ऐसा अति दुर्लभ एवं दिव्य ज्ञान , दुर्लभ से कहीं अब लुप्त ही न हो जाये |


श्री कृष्ण पाल शास्त्री जी भुवनेश्वरी शक्ति पीठ गौन्डल में रहकर आचार्य चरण तीर्थ जी महाराज से पारद विद्या सीखकर
18 संस्कार में निष्णात हुए थे | और उस काल में करीब-करीब वे सारे आचार्य आपस में मिलते भी थे और इस विषय पर ज्ञान चर्चा एवं वार्तालाप भी करते रहते थे, और आज जब विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है, आज जब दूर भाष बस हाँथ का और उँगलियों का खेल बनके रह गया है, तो जानकार ही कम बचे हैं, और जो हैं भी, वे मौन बने रहते हैं | ऐसा क्यूँ.... और क्या ये भविष्य के लिए अछि सोच है, अतः आप ससे निवेदन है कि जो भी विद्वान् इन विषयों में ज्ञान रखते हों वे सामने आयें ज्ञान का आदान-प्रदान हो..


परम पूज्य सगुरुदेव जी के निर्देश में कई हमारे गुरु भाइयों ने सन
1990 कि दशक में पारद संस्कार करना प्रारंभ किया, WEST BENGAL इत्यादि जगहों से कई भाई हैं जो कि फेसबुक के माध्यम से भी जुड़े हुए हैं | अन्य कई-कई बातें और सामने आने हैं, अभी तो बहुत कुछ ही सामने आना बांकी है, जैसे-जैसे सदगुरुदेव कि इच्छा...


Thursday, May 29, 2014

पारद प्रश्नोत्तर -




प्र०- पारद को शुद्ध करने का एक सरल प्रकार, आरिफ जी द्वारा बताया गया, यह था कि 
पारद के समान भाग का सेंधाव लावन लें और उसमें लहसन का रस, अदरक का रस और ग्वारपाठे का रस डालकर १२ घंटे तक खरल करें, फिर डमरू यन्त्र से पारद निकाल लें, यह पारद शुद्ध एवं बुभुक्षित हो जाता है | यह स्वर्ण ग्रास कर लेता है | मगर हम तो यह जानते हैं कि आठवें संस्कार संपन्न करने के पहले पारद बुभुक्षित होता ही नहीं है, तो फिर यह कैसे संभव है ?



उ०-                          “युवा न योगी, वैद्य न रोगी,

                                 कीमिया न मांगे भीख...”


कीमियागिरी मोहम्मदन की एक विद्या थी जिसमे बिना पारद के संस्कार किये ही कुछ उपायों से उसे स्वर्ण सिद्धि दायक बना दिया जाता था ! मगर यह पद्धति मूल वैदिक पारद विज्ञानं से बिलकुल भिन्न है, इसका पारद के उच्चतम उपयोगों से कहीं कोई वास्ता नहीं था, क्यूंकि जब पारद में संस्कार ही नहीं किये गये, तो उसमे वह गुण जो हम देखना चाहते हैं, वह नहीं होगा, उस पारद का शास्त्रों में लिखा कोई भी उपयोग है ही नहीं, न रोग निवारण में, न अन्य उच्चतम संस्कारों में, इसलिए यह तरीका जबरदस्ती का तरीका ही कहा जायेगा, पारद के संस्कारों कि खासियत तो पूरे विश्व भर में मैशहूर है, जो कि इस प्रकार से तैयार पारे में नहीं मिलेगा !


प्र०- पारद विज्ञानं के तीन मुख्य संस्कार क्या हैं ?


