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Wednesday, February 12, 2014

Guru Pushyamrit Mahatwa



क्या ऐसा कोई योग है जिसमें  किसी भी साधना में निश्चित सफलता मिलती ही है ?
क्या ऐसा कोई दिन है जब व्यापार/शुभ कार्यादी करें तो उसमें हर हाल में उन्नति होती है ??
क्या ऐसा भी कोई अवसर है, जो अक्षय तृतीय एवं धनतेरस के बराबर महत्व रखता है ?

कल, 13 February, 2014, गुरु पुष्य नक्षत्र है, इस अवसर पर पाठकों के लिए प्रस्तुत है गुरु-पुष्य नक्षत्र कि महत्वता को दर्शाता ये महत्वपूर्ण लेख -


‘पाणिनी संहिता’ में “पुष्य सिद्धौ नक्षत्रे” के बारे में यह लिखा है-

सिध्यन्ति अस्मिन् सर्वाणि कार्याणि सिध्यः |
पुष्यन्ति अस्मिन् सर्वाणि कार्याणि इति पुष्य ||

अर्थात पुष्य नक्षत्र में शुरू किये गए सभी कार्य सिद्ध होते ही हैं.. फलीभूत होते ही हैं |
पुष्य शब्द का अर्थ ही है कि जो अपने आप में परिपूर्ण है.. सबल है.. पूर्ण सक्षम और पुष्टिकारक है..| हिंदी शब्दकोष में ‘पुष्टी’ शब्द का निर्माण संस्कृत के इसी पुष्य शब्द से हुआ | २७ नक्षत्रों में से एक ‘पुष्य नक्षत्र’ है, और इस दिन जब गुरुवार भी हो तो उसे गुरु पुष्य नक्षत्र या ‘गुरु पुष्यामृत योग’ कहते हैं | इस दिन कोई भी साधना अवश्य शुरू करें, और आँख मूँद कर उसकी सिद्धि का यकीन करें और पूर्ण तन्मयता के साथ सहना संपन्न करें | गरूर साधना और गुरु पूजन तो प्रत्येक शिष्य को इस दिन करना अनिवार्य ही है |

पूज्य गुरुदेव ने गुरु पुष्य की विशेषता स्पष्ट करते हुए कहा है, कि सभी योग विरुद्ध हों, तो भी पुष्य नक्षत्र में किया गया कार्य सिद्ध हो जाता है | पुष्य नक्षत्र अन्य सभी योगों के दोषों को दूर कर देता है, और पुष्य के गुण किसी भी दुर्योग द्वारा नष्ट नहीं हो सकते !


गुरु पुष्य में कौन सी साधना संपन्न करें ?

सामान्य लोग इस दिन स्वर्ण खरीदते हैं, यदि धनतेरस के दिन स्वर्ण/रजत नहीं खरीद पाए तो इस दिन खरीद सकते हैं, इससे भी निरंतर श्री वृद्धि होती रहती है | इसके साथ ही कोई नई वस्तु, नया कारोबार, वाहन गृह प्रवेश आदि कर सकते हैं, इस दिन जो भी खरीदते हैं वह स्थायी संपत्ति सिद्ध होती है |

साधकों को इस दिन लक्ष्मी या श्री से सम्बंधित साधना करनी चाहिए | साथ ही किसी भी प्रकार की साधना चाहे सौन्दर्य से सम्बंधित हो, कार्य सिद्धि हो, विद्या प्राप्ति के लिए हो, कर सकते हैं | 
इस दिन आप किसी भी यन्त्र का लेखन करके उसको प्राण-प्रतिष्ठित कर सकते हैं | इस दिन आप किसी भी रत्न को सिद्ध कर सकते हैं | 

शिष्यों को इस दिन गुरु पूजन और गुरु मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए |

गुरु पुष्य में क्या ‘नहीं’ करना चाहिए ?

