परम पूज्य सगुरुदेव जी ने कई ऐसे रस सिद्धों का उल्लेक अपने ग्रन्थ में किया है, उनमें से काशी के सुधीर रंजन भादोड़ी महाशय जी, एवं इनके पुत्र बम गोपाल भादोड़ी हैं, A. P. Patel जी हैं..|
गुरु गोरखनाथ जी द्वारा रचित एक ग्रन्थ है जिसका नाम है ‘प्राण सांगली’, वह हिमालय
के एक मठ में रखी गयी है, जिसमें पारद के अद्वितीय देह सिद्धि और लौह सिद्धि रहस्य
लिखे हुए हैं | और यह ग्रन्थ तो आज भी हमारे बीच उपलब्द्ध है | इस प्रकार के अन्य
कई ग्रन्थ आज भी सहज सुलभ हैं, जिनका अध्ययन हम कर सकते हैं एवं लाभ ले सकते हैं |
पारद संस्कारों में अत्यंत महत्वपूर्ण क्रिया है धातु बीज निर्माण कि क्रिया | आज
हम इसी विषय पर कुछ चर्चा करते हैं |
बीज निर्माण कि परिभाषा क्या है ?
उच्चतर धातुओं के ऊपर निम्नतर धाराओं के धातुओं का निरहन करने कि क्रिया को हम बीज निर्माण कहते हैं | निरहन का तात्पर्य है कि उसको खरल करके लुप्त कर देना | यानि उसके स्थूल अंश को ख़त्म करके उसके प्राणांश और आत्मांश को लेना | यानि स्थूल धातुओं के प्राणान्श या आत्मांश को किसी उच्च धातु के ऊपर समायोजन करने कि क्रिया को ही हम ‘बीज निर्माण’ कहते हैं | जैसे लौह, शीशा, ताम्बा, जस्ता इयात्दी का किसी एक उच्च धातु जैसे स्वर्ण या अभ्रक सत्व पर समायोजित कर देना |
यह तो हम सभी जानते हैं कि स्वर्ण से उच्च कोई अन्य धातु नहीं है, लेकिन यह बात अत्यंत
महत्वपूर्ण और समझने योग्य है कि पारद ग्रंथों में ‘अभ्रक सत्व’ को भी स्वर्ण के
समकक्ष माना है | अभ्रक सत्व मुख्य रूप से कई धातुओं का समूह होता है, इसके अन्दर
समस्त धातुओं को धारण करने कि क्षमता रहती है | अभ्रक सत्व को महारस बीज कि संज्ञा
दी है, तो उन विद्वानों ने यूँ ही नहीं दी है.....
बीज निर्माण क्यों करते हैं ?
अग्निस्थायिकरण एवं समस्त धातुओं का शोधन करने के लिए हम बीज निर्माण करते हैं |
धातु शोधन के पीछे हमारा उद्देश्य क्या है ?
धातु शोधन करने के पीछे जो हमारा मूल उद्देश्य है, वह यह है कि हम उसके घनत्व को
और तापमान को पारद के या स्वर्ण के निकट ले जा सकें | जैसा कि ऊपर बताया गया है,
अभ्रक सत्व में कई सारे धातुओं का सत्व है, आधुनिक सिद्ध रसायन विज्ञान में एक अति
महत्वपूर्ण बात यह कही है, कि अभ्रक सत्व ही अग्निस्थायी पारद है, और अग्निस्थायी
पारद ही अभ्रक सत्व है ! मगर इसकी गुप्त कुंजी तो सद्गुरु ज्ञान से ही प्राप्य है
कि यह किस प्रकार से संभव है, इसका प्रयोग किस प्रकार से है |
समस्त बीजों में श्रेष्ठ निर्माण कौन से हैं ?
स्वर्ण महानाग बीज, अभ्रक सत्व, ताम्र एवं अष्ट प्रकार के लौह इन सभी को समस्त बीजों में श्रेष्ठ बीज निर्माण कहा गया है |
रस ह्रदय तंत्र के ग्रंथकार, श्री A. P. Acharya जी, जिन्होंने अहमदाबाद में 1969 को
सिद्ध पारद के १३ संस्कार संपन्न करके प्रायोगिक रूप से स्वर्ण निर्माण करके दिखलाया
था ! यह खबर गुजरात के अख़बारों में आई थी, पर अंत में इन्होने प्रयाग में सन्यास
ग्रहण कर लिया और हरिश्वरानंद जी के नाम से प्रसिद्ध हुए | सदगुरुदेव जी ने अपने
ग्रन्थ में जो A.
P. Patel(आत्माराम प्रभुराम
पटेल) का ज़िक्र किया है वो इन्ही के बारे में ज़िक्र किया है |
इनके द्वारा रचित एक बहुत ही दिव्य पुस्तक है जिसका नाम है, “मनुष्य अवतार”,
जिसमें साधारण मनुष्य से पूर्ण योगी बनने तक कि यात्रा इसमें लिखी है, यह ग्रन्थ
अगर किसी भी भाई को अध्ययन करने कि इच्छा हो तो मुझसे प्राप्त कर सकता है,
व्यक्तिगत रूप से मिलकर, J
निखिल प्रणाम..
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