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Thursday, May 29, 2014

पारद प्रश्नोत्तर -




प्र०- पारद को शुद्ध करने का एक सरल प्रकार, आरिफ जी द्वारा बताया गया, यह था कि 
पारद के समान भाग का सेंधाव लावन लें और उसमें लहसन का रस, अदरक का रस और ग्वारपाठे का रस डालकर १२ घंटे तक खरल करें, फिर डमरू यन्त्र से पारद निकाल लें, यह पारद शुद्ध एवं बुभुक्षित हो जाता है | यह स्वर्ण ग्रास कर लेता है | मगर हम तो यह जानते हैं कि आठवें संस्कार संपन्न करने के पहले पारद बुभुक्षित होता ही नहीं है, तो फिर यह कैसे संभव है ?



उ०-                          “युवा न योगी, वैद्य न रोगी,

                                 कीमिया न मांगे भीख...”


कीमियागिरी मोहम्मदन की एक विद्या थी जिसमे बिना पारद के संस्कार किये ही कुछ उपायों से उसे स्वर्ण सिद्धि दायक बना दिया जाता था ! मगर यह पद्धति मूल वैदिक पारद विज्ञानं से बिलकुल भिन्न है, इसका पारद के उच्चतम उपयोगों से कहीं कोई वास्ता नहीं था, क्यूंकि जब पारद में संस्कार ही नहीं किये गये, तो उसमे वह गुण जो हम देखना चाहते हैं, वह नहीं होगा, उस पारद का शास्त्रों में लिखा कोई भी उपयोग है ही नहीं, न रोग निवारण में, न अन्य उच्चतम संस्कारों में, इसलिए यह तरीका जबरदस्ती का तरीका ही कहा जायेगा, पारद के संस्कारों कि खासियत तो पूरे विश्व भर में मैशहूर है, जो कि इस प्रकार से तैयार पारे में नहीं मिलेगा !


प्र०- पारद विज्ञानं के तीन मुख्य संस्कार क्या हैं ?


उ०- पारद के ८ संस्कार बहु-चर्चित हैं, और किन्ही किताबों में वह दुर्लभ १८ संस्कारों का भी उल्लेख किया हुआ है, मगर इसमें भी तीन अति महत्वपूर्ण संस्कार हैं, जिन्हें समझना परम आवश्यक है | ये तीनों पारद के विभिन्न संस्कार/प्रयोगों का मूल है |



१, शुद्धिकरण – शुद्धिकरण के भी तीन बिंदु हैं, अन्तः शुद्धि, बाह्य शुद्धि एवं शुक्ष्म शुद्धि | इसमें से प्रथम दो प्रकार से शुद्धिकरण तो अभी भी प्रचलित है, मगर तीसरी प्रक्रिया मान्त्रोक्त है और वह भावना पर है, जो कि अब लुप्त प्राय है, बहुत ही गिने-चुने विद्वान् इस प्रकार से पारद शुद्धिकरण कि क्रिया जानते हैं और उसे करते हैं |


२, नियमन – नियमन संस्कार से तात्पर्य एक ऐसे अश्व से पारद के इस संस्कार कि तुलना की गयी है, जो trained कर दिया गया है, वह नियम बढ़ किया हुआ है |

३, दीपन – बुभुक्षिकरण |   


प्र०- कायाकल्प क्या है ? यह किसके माध्यम से संभव है ?


उ०- ‘काया’ का अर्थ होता है शरीर और ‘कल्प’ यानि कि परिवर्तित हो जाना | अथ काया-कल्प का अर्थ है एक विशेष प्रक्रिया से परिवर्तित एवं दिव्य शरीर कि प्राप्ति ! हमारे पूर्वज ऋषियों ने पारद के माध्यम से कायाकल्प करके एक ऐसे दिव्य शरीर कि कल्पना की थी, जो पूर्ण कुण्डलिनी जागृत हो ! अष्ट पाशों से मुक्त हो ! छल विहीन, पूर्णतः स्वस्थ शरीर... क्यूंकि रोगी व्यक्ति आत्मा को नहीं मानता | ध्यान लगाने का तरीका तो अष्ट पाशों से मुक्त होकर ही संभव है, जहाँ किसी प्रकार का भय, लज्जा, घृणा इत्यादि न रहे | और भले ही हम यह बात इतनी सहजता से न स्वीकार कर पाएं, पर हम स्वस्थ दीखते तो हैं पर हम हैं वास्तव में रोगी.. हमारी कुंडलिनी  भी जागृत नहीं है ! क्यूंकि कुण्डलिनी जागृत तो उस शिशु का है, जिसके चेहरे पर एक छोटी सी शिकन भी नहीं आती, वह कितना ही खेले थकता नहीं है, हम तो थोडा सा काम करते ही थक-से जाते हैं, यह इस बात का सूचक हैं कि हुमने कुल-कुण्डलिनी शक्ति का उपयोग नहीं सीखा |




प्र०- बुभुक्षित पारद का क्या महत्व है ?

उ०- बुभुक्षित पारद कल्प चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण अंग है | यह केवल मात्र एक अध्याय नहीं है, औरंगज़ेब से लगाकर श्यामगिरी सन्यासी, ऐ० पी० आचार्य और कृष्ण पाल शास्त्री जी तक भी इसके लिए कई जगह भटके हैं, वह बुभुक्षिकरण कि ही क्रिया है जिसे भली प्रकार से सीखकर और संपन्न कर हम पारद को ज्यादा से ज्यादा शक्ति संपन्न बना सकते हैं | इसके बाद ही हम इसे विभिन्न रत्नों का ग्रास, स्वर्ण ग्रास, हीरक ग्रास आदि देकर विभिन्न प्रकार से उपयोग कर सकते हैं अपनी इच्छा अनुसार | पदार्थ परिवर्तन में यह क्रिया बहुत अहम् भूमिका निभाती है |



प्र०- यह अति-दुर्लभ बुभुक्षिकरण क्रिया किस प्रकार से संपन्न की जाती है ?


उ०- बुभुक्षिकरण क्रिया संपन्न करने के कई तरीके हैं, पर शास्त्र मात्र इसका आभास मात्र ही करते हैं, कहीं भी इसकी पूर्ण विधि नहीं बताई होती | इस क्रिया को दिव्य वनस्पतियों के द्वारा, वानस्पतिक विष के द्वारा, खनिज विष के द्वारा, चूने इत्यादि के द्वारा संपन्न करते हैं मगर यह भी समझना यहाँ अति आवश्यक है कि बुभुक्षिकरण किस प्रकार से करें, क्यूंकि आगे यह पारद भक्षण करेगा तो वह कितनी मात्रा में भक्षण करेगा, वह इसी से तो निर्धारित होता है |


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