सभी शुभ कार्यों को इस दिन संपन्न किया जा सकता है, केवल एक को छोड़कर..... ‘विवाह संस्कार’..
शाश्त्रों में उल्लेखित है कि एक श्राप के अनुसार इस दिन किया हुआ विवाह कभी भी सुखकारक नहीं हो सकता | माता सीता का प्रभु राम से विवाह इसी योग में हुआ था |


आखिर इस योग के सिद्धिदायक होने के पीछे रहस्य क्या है ??

इसका कारण यह है कि इस विशेष योग में जो नक्षत्र आकाश मंडल में मौजूद होता है, पुष्य नक्षत्र, इसके स्वामी ग्रह शनि हैं | शनि ग्रह स्थायित्व प्रदान करने वाले हैं.. इनकी चाल अत्यंत धीमी होती है, जो भी Astronomical Science के student हैं वे इस बात को भली प्रकार से जानते ही होंगे | और इस दिन गुरुवार हो, तो, गुरु जो स्वर्ण, धन, ज्ञान के प्रतीक हैं, और सर्व सिद्धिदायक हैं, जो सभी ग्रहों में सर्वाधिक शुभ फल दी वाले हैं, इनके प्रभाव से प्रत्येक कार्य सिद्ध भी होता है.. और शनि के कारण स्थायी भी होता है |
शनि एकांत प्रदान करते हैं, जो कि साधना के लिए आवश्यक अंग है | 

AGNIHOTRA.... सभी मनोरथों को सिद्ध करने में सक्षम..



लक्ष्मी प्राप्ति के लिए एक सरल सा प्रयोग है, जो कि पिछले हज़ारों साल से हमारे पूर्वजों ने किया है और आज भी यह प्रयोग इतना ही सक्षम है | इसके लिए ‘श्री पंचमी’ को, या किसी भी शुक्ल पक्ष की पंचमी को, केवल १६ आहुतियाँ 'श्री सूक्त' के प्रत्येक श्लोक के साथ एक-एक बार देनी होती है | मात्र घृत और कमलगट्टे के एक-एक बीज से कुल १६ आहुतियाँ देनी है | प्रत्येक महीने इस छोटे से क्रम को करने से जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन आता है, घर में लक्ष्मी के आगमन के साथ-साथ, सुख-समृद्धि और सभी ओर से शुभ समाचार तो आते ही हैं, साथ ही अग्निहोत्र से उठी शुद्ध वायु वातावरण को भी पवित्र बनाती है |


जिनके घर में नियमित रूप से यज्ञ होता है उनके परिवार में लोग बहुत कम ही बीमार पड़ते हैं | इसके पीछे भी वैज्ञानिक आधार ही है | यज्ञ से जो स्वच्छ प्राण वायु घर के वातावरण में फैलती है, उससे रोग कारक कीटाणु स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं, मन में प्रसन्नता आती है, शरीर के अन्दर कि प्राण-वायु भी उर्ध्वगामी होती है, जिससे की रोग, अगर है भी, तो समाप्त होने लगता है !



कई साधक कठिन साधना करने के बावजूद भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते, कई रोज़ मंत्र जाप करने के बाद भी उन्हें पूर्णता प्राप्त नहीं होती, कारण यह है कि जब तक आत्मा के इर्द-गिर्द एकत्र पाप समाप्त नहीं हो जाते, तब तक मन दिव्य नहीं हो सकेगा, और बिना पवित्र मन के प्रभु दर्शन तो कठिन ही नहीं बल्कि असंभव भी है | हम ये तो जानते हैं की प्रत्येक मंत्र की सिद्धि के लिए किये गए जप का दशांश हवन अनिवार्य होता है, पर आलस्य वश करते नहीं.. और जब करते नहीं तो सफलता के द्वार पर आते-आते पहले ही रुक जाते हैं ! इसके बजाए मंत्र जप के साथ ही पूरी विधि से आवश्यक अग्निहोत्र/हवन भी करें तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होगी ही होगी |



