Gait ka ek drishya |
अभी कुछ दिन पहले ही मैं अपने ननिहाल से वापस आया हूँ , मेरा ननिहाल राजस्थान के करौली जिले की तहसील टोडाभीम में है , ये गाँव पूरा चौहान राजपूतों का गाँव है । गाँव पहुंचा तो सबने बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया , सभी लोग बहुत खुश थे , मेरा सामान हवेली की तल मंजिल में एक बड़े कमरे में रखवा दिया गया , चूँकि इस समय गर्मी बहुत ज्यादा थी और गाँव में रात को ठंडी हवा चलती थी सो मैंने अपना ठिकाना बदल कर पहली मंजिल पर बने एक कमरे में कर लिया , मेरी नानी'सा को जब ये बात पता लगी तो उन्होंने साफ़ कर दिया की कुछ भी हो तुम अकेले नहीं रहोगे उस कमरे में , यही मत हवेली के अन्य लोगो का भी था लेकिन मेरी जिद के आगे सब लोगों को झुकना पड़ा ।
यह एक बड़ा कमरा था जिसमे एक झरोखा है , झरोखे के द्वार सामने बने हमारे गैत ( गाय - भैंस बाँधने का स्थल ) में खुलते हैं। गैत में ही एक बड़ा पीपल का वृक्ष है और पीछे की तरफ पहाड़ हैं । मैं प्रकृति के नजदीक रहने का शौक़ीन हूँ सो दिन भर गाँव में खूब घूमना होता , सुबह होते ही खेतों पर एक खंजर और अपने हाइकिंग शूज पहनकर घूमने निकल जाता और दिन चढ़ने तक वापस आता , अभी मैंने देखा की गाँव की सीमा पर तीन मंदिर बनाये गए हैं ये सब मंदिर आस पास ही हैं , एक मंदिर भैरव जी का है , एक ग्राम देवता का और एक हनुमान जी का , अक्सर मैं गाँव के बड़े बुजुर्गों के साथ में बैठा करता था , बातों ही बातों में उन्होंने बताया की ये तीनो देवता गाँव में आने वाली इतर योनियों से ग्रामवासियों की रक्षा करते हैं । दिन बड़े मजे से बीत रहे थे , एक दिन रात को आंधी आई और धूल उड़ने लगी , सब लोग हवेली में ही थे , आंधी के कारण बिजली चली गयी और मैं अपने कमरे में आ गया थोड़ी देर में जोरदार वर्षा होने लगी और मौसम अच्छा हो गया , मैंने अपने कमरे का झरोखा खोल लिया और पलंग पर लेट कर व्हाट्सप्प और फेसबुक में व्यस्त होकर नींद की प्रतीक्षा करने लगा । रात को ग्यारह बजे के आस पास मैंने पायलों की आवाज़ सुनी , शुरू में मुझे लगा की ये मेरा भ्रम है तो मैंने आँखें बंद कर ली लेकिन जैसे ही मुझे हलकी सी झपकी भी आती तो तुरंत पायलों की आवाज से मेरी आँख खुल जाती , ऐसा लग रहा था की कोई मुझे देख रहा है और मुझे सोने नहीं दे रहा , क्यूंकि जैसे ही मेरी आँख लगती वो पायलों की आवाज़ आ जाती , झरोखे पर लगा पर्दा उड़ रहा था , ये सब होते रात के 2 बज गए , मेरी आँख लग गयी थी अचानक….
बहुत जोर से पायलों की आवाज़ आई और ऐसा लगा कोई भाग रहा है , मैंने टोर्च ली और गुस्से में झरोखे पर गया , पर्दा हटा कर सामने देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी , एक औरत , बेहद चमकीले वस्त्र पहने हुए जैसा की हम लोग 1950 के दशक की फिल्मों में देखते हैं पहने हुए हमारे गैत की दीवार पर मेरी तरफ देखते हुए बेहद तेज चल रही थी , मैं घबरा गया और फटाफट झरोखा बंद किया और पलंग पर आकर बैठ गया , बोतल से पानी पिया और वहां रखे एक पुराने सिगरेट के पैकेट से एक सिगरेट निकाल कर पी , रात के दो बजे जगाऊँ भी किसको लेकिन मेरी आँखों में नींद नहीं थी , पायलों की आवाज़ रुक रुक कर बराबर आ रही थी , मैंने अपने ईरफ़ोन निकाले और गाने चला कर सोने की कोशिश करने लगा , ऐसे ही 2 घंटे और निकल गए , सुबह 5 बजे के आसपास आँख लगी और सुबह 10 बजे उठा , उठ कर सोचा की कोई सपना देखा अजीब सा , लेकिन झरोखा बंद पलंग के सिरहाने पड़े सिगरेट के फ़िल्टर को देख कर लगा की ये सपना नहीं था ।
नानी सा के पास गया और उन्हें सब कुछ बता दिया , उनके माथे पर मेरी बात सुन कर शिकन उभर आई , सिर्फ इतना कहा की आगे से ऊपर और उस कमरे में मत सोना अकेले , मैंने कारण पूछा तो टाल दिया , मैंने जब जोर दिया तब बताया की मेरे नानो'सा के पूर्वज वहां राजपूत जागीरदार थे , तब उस गैत में महफ़िल जमा करती थी जिसमे नाचने गाने वाली और कलालन (शराब निकालने वाली और परोसने वाली )औरतें उनका मनोरंजन करने आया करती थी , उन्ही में से एक नाचने गाने वाली औरत को लेकर एक महफ़िल में उनके पूर्वज और एक ठाकुर में बहस हो गयी जिसमे तैश में आकर उस ठाकुर ने उस औरत के दिल में अपना खंजर उतार दिया , एक महीने बाद ठाकुर भी खून की उल्टियाँ करते हुए मर गया , तभी से वह औरत उस गैत में घूमती है ।
ये सब सुनकर मैं स्तभ्द था लेकिन फिर बताया की वह गाँव के कई लोगो को दिखी भी है लेकिन उसने अभी तक किसी का अहित नहीं किया , बस कभी कभी पायलों की आवाज़ सुनाकर अपने वहां होने का सबूत दे जाती है |
- by DIGVIJAY SINGH RAJAWAT SALOLI.
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