ध्यायं पारद विस्मयवात परितं श्री रूप मेव वदागिरवण मदितं भवेत वरितम रूपं मदैव आवदा
पारं पारमदमुच्रूप सरीतं व्यामोह रूप वता
सिद्ध पूर्ण वदैव पूर्ण सरित शम्भो त्वमेव वदे |
जीवन में सौभाग्यशाली व्यक्ति होते हैं जो भगवान शिव की आराधना में प्रवृत्त होते
हैं, उन लोगों का जीवन धन्य है जिन्होंने अपने जीवन में भगवान् पारदेश्वर के दर्शन
किए हों | वे माताएं धन्य हैं जिन्होंने ऐसे पुत्रों को जन्म दिया जो भगवन
पारदेश्वर कि आराधना में रत रहते हैं | और वास्तव में ही जीवन का सौभाग्य, जीवन कि पूर्णता इसी में है कि कम से कम एक बार तो अवश्य ही अपने घर में भगवान पारदेश्वर
के एक विग्रह को स्थापित करें, उन पर प्रक्षालित जल को अपने शरीर पर छिडकें, उन पर
अर्पित जल का अमृतपान करें और एक प्रकार से मानसिक और आध्यात्मिक पवित्रता को
प्राप्त करते हुए जीवन कि उन उचाईयों को स्पर्श करें, जो जीवन को सौभाग्यशाली बनाती
हैं, जो जीवन को अद्वितीय बनाती हैं, जो जीवन को जाज्वल्यमान बनाती हैं !
इस श्लोक में अत्यंत ही महत्वपूर्ण बात कही गयी है कि जीवन का सौभाग्य पारदेश्वर
का दर्शन करने में है और पारद के बारे में शास्त्रों में सैकड़ों-सैकड़ों बातें लिखी
हुई हैं, सैकड़ों-सैकड़ों तथ्य इस बात को सपष्ट करते हैं कि -
पारदं परमेवं वा पूर्णमेवं वदंतः सः पारद मेवतां म्युदे दर्शनाद भव मुच्यते |
पारा तो एक प्रवाहशील पदार्थ है, परन्तु अगर उसमें स्वर्ण ग्रास दिया जाए, स्वर्ण
ग्रास देकर के पारद को अत्यंत ही भव्य और दुर्लभ बनाया जाए और इस प्रकार से
स्वर्ण ग्रास दिए पारद को आबद्ध करके उससे शिवलिंग का निर्माण किया जाये, तो ऐसा
शिवलिंग संसार का दुर्लभतम शिवलिंग होता है | ऐसा शिवलिंग घर में स्थापित करना ही
जीवन की श्रेष्ठता है | ऐसे शिवलिंग की प्राप्ति ही जीवन की पूर्णता है और रावण
संहिता में बिलकुल ही स्पष्ट रूप से विवेचन किया गया है कि रावण जब भगवान शिव को
प्रसन्न नहीं कर सका, अत्यंत प्रयत्न करके भी जब शिव का सान्निध्य उपलब्द्ध नहीं
कर सका तो उसने अपने गुरु से इस बात की याचना की मैं किस प्रकार से भगवान शिव को
प्रसन्न करूँ...
तो उन्होंने पारदेश्वर के बारे में विस्तार से विवेचन करके समझाया कि भगवान् शिव के
दर्शन करने का एकमात्र उपाय पारदेश्वर की स्थापना ही है, अत्यंत शुद्ध, लौह रहित,
शुभ्र ज्योत्सनित और दिव्य पारे को लेकर के ऐसा गुरु जो रसेश्वरी दीक्षा से संपन्न
है, जिन्होंने अपने जीवन में रसेश्वरी दीक्षा प्राप्त की हुई है, जिन्होंने अपने
जीवन में रसेश्वरी दीक्षा दी है |
‘प्रदानं उपलब्धं वा’ जिसने ली भी है और रासेश्वरी दीक्षा देने का विधान भी जिसके
पास है, वह इतने उच्चकोटि के पारद को लेकर के उसको आबद्ध करने की क्रिया संपन्न
करे और पारे को ठोस बनाते हुए निरंतर उसमे ३२ बार स्वर्ण ग्रास दे जिससे कि -
स्वर्णोपमं पूर्वतं मदैव तुल्य सभ्यताम
वदेव च तं ममक्ष वाट रूपः |
ऐसा स्वर्ण ग्रास दिया हुआ पारद अपने आप में ही अत्यंत भव्य और दर्शनीय बन सके | परन्तु
इसके साथ एक बात और कही है -
चैवं वा वदितं वदित रूकितं चर्वो स्तां सूर्यवांन ज्ञानं नमतं वदेतं तुलितं आत्मोत्तम वाक् कृपः |
ऐसा गुरु जिसको पारा आबद्ध करने की क्रिया नहीं आती हो, ऐसा गुरु जिसने अपने जीवन
में पारे को आबद्ध नहीं किया हो, ऐसा गुरु जिसने पारे को स्वर्ण ग्रास देने की
क्रिया नहीं जानी हो, ऐसा गुरु जिसने रसेश्वरी दीक्षा को प्राप्त नहीं किया हो, वह
उस पारदेश्वर विग्रह को निर्माण भी नहीं कर सकता, उसका स्थापना भी नहीं कर सकता !
परन्तु जिसको इस बात का ज्ञान है, जिसके पास इस बात का चिंतन है वह इस प्रकार से
पारदेश्वर का निर्माण कर सकता है | रावण संहिता में एक स्थान पर स्पष्ट रूप से
लिखा है -
पुष्यं पूर्ण मदैव रूप चरितं स वित्तां पूवतःस्वर्ण ग्रासेव वदाम तुताः पूर्णमेवं वदेतः |
पुष्य नक्षत्र हो और पूर्णा तिथी हो और उसमे भी भगवान शिव के सायुज्य नक्षत्र हो,
चन्द्रमा वाम हो और अग्निकोण में लक्ष्मी स्थापित हो और उस प्रकार से अद्भुत संयोगों
से संपन्न जब अद्भुत योग आए तो उस क्षण विशेष में पारे को आबद्ध करें ! और पारे को
आबद्ध करने के साथ-साथ उसमे स्वर्ण ग्रास भी दें, भगवान् शिव के ३२ नाम हैं, भगवान
शिव के ३२ रूप हैं और भगवान् शिव के ३२ विग्रह हैं, इसलिए ३२ बार पारद को बद्ध
करते समय उसमें स्वर्ण ग्रास दें | और ३२ बार स्वर्ण ग्रास दिया हुआ जो पारद आबद्ध
होता है वह पूर्ण रूप से इस प्रकार के शिवलिंग निर्माण में सहायक होता है !
- from Vishwa ki Shresth Dikshayein book by Pujya Gurudev.
(क्रमशः...)
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