उ०- पारद के ८ संस्कार बहु-चर्चित हैं, और किन्ही किताबों में वह दुर्लभ १८ संस्कारों का भी उल्लेख किया हुआ है, मगर इसमें भी तीन अति महत्वपूर्ण संस्कार हैं, जिन्हें समझना परम आवश्यक है | ये तीनों पारद के विभिन्न संस्कार/प्रयोगों का मूल है |



१, शुद्धिकरण – शुद्धिकरण के भी तीन बिंदु हैं, अन्तः शुद्धि, बाह्य शुद्धि एवं शुक्ष्म शुद्धि | इसमें से प्रथम दो प्रकार से शुद्धिकरण तो अभी भी प्रचलित है, मगर तीसरी प्रक्रिया मान्त्रोक्त है और वह भावना पर है, जो कि अब लुप्त प्राय है, बहुत ही गिने-चुने विद्वान् इस प्रकार से पारद शुद्धिकरण कि क्रिया जानते हैं और उसे करते हैं |


२, नियमन – नियमन संस्कार से तात्पर्य एक ऐसे अश्व से पारद के इस संस्कार कि तुलना की गयी है, जो trained कर दिया गया है, वह नियम बढ़ किया हुआ है |

३, दीपन – बुभुक्षिकरण |   


प्र०- कायाकल्प क्या है ? यह किसके माध्यम से संभव है ?


उ०- ‘काया’ का अर्थ होता है शरीर और ‘कल्प’ यानि कि परिवर्तित हो जाना | अथ काया-कल्प का अर्थ है एक विशेष प्रक्रिया से परिवर्तित एवं दिव्य शरीर कि प्राप्ति ! हमारे पूर्वज ऋषियों ने पारद के माध्यम से कायाकल्प करके एक ऐसे दिव्य शरीर कि कल्पना की थी, जो पूर्ण कुण्डलिनी जागृत हो ! अष्ट पाशों से मुक्त हो ! छल विहीन, पूर्णतः स्वस्थ शरीर... क्यूंकि रोगी व्यक्ति आत्मा को नहीं मानता | ध्यान लगाने का तरीका तो अष्ट पाशों से मुक्त होकर ही संभव है, जहाँ किसी प्रकार का भय, लज्जा, घृणा इत्यादि न रहे | और भले ही हम यह बात इतनी सहजता से न स्वीकार कर पाएं, पर हम स्वस्थ दीखते तो हैं पर हम हैं वास्तव में रोगी.. हमारी कुंडलिनी  भी जागृत नहीं है ! क्यूंकि कुण्डलिनी जागृत तो उस शिशु का है, जिसके चेहरे पर एक छोटी सी शिकन भी नहीं आती, वह कितना ही खेले थकता नहीं है, हम तो थोडा सा काम करते ही थक-से जाते हैं, यह इस बात का सूचक हैं कि हुमने कुल-कुण्डलिनी शक्ति का उपयोग नहीं सीखा |




प्र०- बुभुक्षित पारद का क्या महत्व है ?

उ०- बुभुक्षित पारद कल्प चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण अंग है | यह केवल मात्र एक अध्याय नहीं है, औरंगज़ेब से लगाकर श्यामगिरी सन्यासी, ऐ० पी० आचार्य और कृष्ण पाल शास्त्री जी तक भी इसके लिए कई जगह भटके हैं, वह बुभुक्षिकरण कि ही क्रिया है जिसे भली प्रकार से सीखकर और संपन्न कर हम पारद को ज्यादा से ज्यादा शक्ति संपन्न बना सकते हैं | इसके बाद ही हम इसे विभिन्न रत्नों का ग्रास, स्वर्ण ग्रास, हीरक ग्रास आदि देकर विभिन्न प्रकार से उपयोग कर सकते हैं अपनी इच्छा अनुसार | पदार्थ परिवर्तन में यह क्रिया बहुत अहम् भूमिका निभाती है |



प्र०- यह अति-दुर्लभ बुभुक्षिकरण क्रिया किस प्रकार से संपन्न की जाती है ?


