mummification |
अंग्रेजी शब्द कोष में ‘Alchemy’ शब्द असल में तीन भिन्न-भिन्न सभ्यताओं से लिए गए शब्दों से मिलकर निर्मित हुआ है, Egypt की सभ्यता जो की मृत शरीर को सुरक्षित रखने में विश्वास रखती थी, जिसका पुरातन नाम ‘Khem’ था, वह इसी विज्ञान की सहायता से ऐसा कर पाते थे ! बाद में, ग्रीक शाषक ‘Alexander’ ने इस विद्या को अपनी सभ्यता से जोड़ दिया और इस प्रकार इसमें काफी हद तक गणित के सूत्रों को भी शामिल कर लिया गया, यह ग्रीक सभ्यता में Khemia के रूप से जाना जाने लगा..
जब अरब देश ने सिरिया और इजिप्त पर सातवीं शताब्दी को हुकूमत हासिल कर ली, तब उन्होंने ग्रीक सभ्यता से यह विद्या भी सीखी और उन्होंने इसके नाम के आगे ‘अल-’ शब्द जोड़ दिया, जिसका अर्थ अरबी भाषा में ‘The’ होता है. इस प्रकार से यह ‘Al-Khemiya’, यानि “The Khemia Science’, से मिलकर जिस शब्द का निर्माण हुआ वह Alchemy के रूप से जाना जाने लगा ! इस बात से तो सभी परिचित हैं की ऊपर वर्णित सारी सभ्यता अत्यधिक संपन्न और खासकर स्वर्ण का तो अगाध भण्डार ही लिए हुए थी.. आज भी हमारे पास तूतन खामिन की जो प्राप्त टोम्ब है वह स्वर्ण की है, किसी अन्य धातु की नहीं, आप कल्पना करें एक मृत शरीर को वे लोग इतनि महंगी धातु में आखिर क्यूँ रखेंगे ??
हम तो बहुत महत्वपूर्ण मौकों में भी गिने चुने ही ऐसे धातु, ज़ेवर पहनकर निकल पाते हैं, और कभी-कभी तो वह भी.... नहीं... अरब देश में आज भी इतना अधिक स्वर्ण मौजोद है की हमारे सोच से परे है.. अगर आपको ज्ञात न हो तो आप खुद मालूम कर लें, ‘अबु जेबेर’ नामक एक प्रातन कालीन लेखक ने अपने ग्रन्थ में एक सफ़ेद पाउडर का ज़िक्र किया था जो कि रांगा और कुछ अन्य मूल्यवान धातुओं को स्वर्ण में परिवर्तित करने की क्षमता रखता था. इस सफ़ेद बुरादे का नाम रखा गया था, ‘Elixir’….
तो क्या हमारे भारतवर्ष में इस स्वर्ण विद्या का कभी प्रादुर्भाव हुआ ही नहीं ?? हमारे प्राचीन ऋषि जिनको की सम्पूर्ण श्रृष्टि में छुपे गूढ़ विज्ञानों का सूक्ष्म और अति-सूक्ष्म ज्ञान था, क्या इस विषय में मौन ही रहे हैं ....?
नहीं ! ऐसा कदापि नहीं है, बल्कि यह विज्ञान तो हमारे पास तबसे है, जबसे की कहीं और किसी प्रकार की सभ्यता बसने का भी ठिकाना नहीं नहीं था ! हम सब जानते हैं की महापंडित रावण से स्वर्ण की लंका बनायीं थी, यदि थोड़ा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचें तो अब हमें कुछ-कुछ समझ में आ जायेगा, की ऐसा कैसे संभव हो पाया होगा. यही नहीं अगर उनके बारे में और तथ्य ढूँढें जायें तो मालूम पड़ेगा कि वह तो अत्यधिक दीर्घ समय तक यौवनवान और पौरुष के साथ जीवित रहे, भला यह देह - वेधन के अलावा और कैसे संभव हो सकता है ....और लंकेश ही क्यूँ, अगर हम अभी निकटतम इतिहास को टटोलें तो उसमे भी ‘वीर विक्रमादित्य’ जैसे गौरवपूर्ण राजा हुए हैं, जिन्होंने अपने समय में तांबे के सिक्कों को बदले स्वर्ण मुद्रा चला दी थी.. यह सब भला कैसे संभव हुआ होगा
Mercury और Sulphur, इन दोनों को सभी धातुओं का मूल माना जाता है, और मन जाता है की अल्प-मूल्यक धातु, जैसे रांगा के अणुओं को तोड़कर पुनः इन्हीं के सही उत्पात में मिला देने से(Elixir की मदद से) धातु परिवर्तन संभव है ! इसी Elixir को हमारे शोध कर्ताओं ने जो नाम दिया, वह था- सिद्ध सूत ! मगर यह सिद्ध सूत कुछ धातुओं को स्वर्ण में तो परिवर्तित कर सकता है, किन्तु वह अगर स्वर्ण से मिश्रित किया जाये तो ऐसा पदार्थ निर्मित होता था जो की दे पाता था अक्षुण यौवन.. और अमरत्व भी ! फिर यही खोज उस काल में और उन देशों में जाने लगी Philosopher’s Stone, Elixir of Life इत्यादि के नाम से..
दोस्तों पारद का इतिहास तो काफी रोचक है, मगर आपको मेरी बात शायद थोड़ी भी लग सकती है, वह ये की हम जिस कारण से इस महत्वपूर्ण विद्या कि ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं, यानि धातु-परिवर्तन, वह तो एक प्रकार से मेरे हिसाब से व्यर्थ-सा है.. ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है वह .. इसके बजाये इस अति गुह्य विद्या का और एक अति महत्वपूर्ण उपयोग है, वह है शरीर के विभिन्न रोगों के उपचार.