शरीर को बाहर से पवित्र बनाने के लिए स्नान इत्यादि आवश्यक क्रम है, परन्तु शरीर को अन्दर से पवित्र करने के लिए आवश्यक है की हम उस प्रकार के वातावरण में रहे जो आंतरिक दृष्टि से हमें स्वत्छ और दिव्य बनाये | शाश्त्रों के अनुसार यह यज्ञ के माध्यम से ही संभव है, क्योंकि यज्ञ करते समय विशिष्ट मन्त्रों के उच्चारण और श्रवन से सुमधुर पवित्र वातावरण की श्रृष्टि होती है, तथा यज्ञ से निकले धूम्र का प्रवेश जब हमारे शरीर में होता है तो वह अन्दर के भागों को पवित्र और निर्मल बना देती है |



यज्ञ कैसे करें ?


यज्ञ करने की सामान्य और सरल विधि सदगुरुदेव द्वारा लिखित पुस्तक ‘सर्व सिद्धि प्रदायक यज्ञ विधान’ से देख के आप कर सकते हैं, सामान्य सरल यज्ञ के लिए तो ज्यादा जटिलता की जरुरत भी नहीं है केवल कलश स्थापन कर सरल संक्षिप्त विधि से तिल, जौ और घृत से अथवा केवल घृत से भी आप आहुतियाँ दे सकते हैं | इसके लिए कोई तांबे का छोटा स हवन कुण्ड लाकर रख सकते हैं बाज़ार से.. या फिर मिटटी के पात्र में ही बालू डालकर उसमें आहुतियाँ दे सकते हैं | इसके लिए आम/पीपल/ढाक की लकड़ी किसिस भी पूजा की दुकान से मिल सकता है |



यज्ञ कब करें ?

प्राचीन काल में प्रत्येक गृहस्थ प्रातः काल उठकर स्नान इत्यादि कर अपने कुल देवता के मंत्र से और अन्य मंत्र से अग्निहोत्र अवश्य करता था | इससे उसके घर में पवित्रता का वातावरण बना रहता था और कोई अभाव, परेशानियाँ, दुःख इत्यादि व्याप्त नहीं होता था | 



इतिहास साक्षी है, कि जब तक भारत में अग्निहोत्र की परम्परा कायम रही, तब तक व्यक्ति दीर्घायु, स्वस्थ और सुखी बना रहा, उसकी पारिवारिक समस्याएं कभी नहीं उभरीं | उसके पूरे परिवार में एक आदर्श भरा माहौल बना रहा, कभी कोई तनाव का वातावरण नहीं उभरा | परन्तु इसके विपरीत जब से यज्ञों की महत्ता कम हुई तब से संसार में किस प्रकार के वातावरण की श्रृष्टि हुई है, ये किसी से भी छिपा नहीं है, आज घर-घर में लड़ाई झगडे, आपस में द्वेष, मनमुटाव... इन सब के मूल में वातावरण का ही दोष है |



अतः प्रत्येक गृहस्थ को चाहिए की वो प्रयत्न कर सप्ताह में एक बार तो यज्ञ अवश्य कर ले, चाहे थोडा स ही समय दे, लेकिन दे अवश्य | अगर यह भी संभव न हो सके, तो महीने में एक बार, पूर्णिमा या अमावश्य या किसी शुभ तिथि में तो जरुर यज्ञ/अग्निहोत्र करे | 



साधना में उपयोगिता..


अग्निहोत्र की महत्वता तो हम हमारे जीवन में समझ चुके हैं, मगर साधनात्मक जीवन में भी इसका एक विशेष महत्व है.. किसी भी मंत्र जाप या प्रयोग में उपयोग होने वाली माला के साथ..| अगर हम अभी भी ये समझ रहे हैं कि हम कहीं से भी कोई मानकों की माला बाजार से या कहीं दुकान से खरीद कर ले आएंगे और उसपर दो-चार दिन मंत्र जाप कर लेंगे और हमे सफलता भी प्राप्त हो जाएगी, तो ये हमारी भारी भूल है | अब आज-कल तो खैर, दीक्षा लेने के लिए या साधना में बैठने के लिए भी ४०००-६००० मूल्य देकर बैठना होता है और जो माला उन्हें दी जाती है वह गुँथी हुई भी नहीं होती ! इस प्रकार से साधना करने से किसको कितना लाभ हुआ है इसपर अब मैं और कुछ लिखना उचित नहीं समझता हूँ | क्यूंकि अधिकतर साधकों की यही शिकायत रही कि मैंने तो ५० से ऊपर दीक्षाएं लीं... प्रत्येक चरण की दीक्षा ली.. परन्तु हुआ कुछ भी नहीं. 



