Total Pageviews

Saturday, June 28, 2014

पारद कि महिमा

12 Sanskaarit Paardeshwar Shivling.

जयति स दैन्यगदाकुलमखिलमिदं पश्यतो जगद्यस्य |
हृद्यस्थैव गलित्वा जाता रसरूपिणी करूणा ||
इस सम्पूर्ण जगत को गरीबी और रोगों से व्याकुल देखकर जिनके हृदय में स्थित करूणा गलकर पारे के रूप में परिवर्तित हो गयी, उन महादेव शंकर कि जय !


पारद कि बराबरी भगवान् विष्णु से की गयी है
Parad aur Hari me Samanta और पारा खुद स्वयं महादेव शंकर का वीर्य है, उनका सत्व है | सत्व यानी शरीर का सबसे अधिक पवित्र अंग | और इस पवित्रतम शिव अंग के गुण अनंत हैं | यह मूर्छित, बद्ध और मृत तीनों अवस्था में वरदानस्वरुप सिद्ध होता है, जिसे ब्रह्माण्ड के सभी जीव जन्तुयें दिव्य मानती हैं और पूजती हैं | पारे से अधिक दयालु कौन हो सकता है ? जो १. मूर्छित होने पर यानी मूर्छन संस्कार होने पर रोगों को हरता है, २. बद्ध होने पर यानी शिवलिंग अथवा विग्रह बनने पर मुक्ति देता है और ३. भली-भांति मरने पर, भस्म रूप में बन जाने पर मनुष्य को देता है... अमरत्व !




पारे के रोग-नाश का कारण
?



इस विषय पर श्रीमद्गोविंदभगवत्पाद कहते हैं कि

तस्य स्वयं हि स्फुरति प्रादुर्भावः स शंकरः कोऽपि |

कथमन्यथा हि शमयति विलसन्मात्राच्च पापरूजम् ||

स्वयं शंकर से उत्पन्न हुए इस सूतराज का स्वरुप खुद ही चमकता है, दुखों का शमन करने हेतु इसका प्रादुर्भाव खुद उन्ही से हुआ है, अन्यथा कोई कैसे पापजन्य रोगों को खेल-खेल में शांत कर सकता है ? रसेंद्रमंगल में उल्लेखित है, "शताश्वमेधेन कृतेन पुण्यं गोकोटिदानेन गजेंद्रकोटिभिः | सुवर्णभूदान समान धर्मे नरो लभेत् सूतकदर्शनेन"..... सौ अश्वमेध यज्ञ, करोड़ गौ दान-गज दान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, स्वर्ण और भू-दान करने से पूण्य फल मिलता है, वह हमें केवल ऐसे रसेन्द्र के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है |
ये चात्यक्तशरीरा हरगौरीश्रृष्टिजां तनुं प्राप्ताः |
वन्द्यास्ते रससिद्धा मन्त्रगणाः किंकरा येषाम् ||

जिन्होंने शरीर त्याग (मृत्यु) के बिना ही शिव-पार्वती कि सृष्टि का शरीर प्राप्त कर लिया है
, और मन्त्र जिनके दास हैं, वे रस सिद्ध गण वास्तव में ही वन्दनीय हैं | पारा, शिव जी का वीर्य और गंधक, पार्वती जी का रज है, जिनके विशेष योगों का सेवन विशेष विधि से करने से मनुष्य का शरीर ब्रह्मा जी की सृष्टि के नियमों से मुक्त होकर शिव-पार्वती के सृष्टि के गुणों से युक्त हो जाता है | वह अजर (जो हमेशा जवान रहे), अमर (हमेशा जीवित रहने वाला), अत्यंत बलवान, आकाश में उड़ने वाला, स्वेच्छाचारी (जहाँ इच्छा करे वहाँ जा सकने वाला) और भगवान् शिव के समान हो जाता है | उसके मल, मूत्र, पसीने इत्यादि में भी वेध करने कि क्षमता आ जाती है | अष्टादश संस्कारित पारद सेवन से ऐसा संभव होता है, और ऐसे रस सिद्धों को सभी मंत्र बिना सिद्ध किये ही सिद्ध हो जाते हैं |