सिकंदर जिसने लगभग पूरी दुनिया को जीत लिया था, केवल भारत
को छोड़ के, उसने मृत्यु के समय अपनी आखरी इच्छा व्यक्त की.... कि उसकी लाश को जब
ले जाया जाये, तो उसके दोनों हाँथों को नीचे झुला दिया जाये, फिर उसे अंतिम कर्म
के लिए ले जाया जाये. वह पूरी दुनिया को यह सन्देश देन चाहता था कि सिकंदर जैसा
महान सम्राट पूरी दुनिया के खजाने का मालिक..... वह भी जाते समय दोनों हाँथों से
खाली ही था, निहत्था गया.. जिस प्रकार निहत्था आया था, उसी प्रकार निहत्था गया...
तो जब वह भी अपने अगाध हीरे-मोती के पहाड़ को अपने जेब में रखके परलोक नहीं जा
पाया, तो हम क्यूँ इतने छोटे-छोटे से लोभ में पड़कर राह से भटक जाते हैं ! मनुष्य
का मूल उद्देश्य तो मानवता हो सकता है, मानवता को जिन्दा रखना हो सकता है,
जन-साधारण की सेवा हो सकता है, न की कुछ रुपये और क्षणिक सुख इकट्ठा करना..
सदगुरुदेव जी ने स्वर्ण-तन्त्रं नामक जो पुस्तक लिखी थी, उसमे उन्होंने एक से लेकर ८ वें तक के पारद संस्कार और प्रत्येक संस्कार के रोग निवारण के गुण और उपयोग के बारे में चर्चा की थी, अब हम कुछ-कुछ तो समझ सकते हैं, आखिर क्यूँ उन्होंने उसका दूसरा हिस्सा लिख देने के बावजूद सामने नहीं आने दिया, ८ वें संस्कार तक तो पारद शरीर के विभिन्न रोगों को ख़त्म करता है, इसके बाद आटा है विषय धातुवाद.... मगर यह भी हम सब जानते हैं की जितनी आसानी से मैंने यह सब लिख दिया और आपने इसे पढ़ लिया, यह विद्या इतनी भी सरल तो न होगी... नहीं तो क्यूँ आज तक की भी इस पद्धति को कोई ठोस आधार न मिल सका?? फिर तो तमाम डॉक्टरों का तो काम चौपट होना निश्चित ही था.. लोग सालों डॉक्टरी की पढाई करने की बजाये खरल करने में और संस्कार सीखने में समय लगा रहे होते. क्या पता शायद आने वाले युग में ऐसा कोई हो जो इस विद्या के द्वार खोल सके, जन-साधारण के लिए. क्यूंकि विषय में काफी कुछ रहस्योद्घाटन तो परम पूज्य सदगुरुदेव ने अपने शिष्यों के समक्ष कर ही दिया था, अब देखते हैं वह कौन से शिष्य होते हैं जो आगे आते हैं और इसे अपनाते हैं ...............
प्रतीक्षा में.. हम सब...
क्यूंकि मेरा विश्वास है, की जब रात के बाद सुबह की पीली किरणें दिख ही गयी हैं, तो अब सूर्योदय भी जल्द ही होगा... J
सदगुरुदेव जी ने स्वर्ण-तन्त्रं नामक जो पुस्तक लिखी थी, उसमे उन्होंने एक से लेकर ८ वें तक के पारद संस्कार और प्रत्येक संस्कार के रोग निवारण के गुण और उपयोग के बारे में चर्चा की थी, अब हम कुछ-कुछ तो समझ सकते हैं, आखिर क्यूँ उन्होंने उसका दूसरा हिस्सा लिख देने के बावजूद सामने नहीं आने दिया, ८ वें संस्कार तक तो पारद शरीर के विभिन्न रोगों को ख़त्म करता है, इसके बाद आटा है विषय धातुवाद.... मगर यह भी हम सब जानते हैं की जितनी आसानी से मैंने यह सब लिख दिया और आपने इसे पढ़ लिया, यह विद्या इतनी भी सरल तो न होगी... नहीं तो क्यूँ आज तक की भी इस पद्धति को कोई ठोस आधार न मिल सका?? फिर तो तमाम डॉक्टरों का तो काम चौपट होना निश्चित ही था.. लोग सालों डॉक्टरी की पढाई करने की बजाये खरल करने में और संस्कार सीखने में समय लगा रहे होते. क्या पता शायद आने वाले युग में ऐसा कोई हो जो इस विद्या के द्वार खोल सके, जन-साधारण के लिए. क्यूंकि विषय में काफी कुछ रहस्योद्घाटन तो परम पूज्य सदगुरुदेव ने अपने शिष्यों के समक्ष कर ही दिया था, अब देखते हैं वह कौन से शिष्य होते हैं जो आगे आते हैं और इसे अपनाते हैं ...............
प्रतीक्षा में.. हम सब...
क्यूंकि मेरा विश्वास है, की जब रात के बाद सुबह की पीली किरणें दिख ही गयी हैं, तो अब सूर्योदय भी जल्द ही होगा... J
Good
ReplyDeleteI want 1.25 kg original ashtasanskarit paradshivling.please tell me it's cost& method of purity check.
ReplyDeleteSir Ji , सिद्ध सूत बनाने की विधि क्या हैं।
ReplyDeleteProcedure of making sidhsut
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