आपको यह ज्ञात होना चाहिए कि जप-माला निर्माण की अपनी एक विशिस्थ विधि होती है | उसके मानकों को कुंवारी कन्या ‘ॐ कार’ की ध्वनि के साथ ढाई गाँठ या तीन गाँठ के साथ पिरोये | प्रत्येक कार्यों के लिए अलग-अलग धागे से और अलग-अलग रंग से माला पिरोई जाति है | इसके बाद उस माला को सद्योजात मंत्र से, वामदेव मंत्र से, अघोर मंत्र से, ईशान मंत्र से पवित्र किया जाता है, फिर इसके बाद हवन से उसे शुद्ध करके ईष्ट देव की स्थापन की जाती है | मैंने तो यह देखा है कि उन जगहों पर दी जाने वाली माला गुँथी हुई भी नहीं होती है, तो इसके आगे का क्रम तो क्या ही किया गया होगा !! सदगुरुदेव जब हमें दीक्षा देकर साधना करवाते थे, तो उसकी तो पुरे शरीर के विभिन्न अंगों में देव स्थापन करवाते थे, यन्त्र को विशेष प्रकार से पुजन करवाते थे, तब कहीं जाकर हम मंत्र जाप शुरू करते थे.. इसीलिए मैंने सोचा अब खुद ही माला बनाऊँगा, खुद ही साधना करूँगा | अब भी जो साधक मुझसे माला प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें यहीं बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के ब्राह्मणों से सिध्ह करवाके देता हूँ, क्यूंकि भगवान् के साथ पाखंड/buisiness तो नहीं चलता न..



क्या अग्निहोत्र Nuclear Radiation के प्रभाव को रोक पाने में संभव है ??



इस हेतु पढ़ें विस्तार से यह लेख..

http://www.hindudharmaforums.com/showthread.php?t=10039






*********************सदगुरुदेव प्रसंग*************************

*********************दिव्य अग्नि***************************

आप नित्य ‘अग्नि होत्र’ करते समय मन्त्रों से ही स्वतः अग्नि प्रज्ज्वलित करते हैं, माचिस, रुई या अग्नि का प्रयोग नहीं करते..... यज्ञ कुण्ड में स्वतः अग्नि प्रज्ज्वलित हो जाती है | यह कौन सी साधना है ?

- पूछा शिष्य अरविन्द ने स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी से |



“ॐ वं वह्वि तुभ्यं नमः” मंत्र के ग्यारह लाख जप करने से ‘दिव्यं अग्नि साधना’ संपन्न होती है और यह साधना सिद्ध होने पर यज्ञ कुण्ड के सामने एक बार इस मंत्र का उच्चारण करते ही स्वतः अग्नि प्रकट हो जाती है |

- समाधान किया गुरु ने अपने शिष्य का |


Saturday, January 25, 2014

सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं ‘दुर्गा सिद्धसम्पुट मंत्र’




दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का वह भाग है जिसमें देवी का वर्णन है | यह अपने आप में इतना दिव्य और प्रभावपूर्ण भाग है कि जो बाद में स्वतंत्र रूप से ही जाना जाने लगा | दुर्गा सप्तशती का प्रत्येक श्लोक एक विशिष्ठ मंत्र ही है | उन्हीं में से कुछ चुने हुए मंत्र यहाँ दिए जा रहे हैं जो की साधक के सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने में सक्षम है और इनका प्रभाव अचूक ही होता है | इसका लाभ दो प्रकार से लिया जा सकता है, दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक श्लोक के साथ सम्पुट देकर, और दूसरा सीधे ही सम्बंधित मंत्र की नित्य पांच मालाएं फेर कर | नवरात्रों में इसका विशेष महत्व है, वैसे शाक्त तो प्रतिदिन इसे करते हैं | चण्डी पाठ में तो अगर थोड़ी सी भी भूल हो जाये तो पूरा पाठ ही विफल हो जाता है, परन्तु साधक इन मन्त्रों के माध्यम से अवश्य अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकते है अतः आप भी इसका लाभ उठाएं |