रस सिद्धों ने अपने ग्रन्थ में कहा है कि धन से अनेक प्रकार के सुख भोगे जा सकते हैं, परन्तु सुख शरीर से भोगे जाते हैं, और जब शरीर ही स्थायी नहीं है तो सब व्यर्थ है ! इस प्रकार, धन, शरीर और सुख-भोग को ..... अस्थायी समझकर हमेशा मुक्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए, मुक्ति ज्ञान से होती है... ज्ञान अभ्यास (योगाभ्यास) से होता है.. और अभ्यास तभी हो सकता है जब शरीर स्थायी हो ! रोग, बुढ़ापे और मृत्यु से रहित स्थायी शरीर अत्यंत आवश्यक है, अगर मुक्ति प्राप्त करना है तो !
स्थिर देहोऽभ्यासवशात्प्राप्य ज्ञानं गुणाष्टकोपेतम् |
प्राप्नोति ब्रह्मपदं न पुनर्भवावासदुःखेन ||



यहाँ मैंने यह बात उन दिव्य ग्रंथों से लेकर लिख तो दी है.. मगर आज कल अधिकतर लोग पारद के संस्कारों को बिना समझे
, बिना किये विग्रह इत्यादि बेचने में लगे हुए हैं | उन्हें यह भी ज्ञात नहीं है कि वास्तव में इन संस्कारों को करने के पीछे क्या उद्देश्य है और पारद को पूरी तरह शुद्ध तक करने कि क्रिया उन्हें ज्ञात नहीं है | क्योंकि बाज़ार से हमें जो Mercury प्राप्त होती है, उसमें प्राकृतिक रूप से सीसा, रांगा, जस्ता इत्यादि कई प्रकार के अन्य धातुएं मिली हुई होती हैं | अगर इनका शोधन नहीं किया जाता है तो वे धातुएं उस विग्रह इत्यादि में शेष ही रह जाती हैं, और इस प्रकार का सीसेश्वर, रांगेश्वर, भंगेश्वर मार्केट में बहुत आसानी से मिल जाती हैं | और अगर ऐसे दवाईयों का सेवन किया जाये तो यह अत्यंत घातक और प्राण-घातक भी सिद्ध हो सकती हैं ! जहाँ पारद शिवलिंग पर चढ़ा हुआ जल पीने से सभी प्रकार के रोगों से निवृत्ति होती है, वहीँ इस प्रकार के अशुद्ध पारद के जल सेवन से रोगों कि उत्पत्ति होती है, और कच्चा पारा तो विष ही है | इसलिए आँख मूँदकर कुछ भी लेने से अच्छा है जागरूक होकर कोई वस्तु लें, इस प्रकार का शुद्ध संस्कारित शिवलिंग आप कहीं से भी प्राप्त कर सकते हैं, जिसपर कई उच्च कोटि कि साधनायें संपन्न की जा सकती हैं | 


पारे के लिए बताया गया है कि जिस प्रकार परमात्मा में सभी आत्माएं विलीन हो जाती हैं, उसी प्रकार पारे में सभी सत्त्व एवं धातुएं विलीन होते हैं अतः पारा ही एक मात्र ऐसा है जो शरीर को अजर-अमर बना सकता है, हमें स्थायी शरीर प्रदान कर सकता है स्थायी शरीर प्राप्त कर मनुष्य योगाभ्यास के द्वारा ज्ञान को प्राप्त करता है, और ज्ञान के द्वारा वो अष्टसिद्धियों सहित ब्रह्मपद को प्राप्त कर लेता है | बार-बार जन्म-लेकर दुःख झेलते हुए यह संभव नहीं है |

इसलिए जीवन्मुक्ति के इच्छुक लोगों को चाहिए कि सर्वप्रथम पारद और गंधक के योग से अपने शरीर को दिव्य बनाए | और इस हेतु पारद के १८ संस्कार कि पूर्ण विधि योग्य गुरु से सीखे और करे |

Thursday, June 26, 2014

Paranormal Experience - 1, by Digvijay Singh Rajawat Saloli.

