आत्मा
जिस समय शरीर का त्याग कर रही होती है, ठीक उस वक़्त रूस के वैज्ञानिकों ने Bioelectrographic
Camera नामक उपकरण से अब एक प्रामाणिक तस्वीर भी निकल दी है ! इन्होंने यह कार्य
किया गैस डिस्चार्ज यन्त्र के द्वारा, जिसमे की व्यक्ति के जीवत ऊर्जा के स्पष्ट
तसवीरें बन जाति थीं, जब मृत्यु का वक़्त था तो उन्होंने जो तस्वीर खिंची वह पूर्ण
रोप से पुरुशाक्रिती ही बनी मगर वह उर्जा उस शरीर से लगा हो चुकी थी.. इसका अर्थ
ये निकलता है कि हमारी मृत्यु के बाद भी कुछ समय तक हमारे शरीर के अंग तो ठीक ऐसे
ही रहते हैं पर हम शरीर से परे हो चुके होते हैं, हमारी सोच तो फिर भी हमारे पास
रह रही होती है, पर मस्तिष्क नाम की कोई चीज नहीं रहती....
अंग
तो फिर भी सारे
वही रहते हैं, मगर हाड-माँस
के नहीं !
श्री
अरुण कुमार शर्मा जी ने बड़े अछे तरीके से अपनी पुस्तक में इसके सबूत दिए था, वह यह
कि हारे सनातन धर्म में अंतिम संस्कार में दस गात्र श्राद्ध होते हैं....
गात्र
का अर्थ होता है- अंग,
दस
का अर्थ- १०
यानि
हम एक-एक दिन में उस प्रस्थान की हुई आत्मा के एक-एक अंग का निर्माण करते हैं, चावल
पिंड से, और दस दिनों में दसों अंग का निर्माण हो जाता है तब वह आत्मा के लिए नए अंगों की रचना पूर्ण मान ली जाती है, केवल इतना ही नहीं, हम उनके भोजन का भी विशेष ख्याल रखते हैं इतने दिनों तक जब तक की उसकी नई यात्रा शुरू नहीं हो जाती, हम प्रति दिन उससे सात्विक भोजन और जल प्रदान करते हैं, उन्हें जल तो अवश्य देना चाहिए ऐसा माना जाता है कि उस समय कर्ता, यानि जिसने मुखाग्नि दी हो, वह जो भी खाता है, या जो भी सुनता बोलता है, वह उसके मस्तिष्क के उस आत्मा से सम्बन्ध होने के कारण उस आत्मा तक सीधे पहुँच जाते हैं !
वैज्ञानिक कोरोत्कोव के मुताबिक़ जिन अंगों ने सबसे पहले जीवत उर्जा का त्याग किया वे अंग नाभि और सिर थे, ह्रदय पक्ष में सबसे अंत में इसका संचार बंद हुआ, यह बात अलग है कि शरीर त्यागने के घंटों बाद भी मानव का मस्तिष्क जीवित रहता है,
उनके
मुताबिक़ जिन लोगों की मृत्यु अचानक और दर्दनाक होती है, उनका अगर शरीर सुरक्षित
रहता है तो कई बार संभावना है की वापस उस शरीर में आत्मा प्रवेश कर ले क्यूंकि यूँ
पूरे शरीर की उर्जा का क्षय नहीं हुआ होता, सबकुछ अचानक से हो गया होता है,
पर
फिर भी मेरा मानना ये है कि इस संसार में अचानक से तो कुछ होता ही नहीं है, पूरी
श्रृष्टि को विनाश या सृजन के बारे में पहले से ही आभास हुआ हुआ होता है, अगर
किसी की मृत्यु होनी होती है तो कई ऐसे सबूत हैं जो उसे पहले ही दिख जाते हैं, जैसे
की उसके अंगूठे का रंग छः महीने पहले से पीला पड़ जायेगा और चाँद पे भी एक रक्त निशान उभर आटा है, यदि कोई साधू हो, तो वह उसके चेहरे को देखकर उसके ओज से पहचान जायेगा की इसकी मृत्यु तो निकट है,
हमारे
चेहरे में या सिर के आसपास जो आभा मंडल बनता है, वह सात में से किसी एक रंग का
होता है, जिससे की उस व्यक्ति की प्रकृती कैसी है, यह भी पता लग जाता है, बहुत ही
श्रेष्ठ साधू जन के चेहरे पर स्वर्ण आभा बनी हुई रहती है, अगर किसी व्यक्ति के
आसपास लाल आभा बनी हुई है मतलब वह उग्र स्वाभाव का है, गुस्सैल प्रकृती का, कामासक्त
है... यह आभा मंडल प्रत्येक चलते-फिरते आमी को तो नहीं दिखता मगर जो भी व्यक्ति
ध्यान लगते हैं, या क्रिया योग करते हैं, उन्हें जरूर दिखेगा ! जब व्यक्ति का अंत
समय नज़दीक होता है, तो अपने आप उसके आभा मंडल का रंग फीका पडके Grey कलर का हो
जाता है !
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