१). विश्व के कल्याण के लिए-


विश्वेश्वरी त्वं परिपासि विश्वं,
विश्वात्मिका धारयसीति विश्वः |
विश्वेशवन्द्या भवति भवन्ति
विश्वाश्रया ये त्वयि भाक्तिनम्राः ||

२). विपत्ति नाश के लिए- 


शरणागत दीनार्तपरित्राणपरायणि |
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ||


३). आरोग्य और सौभाग्य प्राप्ति के लिए-


देहि सौभाग्यमारोग्य देहि में परमं सुखम् |
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ||


४). सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिए-


पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारीणीम् | 
तारिणी दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम् || 


५). बाधा शांति के लिए- 


सर्वबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी | 
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ||



६). दारिद्रय दुखादिनाश के लिए- 



दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः | 

सवर्स्धः स्मृता मतिमतीव शुभाम् ददासि ||

दारिद्रयदुःखभय हारिणी का त्वदन्या |

सर्वोपकारकरणाय सदाऽर्द्रचिता ||

७). सर्व कल्याण के लिए -


सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ||


८). प्रसन्नता प्राप्ति के लिए -


प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वातिहारिणी |
त्रैलोक्यवासिनामिड्ये लोकानाम् वरदा भवः || 


९). बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिए -



सर्वावाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य सुतान्वितः |
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः || 


१०). भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिए -



विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम् |
रूपं देहि जायं देहि यशो देहि द्विषो जहि ||


११). स्वर्ग और मुक्ति के लिए -


सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्थिते |
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ||

इन मन्त्रों का जप किसी भी महीने की दशमी तिथि या फिर चतुर्दशी से भी शुरू कर सकते हैं अथवा नवरात्री में करें. दिन में या रात्रि में कभी भी ५ माला नित्य या फिर पूर्ण सिद्धि के लिए सवा लाख का अनुष्ठान ९ दिनों में संपन्न करें, स्फटिक, मूंगा या रुद्राक्ष माला से. शत्रु मारण कार्य में सर्प-अस्थि माला का इस्तेमाल होता है | 

Monday, January 6, 2014

मंत्र राज

मैंने अपने जीवन में लगभग सभी देवतओं की साधना संपन्न की है, और उनके प्रत्यक्ष दर्शन किये हैं, परन्तु गणपति साधना शिघ्र एवं निश्चित फलदायक अनुभव हुई है, इसमें भी “गं गणपतये नमः” श्रेष्ठ मंत्र है, प्रत्येक विषम परिस्थिति में इसका जप कल्याणकारी है. पति-पत्नी के मध्य मनमुटाव, पारिवारिक कलह, व्यापर में घाटा, सरकारी झंझट, भीषण व्याधि अदि सभी लौकिक कष्टों को दूर करने में यह मंत्र रामबाण के समान है. इस मंत्र की नित्य १०८ मालाएं फेरें, और तब तक यह मंत्र जप चालू रखें, जब तक कार्य सिद्ध न हो जाये. जो यज्ञोपवीत धारी न हो(गुरु से दीक्षित न हो), उन्हें “गं गणपतये नमः” मंत्र का जप करना चाहिए, अन्य शिष्य “ॐ गं गणपतये नमः” का जप करें. यह परम मंगलकारक मंत्र है."
                                                                                                                                   
                                                                                                                                                 - Gurudev Dr. Narayan Dutt Shrimali.