Gait ka ek drishya

अभी कुछ दिन पहले ही मैं अपने ननिहाल से वापस आया हूँ , मेरा ननिहाल राजस्थान के करौली जिले की तहसील टोडाभीम में है , ये गाँव पूरा चौहान राजपूतों का गाँव है । गाँव पहुंचा तो सबने बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया , सभी लोग बहुत खुश थे , मेरा सामान हवेली की तल मंजिल में एक बड़े कमरे में रखवा दिया गया , चूँकि इस समय गर्मी बहुत ज्यादा थी और गाँव में रात को ठंडी हवा चलती थी सो मैंने अपना ठिकाना बदल कर पहली मंजिल पर बने एक कमरे में कर लिया , मेरी नानी'सा को जब ये बात पता लगी तो उन्होंने साफ़ कर दिया की कुछ भी हो तुम अकेले नहीं रहोगे उस कमरे में , यही मत हवेली के अन्य लोगो का भी था लेकिन मेरी जिद के आगे सब लोगों को झुकना पड़ा ।

यह एक बड़ा कमरा था जिसमे एक झरोखा है , झरोखे के द्वार सामने बने हमारे गैत ( गाय - भैंस बाँधने का स्थल ) में खुलते हैं। गैत में ही एक बड़ा पीपल का वृक्ष है और पीछे की तरफ पहाड़ हैं । मैं प्रकृति के नजदीक रहने का शौक़ीन हूँ सो दिन भर गाँव में खूब घूमना होता , सुबह होते ही खेतों पर एक खंजर और अपने हाइकिंग शूज पहनकर घूमने निकल जाता और दिन चढ़ने तक वापस आता , अभी मैंने देखा की गाँव की सीमा पर तीन मंदिर बनाये गए हैं ये सब मंदिर आस पास ही हैं , एक मंदिर भैरव जी का है , एक ग्राम देवता का और एक हनुमान जी का , अक्सर मैं गाँव के बड़े बुजुर्गों के साथ में बैठा करता था , बातों ही बातों में उन्होंने बताया की ये तीनो देवता गाँव में आने वाली इतर योनियों से ग्रामवासियों की रक्षा करते हैं । दिन बड़े मजे से बीत रहे थे , एक दिन रात को आंधी आई और धूल उड़ने लगी , सब लोग हवेली में ही थे , आंधी के कारण बिजली चली गयी और मैं अपने कमरे में आ गया थोड़ी देर में जोरदार वर्षा होने लगी और मौसम अच्छा हो गया , मैंने अपने कमरे का झरोखा खोल लिया और पलंग पर लेट कर व्हाट्सप्प और फेसबुक में व्यस्त होकर नींद की प्रतीक्षा करने लगा । रात को ग्यारह बजे के आस पास मैंने पायलों की आवाज़ सुनी , शुरू में मुझे लगा की ये मेरा भ्रम है तो मैंने आँखें बंद कर ली लेकिन जैसे ही मुझे हलकी सी झपकी भी आती तो तुरंत पायलों की आवाज से मेरी आँख खुल जाती , ऐसा लग रहा था की कोई मुझे देख रहा है और मुझे सोने नहीं दे रहा , क्यूंकि जैसे ही मेरी आँख लगती वो पायलों की आवाज़ आ जाती , झरोखे पर लगा पर्दा उड़ रहा था , ये सब होते रात के 2 बज गए , मेरी आँख लग गयी थी अचानक….

बहुत जोर से पायलों की आवाज़ आई और ऐसा लगा कोई भाग रहा है , मैंने टोर्च ली और गुस्से में झरोखे पर गया , पर्दा हटा कर सामने देखा तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी , एक औरत , बेहद चमकीले वस्त्र पहने हुए जैसा की हम लोग 1950 के दशक की फिल्मों में देखते हैं पहने हुए हमारे गैत की दीवार पर मेरी तरफ देखते हुए बेहद तेज चल रही थी , मैं घबरा गया और फटाफट झरोखा बंद किया और पलंग पर आकर बैठ गया , बोतल से पानी पिया और वहां रखे एक पुराने सिगरेट के पैकेट से एक सिगरेट निकाल कर पी , रात के दो बजे जगाऊँ भी किसको लेकिन मेरी आँखों में नींद नहीं थी , पायलों की आवाज़ रुक रुक कर बराबर आ रही थी , मैंने अपने ईरफ़ोन निकाले और गाने चला कर सोने की कोशिश करने लगा , ऐसे ही 2 घंटे और निकल गए , सुबह 5 बजे के आसपास आँख लगी और सुबह 10 बजे उठा , उठ कर सोचा की कोई सपना देखा अजीब सा , लेकिन झरोखा बंद पलंग के सिरहाने पड़े सिगरेट के फ़िल्टर को देख कर लगा की ये सपना नहीं था ।