उ०- बुभुक्षिकरण क्रिया संपन्न करने के कई तरीके हैं, पर शास्त्र मात्र इसका आभास मात्र ही करते हैं, कहीं भी इसकी पूर्ण विधि नहीं बताई होती | इस क्रिया को दिव्य वनस्पतियों के द्वारा, वानस्पतिक विष के द्वारा, खनिज विष के द्वारा, चूने इत्यादि के द्वारा संपन्न करते हैं मगर यह भी समझना यहाँ अति आवश्यक है कि बुभुक्षिकरण किस प्रकार से करें, क्यूंकि आगे यह पारद भक्षण करेगा तो वह कितनी मात्रा में भक्षण करेगा, वह इसी से तो निर्धारित होता है |


Wednesday, May 21, 2014

पारद के बारे में... ३




क्योंकि भगवान शिव के ३२ नाम हैं, भगवान शिव के ३२ रूप हैं और भगवान शिव के ३२ विग्रह हैं, इसलिए ३२ बार पारद को बद्ध करते समय उसमें स्वर्ण ग्रास दें | और ३२ बार स्वर्ण ग्रास दिया हुआ जो पारद आबद्ध होता है वह पूर्ण रूप से इस प्रकार के शिवलिंग में सहायक होता है | मगर यह बात भी बताई गयी है कि इस क्षण विशेष में ही उसको स्वर्ण ग्रास दिए जायें | स्वर्ण ग्रास देते समय इस बात का भी चिंतन रखें---


लक्ष्मी त्वां वदितं वदैत रूपितं चर्वो स्वामं पूर्वतः 
स ग्रासं वदीतं वदतम रूपितं शिवलिंग पूर्व लाभ भवेत |

...कि प्रत्येक उस क्षण को गुरु पकडे जिस क्षण विशेष में लक्ष्मी चैतन्य होती है है | यदि उस क्षण विशेष में स्वर्ण ग्रास दिया जाये तो उस शिवलिंग में लक्ष्मी स्वयं स्थापित होती ही है | पूरे १६ घंटे तक वह प्रक्रिया संपन्न करे और प्रत्येक घंटे में जब लक्ष्मी दो बार चैतन्य होती हो तो दोनों ही बार स्वर्ण ग्रास दे |

इस प्रकार से १६ घंटों में ३२ बार स्वर्ण ग्रास देकर उस पारद को पूर्ण रूप से आबद्ध करें और आबद्ध करने के बाद उससे शिवलिंग का निर्माण करें | शिवलिंग निर्माण के विषय में भी स्पष्ट बताया है - 

व्याघ्र वदितं चरेव रूपः सहितं वदेव पूर्णतः |

इस बात का चिंतन नहीं करें की समय ज्यादा व्यतीत हो रहा है या कम व्यतीत हो रहा है, मगर इस बात का चिंतन अवश्य रखें कि जब भगवान शिव और लक्ष्मी पूर्ण रूप से चैतन्य हों उसी क्षण विशेष में पारद के निर्माण की प्रक्रिया आरंभ करें |

और उस पारद का निर्माण करके उसके ऊपर पुनः भगवान् शिव के ३२ रूपों का व्यामोह करें, ३२ रूपों को आबद्ध करें, ३२ रूपों को उसपर स्थापित करें | वे ३२ रूप जो भगवान् शिव के बताये गये हैं वे हैं - 


सदा शिवाय नमः, रुद्राय नमः, कालाग्नि नमः, चिंतनाय नमः, विरूपाय नमः, वैद्रवाय नमः, लक्ष्मी रूपाय नमः, कृष्ण रूपाय नमः, मुक्ति रूपाय नमः, चिन्त्य रूपाय नमः, भवेश्वर्याय नमः, आबद्ध रूपाय नमः, पूर्णत्व रूपाय नमः, चैतन्य रूपाय नमः, क्रियमाणाय नमः, कालं तरायै नमः, पूर्णस्यायै नमः, सभामभैरवायै नमः, सचिन्त्य रूपाय नमः, पारदैश्वर्यै नमः, आबद्ध लक्ष्मी नमः, अन्नपूर्णायै नमः, दीर्घ रूपायै नमः, कालमुक्तायै नमः, मृत्युरूपायै नमः, गणेश रूपायै नमः, सरस्वतेश्वर्यायै नमः, पूर्णेश्वर्यायै नमः, कल्याण रूपायै नमः, पूर्ण आबद्ध रूपायै नमः, दीर्घ रूपायै नमः, कल्याणार्थ सदां पूर्वश्याम सः दीर्घ रूपाय नमः |


इस प्रकार से इन सब रूपों का उसमें स्थापन करने के बाद चार विशेष रूपों का भी स्थापन करें -

