पीताम्बरोऽथ बलिजिन्नागक्षयबहलराग गरूडचरः |
जयति स हरिरिव हरजो विदलितभवदैन्यदुःखभरः ||
पीताम्बर धारण करने वाले, यानी हरि पीत
वस्त्र धारण किये हुए रहते हैं, पुराणों में विष्णु कि
व्याख्या की गयी है..उनके बारे में बताया गया है... और हम श्रीमद्गोविन्दभगवत्पाद
द्वारा रचित 'रस हृदय तंत्र' के इस
श्लोक से पारद और हरि में समानता को भली-भाँती समझ सकते हैं, उन्होंने बहुत ही सुन्दर ढंग से इन श्लोकों में कुछ तथ्य बताये हैं,
जो कि आश्चर्यजनक हैं, महत्वपूर्ण हैं और
विचार करने योग्य हैं !
यहाँ हरि के बारे में क्या बताया गया है ? पीताम्बरः, पीत अंबर वस्त्र धारण किये हुए... और आगे हरि के बारे में क्या बताया गया है ? बलिजित..... यानि दैत्य राजा बलि को जीतने वाले, पुनः क्या बताया गया है ? नागक्षय.. शेषनाग आदि का अंत करने वाले; बहलराग गरूडचरः.... नागों का नाश करने में जिन्हें बहुत आनंद आता है, ऐसे गरूड पर बैठकर चलने वाले | इसके बाद क्या बताया है उन्हें ? विदलितभवदैन्यदुःखभरः... हरि संसार में दलित और दुखी जनों के दुःख को नष्ट करने वाले हैं, उन्हें सुख देने वाले हैं और मनोवांछित वर प्रदान करने वाले हैं | ऐसे हैं हमारे श्री हरि विष्णु |
और अब यदि हम पारद के गुणों को देखें, तो पारद
के भी क्या यही गुण नहीं हैं ? पारद भी श्री हरि विष्णु के
समान पीताम्बरः.... अभ्रक जारित है, अभ्रक जिसका रंग पीला
होता है, उससे जारित है | और आगे इसके
क्या गुण हैं ? पारद बलि जित... यानि गंधक जारित है, गंधक जो कि पारद को भी अपने अन्दर विलीन कर लेता है यानी पारे से ज्यादा
बलवान है, पारद उसपर भी जीत हासिल किये हुए है | पुनः इसके क्या गुण हैं ? पारद, नागक्षयबहलरागगरूडचरः है, क्यूंकि सीसे को नाग भी
कहा गया है संस्कृत में, और पारद सीसे का क्षय होने पर
अत्यंत तेजस्वी रंग को प्राप्त होने वाले सोने को खाने वाले हैं | इसके आगे ? विदलितभवदैन्यदुःखभरः.... संसार के
लोगों कि गरीबी और दुखों को नष्ट करने वाले हैं पारद | और ?...
हरज, यानि शिव जी के वीर्य या पुत्र, पारे कि जय.......||
NOTE - पारे में चारण करने के लिए स्वर्ण से कई प्रकार
के बीज बनाते समय उसमें सीसा या सीसे की भस्म को मिलाकर इतनी आँच देते हैं कि सीसा
नष्ट हो जाता है और केवल स्वर्ण शेष रह जाता है | इस क्रिया
से सोने के रंग और चमक में वृद्धि होती है |
पारद एक होते हुए भी अनेक, और अनेक होने पर भी दुबारा एक हो जाने कि क्रिया करता है | |
हरि सर्वव्यापी हैं | एक होते हुए भी
अनेक, और अनेक होते हुए भी एक हैं, और
बिलकुल यही गुण क्या पारद के भी नहीं हैं ? हमारे एक स्पर्श
से पारा सौ टुकड़ों में बंट जाता है और पुनः आपस में मिलते ही एक हो जाता है |
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