नानी सा के पास गया और उन्हें सब कुछ बता दिया , उनके माथे पर मेरी बात सुन कर शिकन उभर आई , सिर्फ इतना कहा की आगे से ऊपर और उस कमरे में मत सोना अकेले , मैंने कारण पूछा तो टाल दिया , मैंने जब जोर दिया तब बताया की मेरे नानो'सा के पूर्वज वहां राजपूत जागीरदार थे , तब उस गैत में महफ़िल जमा करती थी जिसमे नाचने गाने वाली और कलालन (शराब निकालने वाली और परोसने वाली )औरतें उनका मनोरंजन करने आया करती थी , उन्ही में से एक नाचने गाने वाली औरत को लेकर एक महफ़िल में उनके पूर्वज और एक ठाकुर में बहस हो गयी जिसमे तैश में आकर उस ठाकुर ने उस औरत के दिल में अपना खंजर उतार दिया , एक महीने बाद ठाकुर भी खून की उल्टियाँ करते हुए मर गया , तभी से वह औरत उस गैत में घूमती है ।


ये सब सुनकर मैं स्तभ्द था लेकिन फिर बताया की वह गाँव के कई लोगो को दिखी भी है लेकिन उसने अभी तक किसी का अहित नहीं किया , बस कभी कभी पायलों की आवाज़ सुनाकर अपने वहां होने का सबूत दे जाती है |

- by DIGVIJAY SINGH RAJAWAT SALOLI.
get connected to us on facebook

Wednesday, June 25, 2014

पारद और हरि में समानता.



पीताम्बरोऽथ बलिजिन्नागक्षयबहलराग गरूडचरः |
जयति स हरिरिव हरजो विदलितभवदैन्यदुःखभरः ||


पीताम्बर धारण करने वाले, यानी हरि पीत वस्त्र धारण किये हुए रहते हैं, पुराणों में विष्णु कि व्याख्या की गयी है..उनके बारे में बताया गया है... और हम श्रीमद्गोविन्दभगवत्पाद द्वारा रचित 'रस हृदय तंत्र' के इस श्लोक से पारद और हरि में समानता को भली-भाँती समझ सकते हैं, उन्होंने बहुत ही सुन्दर ढंग से इन श्लोकों में कुछ तथ्य बताये हैं, जो कि आश्चर्यजनक हैं, महत्वपूर्ण हैं और विचार करने योग्य हैं !


यहाँ हरि के बारे में क्या बताया गया है ? पीताम्बरः, पीत अंबर वस्त्र धारण किये हुए... और आगे हरि के बारे में क्या बताया गया है ? बलिजित..... यानि दैत्य राजा बलि को जीतने वाले, पुनः क्या बताया गया है ? नागक्षय.. शेषनाग आदि का अंत करने वाले; बहलराग गरूडचरः.... नागों का नाश करने में जिन्हें बहुत आनंद आता है, ऐसे गरूड पर बैठकर चलने वाले | इसके बाद क्या बताया है उन्हें ? विदलितभवदैन्यदुःखभरः... हरि संसार में दलित और दुखी जनों के दुःख को नष्ट करने वाले हैं, उन्हें सुख देने वाले हैं और मनोवांछित वर प्रदान करने वाले हैं | ऐसे हैं हमारे श्री हरि विष्णु |


और अब यदि हम पारद के गुणों को देखें, तो पारद के भी क्या यही गुण नहीं हैं ? पारद भी श्री हरि विष्णु के समान पीताम्बरः.... अभ्रक जारित है, अभ्रक जिसका रंग पीला होता है, उससे जारित है | और आगे इसके क्या गुण हैं ? पारद बलि जित... यानि गंधक जारित है, गंधक जो कि पारद को भी अपने अन्दर विलीन कर लेता है यानी पारे से ज्यादा बलवान है, पारद उसपर भी जीत हासिल किये हुए है | पुनः इसके क्या गुण हैं ? पारद, नागक्षयबहलरागगरूडचरः है, क्यूंकि सीसे को नाग भी कहा गया है संस्कृत में, और पारद सीसे का क्षय होने पर अत्यंत तेजस्वी रंग को प्राप्त होने वाले सोने को खाने वाले हैं | इसके आगे ? विदलितभवदैन्यदुःखभरः.... संसार के लोगों कि गरीबी और दुखों को नष्ट करने वाले हैं पारद | और ?... हरज, यानि शिव जी के वीर्य या पुत्र, पारे कि जय.......||