अमृत्यु रूपाय नमः, अमृताय रूपाय नमः, कल्याण रूपाय नमः, पूर्ण कुबेर वैश्रवणाय नमः |


और इस प्रकार से जब ३६ रूपों की स्थापना होती है तो वह विग्रह अपने आप में चैतन्य, दिव्या और अद्वितीय बन जाता है | इस प्रकार भगवान् सदा शिव के पांच तोले या ११ तोले के शिवलिंग का निर्माण करें | पांच तोले के शिवलिंग में पञ्चदेव की स्थापना होती है और ११ तोले के शिवलिंग में एकादश रूद्र की स्थापना होती है | और ये एकादश रूद्र अपने आप में सम्पूर्ण सिद्धियों को देने वाले हैं | रावण संहिता में तो स्पष्ट रूप से कहा है -

पारदं शिवलिंगं वा स वातं वदैव र्वै
स सिद्धिं भावते रूपः स चिन्त्यं वदवै वदः |

यदि रसेश्वरी दीक्षा से संपन्न गुरु स्वर्ण ग्रास दिए हुए और विशेष मुहूर्त में निर्मित इस प्रकार के एकादश तोले के शिवलिंग का निर्माण करके उसके ऊपर ३२ विशेष भगवान् शिव के रूपों को स्थापित करके उसको किसी व्यक्ति के घर में स्थापित करता है तो यह संभव ही नहीं है कि उस व्यक्ति को भगवान् शिव के साक्षात् दर्शन प्राप्त नहीं हों |

न मंत्रं, न तंत्रं, रूपं तदेवाः सवितं सदेवं वहितं वदेवः |


इसमें न कोई तंत्र की जरुरत है, न मंत्र की जरुरत है, इसमें भगवान शिव के रूद्राभिषेक की भी जरूरत नहीं है | इस बात की भी जरुरत नहीं है कि पुष्पदंत के शिव महिम्न स्तोत्र का उच्चारण किया जाए | यह तो केवल शिवलिंग का स्थापन करने की क्रिया है, और ऐसा शिवलिंग निश्चित रूप से अपने आप में दिव्य स्वरुप प्राप्त होता है | और दिव्य स्वरूप प्राप्त होने के कारण वह पूर्ण रूप से दर्शन देने में समर्थ होता ही है | पापी से पापी, और अधम से अधम व्यक्ति भी यदि ऐसे शिवलिंग का अपने घर में स्थापन करता है तो निश्चय ही भगवान सदाशिव उसे प्रत्यक्ष दर्शन देकर के पूर्णत्व प्रदान करते हैं |

क्योंकि उस शिवलिंग में सभी रूपों के समावेश होता है, जिन रूपों के माध्यम से भगवान सदाशिव प्रसन्न होते हैं | और फिर अतुलनीय धन, वैभव और ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिए भी रावण संहिता में एक विशेष प्रयोग दिया गया है इस पारद शिवलिंग पर ...


(क्रमशः...)

Tuesday, May 13, 2014

पारद के बारे में.....- 2



ध्यायं पारद विस्मयवात परितं श्री रूप मेव वदा
गिरवण मदितं भवेत वरितम रूपं मदैव आवदा

पारं पारमदमुच्रूप सरीतं व्यामोह रूप वता

सिद्ध पूर्ण वदैव पूर्ण सरित शम्भो त्वमेव वदे |



जीवन में सौभाग्यशाली व्यक्ति होते हैं जो भगवान शिव की आराधना में प्रवृत्त होते हैं, उन लोगों का जीवन धन्य है जिन्होंने अपने जीवन में भगवान् पारदेश्वर के दर्शन किए हों | वे माताएं धन्य हैं जिन्होंने ऐसे पुत्रों को जन्म दिया जो भगवन पारदेश्वर कि आराधना में रत रहते हैं | और वास्तव में ही जीवन का सौभाग्य, जीवन कि पूर्णता इसी में है कि कम से कम एक बार तो अवश्य ही अपने घर में भगवान पारदेश्वर के एक विग्रह को स्थापित करें, उन पर प्रक्षालित जल को अपने शरीर पर छिडकें, उन पर अर्पित जल का अमृतपान करें और एक प्रकार से मानसिक और आध्यात्मिक पवित्रता को प्राप्त करते हुए जीवन कि उन उचाईयों को स्पर्श करें, जो जीवन को सौभाग्यशाली बनाती हैं, जो जीवन को अद्वितीय बनाती हैं, जो जीवन को जाज्वल्यमान बनाती हैं !