गणेश शब्द का मूल अर्थ है समस्त जीव जाति के स्वामी, कुछ लोगों का यह कथ्य है की ये अनार्यों के देवता थे, और बाद में आर्यों ने इन्हें पञ्च देवताओं में स्थान दिया. यह असत्य है, जो की ब्रिटिश लोगों के द्वारा फैलाया हुआ है. हमारी सभ्यता के प्रारंभ से ही जिन देवताओं की उपासना होती आई है उनमे गणेश सर्वप्रथम पूजनीय रहे हैं. यह तो अकाट्य सत्य है ही की यदि सुबह उठकर सबसे पहले गणपति ध्यान कर लिया जाये तो पूरा दिन मंगलकारी व्यतीत होता है, दिन भर शुभ समाचार मिलते ही रहते हैं. ये मेरा खुद का अनुभव रहा है कि केवल मात्र इनका स्मरण कर लेने से ही इतने आश्चर्यजनक फल प्राप्त होते हैं तो आप कल्पना करें उस साधक का भाग्य जो इन्हें अपना ईष्ट मानकर नित्य प्रातः काल इस मंत्र का १०८ माला जप करते हैं. आर्थिक दृष्टि से ऐसे लोग पूर्ण संपन्न बनते ही हैं, इसमें कोई दो राय नहीं क्यूंकि शाश्त्रों में स्पष्ट बताया गया है कलियुग में इनकी साधना अति शिघ्र फलदायक है. जप के लिए कोई स्फटिक अथवा रुद्राक्ष की प्राण-प्रतिष्ठित माला ले सकते हैं, मगर यह ध्यान रखें की माला भी शुद्ध प्रामाणिक और चैतन्य हो. आजकल नकली चीजें फैशन बन गया है. प्राण-प्रतिष्ठित और मंत्र चेतना युक्त माला अगर आपको प्राप्त करना हो तो मुझसे प्राप्त कर लें.. या फिर गुरुधाम से मंगवा लें या अगर आपको क्रिया ज्ञात हो तो स्वयं ही कर लें... मगर सिर्फ एक शुद्ध स्फटिक माल्य की ही आवश्यकता है इसमें अन्य किसी प्रकार के उपकरण या यन्त्र आदि की अनिवार्यता नहीं है इसीलिए ये साधना तो प्रत्येक व्यक्ति को जरुर करके देखना चाहिए.


सिद्धाश्रम साधक परिवार की जय !
परम पूज्य गुरुदेव की जय !



Sunday, December 8, 2013

धन प्राप्ती का अचूक विधान - Wealth Giver TaraSadhana



This Sadhana was published in ‘Dhanvarshini Tara’ book of Sadgurudev. It can give guaranteed financial fulfilment, if tried done in the right way. I can say that because I have myself tried it, and I can say without doubt that this ritual of Mavavidya Tara gives astonishing and quick results. I had done this before the holy shrine Tara on the Jyotirling Temple at Deoghar, Jharkhand. The special thing about this place is that in Deoghar, both Jyotirling as well as Shaktipith is situated at a single place. After completing this many of my stopped work completed which were earlier facing obstacles. I got offers for Job... four of my government paper works got cleared at once.. I opened a bank account, bought laptop, phone etc. etc. 
You can try this Mantra at any holy place, temple, or any lonely room.



Any Friday In front of you place a wooden seat put pink clothes and on it. Then make 3 hills of rice coloured in pink color. On each rice heap put 1 loung(clove) each. Then take Mantra-energised TARA MAHA YANTRA and black Hakeek/Rudraksh rosary and place it on the wooden seat. You should wear Pink robes, after taking bath and sit on pink worship mat, facing towards North.

Start this sadhana sharp at 10 pm.



The Tara Maha Yantra should be washed by saying



snaanam samarpyami Namah..


Then wash it by your dhoti and put it over Rose petals, after the rice heaps. If you have picture of Her then place that also. Light Ghee oil lamps on the left side and some Incense(dhoop) on the right side of the wooden seat before you.

PAVITRIKARAN- Take water on left palm, cover it from right hand and speak this Mantra to make your outer body purification.