NOTE - पारे में चारण करने के लिए स्वर्ण से कई प्रकार के बीज बनाते समय उसमें सीसा या सीसे की भस्म को मिलाकर इतनी आँच देते हैं कि सीसा नष्ट हो जाता है और केवल स्वर्ण शेष रह जाता है | इस क्रिया से सोने के रंग और चमक में वृद्धि होती है |


पारद एक होते हुए भी अनेक, और अनेक होने पर भी दुबारा एक हो जाने कि क्रिया करता है |


हरि सर्वव्यापी हैं | एक होते हुए भी अनेक, और अनेक होते हुए भी एक हैं, और बिलकुल यही गुण क्या पारद के भी नहीं हैं ? हमारे एक स्पर्श से पारा सौ टुकड़ों में बंट जाता है और पुनः आपस में मिलते ही एक हो जाता है

Friday, June 20, 2014

COMPATIBILITY OF PARTNERS



प्रेमी-प्रेमिका में, पति-पत्नी में, भाइयों में या दोस्तों में मित्रता रहेगी या नहीं, ये कैसे पता करें ?



कैसे मालूम करें कि जिसके साथ हम partnershipping करने कि सोच रहे हैं, कहीं वह हमें धोखा तो नहीं देगा ?



कैसे मालूम कर सकते हैं हम कि Life-Partner के साथ हमारी कितनी बनेगी ..?



ज्योतिष में प्रत्येक राशि का एक अपना स्वभाव होता है, और बारह के बारह राशि विभिन्न तत्व प्रधान होते हैं | व्यक्ति कि जन्म-कुण्डली में जिस घर में चन्द्र हो, उस घर कि राशि को ही हम चन्द्र-राशि अथवा ‘राशि’ कहते हैं, और इस राशी का जैसा स्वभाव होगा, जैसी इस राशि कि प्रकृति होगी, उसी के अनुरूप ही वह व्यक्ति भी कार्य करेगा, सोचेगा, चलेगा.. इसीलिए ज्योतिष में राशि को तो सबसे अधिक महत्व देते हैं | 



चन्द्रमा का सम्बन्ध होता है मन से, इसीलिए जिस भाव में चन्द्र स्थित होगा उस भावगत राशि के अनुरूप ही जातक का मन कार्य करता रहेगा | और यह राशियाँ तत्त्व प्रधान होती हैं, एक विशेष तत्व से प्रभावित होती हैं, जातक भी उसी तत्व विशेष से प्रभावित रहेगा | ये तत्व आपस में मत्री-अमैत्री स्वभाव लिए रहती हैं, कुछ राशियाँ, या कुछ तत्व तो आपस में शत्रु सा व्यवहार करती हैं, परन्तु वहीँ कुछ घनिष्ट मित्रता भी रखती हैं | अगर पति-पत्नी में से पति कि राशी का स्वभाव है अग्नि, और पत्नी कि राशि वायु प्रधान है तो उन दोनों में घनिष्ट मित्रता रहेगी और जीवन भर दाम्पत्य सुख उन्हें मिलेगा, यदि कभी हलकी नोक-झोंक हो भी जाती है, तो वह थोड़े समय में ही प्रेम में बदल जायेगा | वहीँ दूसरी और, अग्नि और पृथ्वी तत्व, जो कि आपस में शत्रु हैं, इस स्वभाव के दो लोग ज्यादा समय तक मित्र नहीं रह पाते, और यह मिलान मैंने कई-कई बार करके देखा है, हर बार यह बात बिलकुल सोलह आने सच निकली है !




ज्योतिष कोई खेल या मखौल का विषय नहीं है, इसीलिए जिसे इस बारे में ज्ञान नहीं है, या जिन्हें रुचि नहीं है उन्हें इनसे दूर ही रहना चाहिए, क्यूंकि ऐसे लोग आते तो हैं बड़ी उत्सुकता से अपनी जिज्ञासा लेकर, पर जब उन्हें कोई समझाने वाला नहीं मिलता, तो वे बात को ठीक से समझ नहीं पाते और फिर वही लोग इस दिव्य विद्या का उपहास करना शुरू कर देते हैं ! पर सही ज्ञान देने वाला नहीं मिला तो इसमें इस विद्या का क्या दोष ? और आप खुद ही कल्पना करिए अगर हम इन सरल बातों को ध्यान पूर्वक समझकर अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लें तो हम कितने लोगों के बीच का द्वेष, मनमुटाव इत्यादि मिटा सकते हैं | क्यों आज कल इतना पार्टनर्स में मतभेद हो रहा है, पहले के ज़माने में ऐसा क्यों नही होता था ..