इस श्लोक में अत्यंत ही महत्वपूर्ण बात कही गयी है कि जीवन का सौभाग्य पारदेश्वर का दर्शन करने में है और पारद के बारे में शास्त्रों में सैकड़ों-सैकड़ों बातें लिखी हुई हैं, सैकड़ों-सैकड़ों तथ्य इस बात को सपष्ट करते हैं कि -

पारदं परमेवं वा पूर्णमेवं वदंतः सः पारद मेवतां म्युदे दर्शनाद भव मुच्यते |

पारा तो एक प्रवाहशील पदार्थ है, परन्तु अगर उसमें स्वर्ण ग्रास दिया जाए, स्वर्ण ग्रास देकर के पारद को अत्यंत ही भव्य और दुर्लभ बनाया जाए और इस प्रकार से स्वर्ण ग्रास दिए पारद को आबद्ध करके उससे शिवलिंग का निर्माण किया जाये, तो ऐसा शिवलिंग संसार का दुर्लभतम शिवलिंग होता है | ऐसा शिवलिंग घर में स्थापित करना ही जीवन की श्रेष्ठता है | ऐसे शिवलिंग की प्राप्ति ही जीवन की पूर्णता है और रावण संहिता में बिलकुल ही स्पष्ट रूप से विवेचन किया गया है कि रावण जब भगवान शिव को प्रसन्न नहीं कर सका, अत्यंत प्रयत्न करके भी जब शिव का सान्निध्य उपलब्द्ध नहीं कर सका तो उसने अपने गुरु से इस बात की याचना की मैं किस प्रकार से भगवान शिव को प्रसन्न करूँ... 

तो उन्होंने पारदेश्वर के बारे में विस्तार से विवेचन करके समझाया कि भगवान् शिव के दर्शन करने का एकमात्र उपाय पारदेश्वर की स्थापना ही है, अत्यंत शुद्ध, लौह रहित, शुभ्र ज्योत्सनित और दिव्य पारे को लेकर के ऐसा गुरु जो रसेश्वरी दीक्षा से संपन्न है, जिन्होंने अपने जीवन में रसेश्वरी दीक्षा प्राप्त की हुई है, जिन्होंने अपने जीवन में रसेश्वरी दीक्षा दी है |

‘प्रदानं उपलब्धं वा’ जिसने ली भी है और रासेश्वरी दीक्षा देने का विधान भी जिसके पास है, वह इतने उच्चकोटि के पारद को लेकर के उसको आबद्ध करने की क्रिया संपन्न करे और पारे को ठोस बनाते हुए निरंतर उसमे ३२ बार स्वर्ण ग्रास दे जिससे कि -

स्वर्णोपमं पूर्वतं मदैव तुल्य सभ्यताम
वदेव च तं ममक्ष वाट रूपः |

ऐसा स्वर्ण ग्रास दिया हुआ पारद अपने आप में ही अत्यंत भव्य और दर्शनीय बन सके | परन्तु इसके साथ एक बात और कही है -

चैवं वा वदितं वदित रूकितं चर्वो स्तां सूर्यवांन ज्ञानं नमतं वदेतं तुलितं आत्मोत्तम वाक् कृपः |

ऐसा गुरु जिसको पारा आबद्ध करने की क्रिया नहीं आती हो, ऐसा गुरु जिसने अपने जीवन में पारे को आबद्ध नहीं किया हो, ऐसा गुरु जिसने पारे को स्वर्ण ग्रास देने की क्रिया नहीं जानी हो, ऐसा गुरु जिसने रसेश्वरी दीक्षा को प्राप्त नहीं किया हो, वह उस पारदेश्वर विग्रह को निर्माण भी नहीं कर सकता, उसका स्थापना भी नहीं कर सकता ! परन्तु जिसको इस बात का ज्ञान है, जिसके पास इस बात का चिंतन है वह इस प्रकार से पारदेश्वर का निर्माण कर सकता है | रावण संहिता में एक स्थान पर स्पष्ट रूप से लिखा है - 