Om Apavitrah Pavitro Vaa Sarvaavasthaam Gato Aapi Vaa
Yah Smaret Pundari Kaaksham Sah Bahyabhyantarah Shuchih.


Then put that water all over you with the Right hand.

AACHMAN- Take water each time in hand and speak the mantra then drink it



Om Hreeng Treeng Hum Phat UgraTarayei Namah
Hreeng Treeng Hum Phat Ekjataayei Namah
Hreeng Treeng Hum Neel Saraswatyei Namah

Then wash hands with water.

SHIKHA BANDHAN- Put Right hand on Sahasrar.

Om Mannidhari Vajrinni Shikharinni Sarv VashamKarinni Kam Hum Phat Swaha.

Wind you hair on the the Sahasrar(Choti pe gaanth lagayiye agar choti rakhi hai to).

AASAN PUJAN-  Raise the right side of your aasan(worship mat) a little bit and with the Kumkum draw a circle on the ground. Put some flowers, Rice on it and worship it by saying the below mantra-



Om Pavitra Vajra Bhume Hum Phat Swaha


VIGHN UTSAARAN- Throw rice on all the 10 directions and speak the mantras so that all the obstacles are stopped.



Om Raksh Raksh Hum Phat Swaha



Then touch the following parts of your body with the thumb and Ring finger joined together. Speak the Mantra and touch the indicated part.



Om Vaerochanaaye Namah                         Touch Mouth

Om Shankhaay Namah                      -             Right Nose
Om Paandavaay Namah                    -             Left Nose

Om PadmNaabhaay Namah            -             Right Eye
Om Amitaabhaay Namah                 -              Left Eye
Om Naamkaay Namah                       -             Right Ear
Om Bhaamkaay Namah                     -             Left Ear
Om Taavkaay Namah                         -              Neck
Om Padmaantkaay Namah              -              Heart
Om Yamaantkaay Namah                -              Head
Om Vighnaantkaay Namah              -             Right shoulder
Om Naraantkaay Namah                  -              Left Shoulder

DHYAN- Join the palms and pray to Goddess Tara by chanting the following Mantra-


PratyAlidh PadArpitAnghrishvaHrid GhorattahAsA ParA,

KhadgendIvarkartrim KharparBhujA HUngkAr BijodbhawAh |
KharvAnIl VishAlpingal JatA JUteiknAgeiryutAh,
JAndyam Nyasya KapAlike TrijagatAm HantyugratarAswayam ||




VINIYOG- Take water on right palm and chant thus-


Asya Shrii Tara Mantrasya ‘Akshobhya’ Rishih, ‘Brihati’ Chhandah, ‘Tara’ Devta, ‘Hreeng’ Bijam, ‘Hung’ Shaktih, ‘Streeng’ Kilakam, Mamaabhist Siddhaye Jape Viniyogah.


TARA MAHAVIDYA MANTRA-


                || ह्रीं स्त्रीं हुं फट् || 


    || Hreeng Streeng Hum Phat || 

You have to just chant 21 rounds of rosary of this mantra continously for 11 days.


If anyone wants complete siddhi then he should do 101 mala daily for 21 days then he will be free from financial problems for life long.

This is also called the Panchakshari Mantra of Goddess Tara, it gives Vaak siddhi(ability to give Shraap or Vardaan) when chanted for 1 lakh times and the person is able to speak fluently on any topic whenever he wants. This Mantra also gives freedom from enemies and any kind of obstacle arising in life. One should make this Mantra  a daily part of his life.

Main vahi Mantra ya sadhana dene ki koshish karta hun jo meri khud ki tested hai, nahi to liikhne wale to duniya me hazaro lakhon hain, use log padhker bhul jate hain. Aap yah sadhana karein aur khud anubhav karein ki kitna change apki life me aya, kyunki shashtron me kaha hai.. 

Mantrey Tirthey Deve Devagyei Bheshaje Guruh..
Ja jashi Bhawana yasya, TaDrishi falitam yatha..

Mantra, Holy Place, Gods, Medicine, Guru will only show its effect if you have full faith, so do this ritual with full faith.