राशि- मैत्री, अमैत्री स्वभाव :

मित्र-तत्व :
पृत्वी तत्व  +  जल तत्व
अग्नि तत्व +  वायु तत्व

अमैत्री तत्व :
पृथ्वी तत्व +  अग्नि तत्व
जल तत्व   +  अग्नि तत्व
जल तत्व   +  वायु तत्व



राशि तत्व :

पृथ्वी तत्व    –  वृष, कर्क, कन्या, मकर |

जल तत्व      –  वृश्चिक, मीन |

वायु तत्व     –  मिथुन, तुला, कुम्भ |

अग्नि तत्व  
–  मेष, सिंह, धनु |



Tuesday, June 17, 2014

shrawan maas SHIV SADHANA...





भगवान शिव तो पल में प्रसन्न होने वाले और साधक कि सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाले महादेव हैं, वे प्रसन्न होते हैं तो रावण की नगरी को सोने का बना देते हैं, कुबेर को देवताओं का कोषाध्यक्ष बना देते हैं, इंद्र को अमोघ वज्र प्रदान कर देवताओं का अधिपति बना देते हैं और ब्रह्मा को पूर्ण चैतन्य सिद्ध बना देते हैं |



श्रावण मास शिव को अत्यधिक प्रिय है और
शिव पुराण में स्पष्ट उल्लेखित है कि जो कोई भी, सन्यासी या गृहस्थ, अगर श्रावण मास में विशिष्ट शिव साधना
संपन्न कर लेता है, तो उसके भाग्य में लिखा हुआ दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है, अगर उसके जीवन में दरिद्रता लिखी हुई भी है तो भी भगवान् शिव की यह साधना उस दुर्भाग्य को
मिटाकर सौभाग्य कि पंक्तियाँ लिख देता है, अगर
जीवन में कर्जा है, व्यापार न्यूनता है, आर्थिक अभाव है तो यह साधना श्रेष्ठ साधना है, क्यूंकि यह साधना सरल है, निश्चित फलप्रद है, अद्वितीय है |



१. रोग निवारण – शिव जो वैद्यनाथ हैं, अपने भक्तों को इस साधना को संपन्न करने पर रोग मुक्त करते हैं और अकाल मृत्यु, बीमारी, मानसिक चिंताओं से जीवन भर के लिए मुक्ति दिलाते हैं | हम आज तरह तरह से प्रयास करते हैं कि हमें आराम मिले, कभी हम घुमने चले जाते हैं जीवन से परेशान होकर, कभी ठंडी हवा खाने के लिए ऐ०सी० लगाते हैं, कभी आराम के साधन जुटते रहते हैं, परन्तु सत्य तो यह है कि इन सब के बजाये अगर शिव आराधना पूरे मनोयोग से करें तो उसी में पूर्ण सुख कि प्राप्ति संभव है !

२. लक्ष्मी का घर में स्थायी निवास – शाश्त्रों में तो यहाँ तक लिखा है कि सभी लक्ष्मी कि साधनाओं का इस साधना के सामने कोई महत्वा ही नहीं है, केवल मात्र श्रावन मास में जो व्यक्ति शिव साधना कर लेता है, लक्ष्मी उसके घर में आकर निवास करने को बाध्य हो जाती है, फिर उसे कनकधारा स्तोत्र, अन्य स्तोत्र इत्यादि अलग से करने कि जरोरत नहीं पड़ती, अगर वह यह मंत्र जाप कर लेता है तो...

३. भूत सिद्धि.

४. भगवान शिव के प्रत्यक्ष दर्शन !