पुष्यं पूर्ण मदैव रूप चरितं स वित्तां पूवतःस्वर्ण ग्रासेव वदाम तुताः पूर्णमेवं वदेतः |

पुष्य नक्षत्र हो और पूर्णा तिथी हो और उसमे भी भगवान शिव के सायुज्य नक्षत्र हो, चन्द्रमा वाम हो और अग्निकोण में लक्ष्मी स्थापित हो और उस प्रकार से अद्भुत संयोगों से संपन्न जब अद्भुत योग आए तो उस क्षण विशेष में पारे को आबद्ध करें ! और पारे को आबद्ध करने के साथ-साथ उसमे स्वर्ण ग्रास भी दें, भगवान् शिव के ३२ नाम हैं, भगवान शिव के ३२ रूप हैं और भगवान् शिव के ३२ विग्रह हैं, इसलिए ३२ बार पारद को बद्ध करते समय उसमें स्वर्ण ग्रास दें | और ३२ बार स्वर्ण ग्रास दिया हुआ जो पारद आबद्ध होता है वह पूर्ण रूप से इस प्रकार के शिवलिंग निर्माण में सहायक होता है !
                                                             - from Vishwa ki Shresth Dikshayein book by Pujya Gurudev.


(क्रमशः...)

Thursday, May 8, 2014

पारद के बारे में...

Raslingam


पारा एक मूल्यवान धातु है
, जिसे संस्कारित करने से यह सभी धातुओं में सबसे ज्यादा मूल्यवान और गुणकारी बन जाता है, जिससे यह आध्यात्मिक और चिकित्सा दोनों क्षेत्रों में प्रत्येक प्रकार से पूर्णता देने में यह समर्थ हो जाता है | पारद तो एक ऐसी धातु है जो सभी अन्य धातुओं से भिन्न है, सामान्य तापमान में यह रहता है तरल रूप में, जबकि सभी अन्य धातु होते हैं ठोस ! पारद में ऊर्जा ग्रहन करने की और आकर्षण की तीव्र क्षमता होती है, इसीलिए तो इसका महत्व आकर्षण साधना , लक्ष्मी आकर्षण साधना , श्री साधना में सर्वाधिक महत्व रखता है | आपने खुद देखा होगा, जब हम एक Thermometer को अपने शरीर से सटाते हैं तो बस कुछ ही पलों में पारा फैलने लगता है, और हमारे शरीर के तापमान जितना फैल जाता है, इसकी इस प्रक्रिया को Thermal Expansion कहते हैं, इसका अर्थ ये निकलता है कि ऊर्जा से इसका सम्बन्ध आसानी से स्थापित हो जाता है, यह किसी भी प्रकार की उर्जा को ग्रहण करने में अन्य धातुओं के मुकाबले कई गुणा ज्यादा सक्षम है, अगर यह बिना संस्कारित किये और कई प्रकार के दोषों से युक्त भी ऐसा कर लेता है तो संस्कारित पारद तो निश्चित रूप से सोच से कई गुणा अधिक सकारात्मक परिणाम अवश्य देगा !

अब आप कल्पना करिए की अगर आप कोई यन्त्र या फिर पारद शिवलिंग कहीं से प्राप्त करके इसपर आप साधना संपन्न करते हैं, पूजन करते हैं, तो क्या आपको कोई सफलता पाने से रोक सकता है ?? नहीं.... सफलता तो मिलती ही है साथ ही संस्कारित पारद आपके परिश्रम को और मंत्र जप का कई-कई गुणा बढ़ाकर फल प्रदान करता है ! बस वह सही तरीके से संस्कार संपन्न हो, तो...