इसके लिए अष्ट संस्कारित पारदेश्वर शिवलिंग अनिवार्य है, जिसपर यह साधना मंत्र जाप और पूजन संपन्न करना है | शास्त्रों में यह बात कही है कि शिवलिंग को घर में स्थापित नहीं करना चाहिए और एक बार जहाँ इसका स्थापन हो गया उस जगह से इसे हटाना शास्त्रों के विरुद्ध है, मगर पारद शिवलिंग और नर्मदेश्वर शिवलिंग ही एक मात्र ऐसे हैं जिसे गृहस्थ भी अपने घर में स्थापित कर सकता है और इसे एक जगह से दूसरी जगह भी हटाकर रखा जा सकता है | ऐसा शिवलिंग अति-दुर्लभ तो है ही मगर अगर कहीं से मिल जाये तो इन्हें साक्षात शिव ही समझना चाहिए |

- यह जो मंत्र यहाँ पर दिए जा रहे हैं, इन्हें श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को करना है, मतलब यह नहीं कि आपको पूरे सावन भर यह साधना करनी पड़ेगी, केवल मात्र श्रावण के सोमवार  को ही पूजन और मंत्र जाप संपन्न कर लें |

- इस दिन केवल एक समय शुद्ध सात्विक भोजन करें, इसके अलावा दिन भर में दूध, फल इत्यादि ले सकते हैं |

- प्रत्येक वार रुद्राक्ष माला से रात्रिकाल में ११ माला मन्त्र जाप शुद्धता से कर लें, इससे पहले शिवलिंग का पूजन सामन्य या विशेष किसी भी विधि से अवश्य कर लें, केवल जलाभिषेक, बिल्वपत्र चढ़ाना, दुग्धाभिषेक भी कर सकते हैं |

प्रथम सोमवार – इस मन्त्र से मनोवांछित फल कि प्राप्ति होती है, खासकर जिन कन्याओं का विवाह में विलम्ब हो रहा हो, वे ये साधना करें तो शीघ्र लाभ मिलता है |

|| ॐ ऐं शाम्ब सदाशिवाय नमः ||

द्वितीय सोमवार – इस मन्त्र को स्नान कर पीली धोती पहनकर पीले आसन पर बैठकर करें, उत्तर कि और मुंह किया हुआ हो, सामने शिवलिंग को बाजोट पर पीले वस्त्र पर स्थापित करके सबसे पहले हाँथ में जल लेकर संकल्प लारें कि मैं इस कार्य कि पूर्ती के लिए यह मन्त्र कर रहा हूँ मुझे शीघ्र इस फल कि प्राप्ति हो, और फिर इस मन्त्र कि ग्यारह माला संपन्न कर लें | 

|| ॐ ऐं ऐं सर्व सिद्धि प्रदायै शिवायै नमः ||

तृतीय सोमवार – इस दिन भी आप पीली धोती धारण कर उत्तर या पूर्व कि मुख कर बैठ जायें और हाँथ में जल लेकर संकल्प में अपना नाम और गोत्र बोलेन, फिर अपनी इच्छा बोलें, फिर इस मंत्र कि ११ माला संपन्न कर उठ जायें, कई बार साधना पूरी होते-होते मनोकामना पूर्ती होने का संकेत भी मिल जाता है |

|| ॐ ह्रीं अन्नपूर्णा शिवायै नमः ||

चतुर्थ सोमवार – महादेव पर २१ बिल्वपत्र या पुष्प चढ़ाएं, केसर का त्रिपुण्ड लगायें, फिर इसी प्रकार से मंत्र जप संपन्न करने के पश्चात श्रधा भाव से साधना समाप्ति पर उन्हें अपनी बात व्यक्त करें |  

|| ॐ शक्तयै सदाशिवाय नमः ||

दूसरे दिन पूजन कि सभी सामग्री को पवित्र नदी या मंदिर में विसर्जित कर दें, पाँच कन्याओं को भोजन करा दें, और यथोचित दान दें | यह एक अद्भुत साधना है जिससे निश्चय ही साधक कि सभी मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं | हर हर महादेव.....

get connected to us on facebook

Thursday, June 5, 2014

BEEJ NIRMAN

Density of Mercury - 13


परम पूज्य सगुरुदेव जी ने कई ऐसे रस सिद्धों का उल्लेक अपने ग्रन्थ में किया है, उनमें से काशी के सुधीर रंजन भादोड़ी महाशय जी, एवं इनके पुत्र बम गोपाल भादोड़ी हैं,
A. P. Patel जी हैं..|

गुरु गोरखनाथ जी द्वारा रचित एक ग्रन्थ है जिसका नाम है ‘प्राण सांगली’, वह हिमालय के एक मठ में रखी गयी है, जिसमें पारद के अद्वितीय देह सिद्धि और लौह सिद्धि रहस्य लिखे हुए हैं | और यह ग्रन्थ तो आज भी हमारे बीच उपलब्द्ध है | इस प्रकार के अन्य कई ग्रन्थ आज भी सहज सुलभ हैं, जिनका अध्ययन हम कर सकते हैं एवं लाभ ले सकते हैं |





पारद संस्कारों में अत्यंत महत्वपूर्ण क्रिया है धातु बीज निर्माण कि क्रिया | आज हम इसी विषय पर कुछ चर्चा करते हैं | 



बीज निर्माण कि परिभाषा क्या है ?