अगर पारद शुद्ध हो, तो वह स्वाद रहित और गंध रहित होता है, और उसमे विलक्षण क्षमता होती है ग्रहण करने की, शास्त्रों के अनुसार जड़ी-बूटी जस्ते के द्वारा भक्षित है, जस्ता बंग से, बंग तांबे से, ताम्बा रजत से, रजत स्वर्ण से और स्वर्ण संस्कारित पारद के द्वारा बुभुक्षित होता है ! परन्तु पारद के संस्कारों में पारद का मुख खोलना अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं गोपनीय क्रिया है, इसको पढके तो समझा ही नहीं जा सकता, न किया जा सकता है ! पारद कौन सी विधि से या किस प्रयोग को करने के पश्चात बुभुक्षित होगा  ?.........

और बुभुक्षित पारद भी कई प्रकार के होते हैं, आपको कितनी भूख लगी है, उतना ही भोजन आप खायेंगे. अगर 'राक्षस बुभुक्षित' हो गया है पारद तो बहुत ज्यादा स्वर्ण या अन्य ग्रास उसे देना पड़ेगा ! अगर भस्म बुभुक्षित हो गया, तो उसकी भूख अनंत है, जो भी खिला लो जितना भी खिलालो सब भस्म ही होना है | अतः इसमें यह बहुत आवश्यक है कि वह सामान्य बुभुक्षित हो, ताकि हम उसे स्वर्ण ग्रास दें, या अन्य ग्रास दें और वह उसे ग्रहण करके लाभप्रद भी हो !

पारद संस्कार में अत्यधिक महत्वपूर्ण एक और संस्कार है जिसके द्वारा हम पारद को नपुंसकता से पौरुषवान बनाते हैं, उसके बाद ही तो वह आपके लिए फलप्रद हो पायेगा ... पहले कैसे ?? अगर पारद से वेधन कराना है, और उसे पौरुषता प्रदान नहीं करी, वह अभी बाल्यावस्था में ही है, तो वह वेधन कैसे कर सकता है !
तो यह कैसे संभव हो पायेगा
, और कितना समय इसके लिए लगेगा, जब हम सामान्य मनुष्य को बड़े होने में इतने साल लग जाते हैं तो... पर मित्रों, यह सब क्रियाएं भी मुश्किल नहीं रह जातीं, बस समझाने वाला और सिखाने वाला होना चाहिए..:) जो कि आज कल दुर्लभ ही नहीं अति दुर्लभ बात है.

अब बात करते हैं इनके प्रयोगों की.. आपमें से कितनों ने विभिन्न प्रकार के लुभावने लेख पढके अपने पास पारद के विग्रह और सामग्रियां मंगायीं होंगी, पिछले कुछ वर्षों में.. जो होड़ लगी थी, उसमे कौन नहीं शामिल था ! और ऐसे-ऐसे व्यक्ती भी आज हैं जिन्होंने जल्दी-जल्दी लाखों तक की सामग्री तो मंगवा ली घर में, पर उसपे किये जाने वाले प्रयोग एक भी नहीं मालूम ! खैर प्रयोग तो आप बाद में सीख लेंगे, पहले ये तो देखें कि क्या आपने जो पारद विग्रह मंगाई है क्या वह शुद्ध पारद से निर्मित है ??

क्या उसपे काले-काले परत जम जाते हैं
, उसके ऊपर से....?
और क्या आपको उसे प्रदान करते समय ये कहा गया था कि यह धन की वर्षा सी करा देता है, पर इसके बावजूद भी आप जस के तस हैं, व्यापार ठ़प का ठप है ...? ऐसा कैसे हो सकता है, यदि शुद्ध, बिलकुल pure पारद है तो ऐसा तो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही संभव नहीं है, जब शास्त्रों में लिख दिया है की ऐसे संस्कारित स्वर्ण ग्रास दिए हुए पारद के शिवलिंग के पूजन से १००० गौ दान का पुण्य मिलता है, तो वह सारा पुण्य कहाँ गया ?

कहीं किसी की जेब में तो नहीं गया........ :P

इस सब फरेब और फ्रॉड के लिए जो जिम्मेदार है, वह शक्श कौन है.....

(क्रमशः)