उच्चतर धातुओं के ऊपर निम्नतर धाराओं के धातुओं का निरहन करने कि क्रिया को हम बीज निर्माण कहते हैं | निरहन का तात्पर्य है कि उसको खरल करके लुप्त कर देना | यानि उसके स्थूल अंश को ख़त्म करके उसके प्राणांश और आत्मांश को लेना | यानि स्थूल धातुओं के प्राणान्श या आत्मांश को किसी उच्च धातु के ऊपर समायोजन करने कि क्रिया को ही हम ‘बीज निर्माण’ कहते हैं | जैसे लौह, शीशा, ताम्बा, जस्ता इयात्दी का किसी एक उच्च धातु जैसे स्वर्ण या अभ्रक सत्व पर समायोजित कर देना |



यह तो हम सभी जानते हैं कि स्वर्ण से उच्च कोई अन्य धातु नहीं है, लेकिन यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण और समझने योग्य है कि पारद ग्रंथों में ‘अभ्रक सत्व’ को भी स्वर्ण के समकक्ष माना है | अभ्रक सत्व मुख्य रूप से कई धातुओं का समूह होता है, इसके अन्दर समस्त धातुओं को धारण करने कि क्षमता रहती है | अभ्रक सत्व को महारस बीज कि संज्ञा दी है, तो उन विद्वानों ने यूँ ही नहीं दी है.....




बीज निर्माण क्यों करते हैं ?

अग्निस्थायिकरण एवं समस्त धातुओं का शोधन करने के लिए हम बीज निर्माण करते हैं |


धातु शोधन के पीछे हमारा उद्देश्य क्या है ?

धातु शोधन करने के पीछे जो हमारा मूल उद्देश्य है, वह यह है कि हम उसके घनत्व को और तापमान को पारद के या स्वर्ण के निकट ले जा सकें | जैसा कि ऊपर बताया गया है, अभ्रक सत्व में कई सारे धातुओं का सत्व है, आधुनिक सिद्ध रसायन विज्ञान में एक अति महत्वपूर्ण बात यह कही है, कि अभ्रक सत्व ही अग्निस्थायी पारद है, और अग्निस्थायी पारद ही अभ्रक सत्व है ! मगर इसकी गुप्त कुंजी तो सद्गुरु ज्ञान से ही प्राप्य है कि यह किस प्रकार से संभव है, इसका प्रयोग किस प्रकार से है | 


समस्त बीजों में श्रेष्ठ निर्माण कौन से हैं ?


स्वर्ण महानाग बीज, अभ्रक सत्व, ताम्र एवं अष्ट प्रकार के लौह इन सभी को समस्त बीजों में श्रेष्ठ बीज निर्माण कहा गया है |



रस ह्रदय तंत्र के ग्रंथकार, श्री A. P. Acharya जी, जिन्होंने अहमदाबाद में 1969 को सिद्ध पारद के १३ संस्कार संपन्न करके प्रायोगिक रूप से स्वर्ण निर्माण करके दिखलाया था ! यह खबर गुजरात के अख़बारों में आई थी, पर अंत में इन्होने प्रयाग में सन्यास ग्रहण कर लिया और हरिश्वरानंद जी के नाम से प्रसिद्ध हुए | सदगुरुदेव जी ने अपने ग्रन्थ में जो A. P. Patel(आत्माराम प्रभुराम पटेल) का ज़िक्र किया है वो इन्ही के बारे में ज़िक्र किया है | इनके द्वारा रचित एक बहुत ही दिव्य पुस्तक है जिसका नाम है, “मनुष्य अवतार”, जिसमें साधारण मनुष्य से पूर्ण योगी बनने तक कि यात्रा इसमें लिखी है, यह ग्रन्थ अगर किसी भी भाई को अध्ययन करने कि इच्छा हो तो मुझसे प्राप्त कर सकता है, व्यक्तिगत रूप से मिलकर, J


निखिल प्रणाम..

.