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Saturday, January 24, 2015

And Australia wins !



कल पुनः एक बार इसी विषय का परिक्षण करने के लिए हमने एक प्रयोग किया, कृष्णमूर्ति पद्धति को आधार मानते हुए क्या पहले से ही ये बताया जा सकता है कि कौन सी घटना किस प्रकार से घटेगी ??



23 जनवरी को, यानी कल इंग्लैंड – अस्ट्रेलिया के मैच में किसकी जीत होगी यह पता करने के लिए इस बार मैंने एक दिन पहले ही ज्योतिष आधार पर यह पता लगाने का प्रयास किया. मैंने अपने इस मित्र से पूछा कि उसके मन में कौन सा अंक आ रहा है वह बताये (1 से लेकर 249 के बीच में), और कौन सी टीम जीतने वाली लगती है. उसने तत्काल कहा – अस्ट्रेलिया. अंक – 27.


मैंने उसी रात्री को ही 27 अंक के ऊपर होररी कुंडली और उसमें लग्न को अस्ट्रेलिया माना जबकि सप्तम भाव को इंग्लैंड ! अगर अस्ट्रेलिया मैच में विजयी होती तो फिर भारत के लिए भी कुछ अच्छा मौका बन जाता था, नहीं तो भारत के प्रतिष्ठा के लिए नुकसानदायक सिद्ध होता.

                                      अस्ट्रेलिया                         इंग्लैंड 

प्रथम उपेश -                           केतु                               बुद्ध 

तृतीय उपेश -                          शुक्र                               सूर्य                  

पंचम उपेश -                           शनि                               शनि 

एकादश उपेश -                        शनि                              शनि  


अस्ट्रेलिया -


Australia

इसमें लग्न उपेश है - केतु, जिसके तारे में कोई अन्य ग्रह मौजूद नहीं है, यानी नियमानुसार अब केतु अपने नक्षत्रेश का फल न देकर उस घर का फल देग जिसमे वह स्वयं स्थित होगा. केतु स्थित है एकादश भाव में ! जो कि स्पष्ट रोप से सफलता का सोचक है, साथ ही यह बहुत प्रबल कारक है क्यूंकि केतु के तारे में कोई भी ग्रह मौजूद नहीं है.


इंग्लैंड -


England

सप्तम भाव को लग्न मानते हुए जब इंग्लैंड टीम कि कुंडली देखी, तो इसमें लग्न उपेश वक्री गत है, अतः यह स्पष्ट है कि ये जीत नहीं दिला सकती. अतः इतना देखकर ही आगे अध्ययन न भी करें तो फलादेश स्पष्ट है कि मैच का फैसला क्या होना है. अतः मैंने कहा कि - अस्ट्रेलिया कि निर्धारक जीत होगी.

अगले दिन सचमुच में 3 विकेट से अंतिम ओवर में टीम अस्ट्रेलिया कि जीत हो गयी. हम सब इस विद्या कि प्रमाणिकता देखकर आश्चर्यचकित रह गए. वास्तव में ही यह पद्धति एक अपूर्व खोज है.

who will win Bharat - Australlia match ?

Original Horary chart

18
जनवरी को जब भारत – अस्ट्रेलिया का मैच हो रहा था, मैं अपने कुछ मित्रों के साथ बैठा था,... चर्चा चल रही थी ज्योतिष और इसकी प्रमाणिकता पर !

“ज्योतिष सिद्धांत कितने सही होते हैं ??... इसपर फलादेश कितना सटीक बताया जा सकता है ?” – मेरे एक मित्र ने पूछा, संभवतः उसे कई लोगों के सही-गलत फल कथन करने कि वजह से कुछ अविश्वास इस विज्ञान के प्रति हो गया था.


मैंने तत्काल उनसे कहा भाई, आप मैच का स्कोर देख रहे हो, बार-बार, अगर मैं पहले ही पता करके बता दूँ क्या फैसला होगा तो कैसा रहेगा ? वैसे मुझे ऐसे किसी मैच इत्यादि देखने में रुचि नहीं रहती, मगर मुझे तो कृष्णमूर्ति पद्धति कि प्रमाणिकता सिद्ध करनी थी. 

के०पी० भाग – 6 में इसी प्रकार से एक फलकथन करके बताया हुआ है, वही मैं पुनः जांच लेना चाहता था, कि कितना सही उत्तर मिल पाता है. उस समय तो मैच अपनी चरम सीमा में था, कुछ बताना मुश्किल था, भारत जीतेगा या अस्ट्रेलिया ही मैच जीत जाएगा..?


तो इसके लिए मैंने अपने एक मित्र से प्रश्न किया तुम्हें क्या लगता है कौन सी टीम जीतेगी ?
एक अंक बताओ 1 से लेकर 249 के बीच में (इस अंक से मुझे K.P Horary Chart बनानी थी). उसने कहा – “अस्ट्रेलिया जीतेगा. अंक देता हूँ – 100.


अब मैंने इसपर जिस प्रकार से फलादेश किया वही मैं अब यहाँ स्पष्ट कर रहा हूँ...



जीत या हार के लिए इस बनी हुई कुंडली में पहला घर अर्थात लग्न हो जायेगा अस्ट्रेलिया, जबकि लग्न से सातवाँ घर हो जायेगा भारत के लिए लग्न. और इसमें दोनों टीमों के 


प्रथम,
तृतीय,
पंचम और 
ग्यारहवें
घरों का सूक्ष्मता से अध्ययन करना है.

Australlia's Chart

अस्ट्रेलिया -

१. लग्न उपेश – बुद्ध, स्वयं पंचम भाव में स्थित है, और बुद्ध का तारा है – चन्द्रमा.
चन्द्रमा स्वयं स्थित है चौथे भाव में, और साथ ही यह बारहवें घर का स्वामी है.
अब कृष्णमूर्ति पद्धति के प्रथम नियम के अनुसार लग्न सर्वाधिक चौथे भाव का प्रतिनिधित्व करता है क्यूंकि बुद्ध का नक्षत्रेश चन्द्रमा चतुर्थ भावस्थ है. यह जीत दर्शाता है, मगर मामूली सी जीत, बहुत भारी जीत नहीं. मगर इसके साथ ही चन्द्रमा नक्षत्रेश वक्री है, अतः यह जीत नहीं दिला सकता.

२. तृतीय उपेश – शनि. शनि स्वयं बैठा है तीसरे भाव में ! और शनि का नक्षत्रेश खुद शनि ही है, जो कि 6 ठे और 7 वें भाव का स्वामी है. 
तीसरे भाव में स्थित होने के कारण निश्चय ही यह विजय दायक है. नियमानुसार यह सबसे प्रबल कारक बनता है तीसरे घर का, उसके बाद क्रम से 6 ठे और 7 वें भाव का. 
6 ठा भाव विजय कारक बनता है तो वहीँ दूसरी ओर सातवाँ घर पराजय दर्शाता है. 
इसका मतलब जीत तो अवश्य होगी मगर इतनी आसानी से नहीं (क्यूंकि शनि प्रतिद्वंदी के लग्न यानी सप्तम भाव का भी कारक बन रहा है दूसरे लेवल पे).

३. पंचम उपेश – पुनः बुद्ध.

४. एकादश उपेश – बुद्ध.

Bharat's Chart

भारत – इसके लिए आपको सप्तम भाव को लग्न मानकर इसी प्रकार सभी घरों को गिनना होगा !

१. लग्न उपेश – बुद्ध. बुद्ध स्वयं स्थित है एकादश भाव में. बुद्ध नक्षत्रेश चन्द्रमा स्थित है दशम भाव में. तो इससे पहली बार में तो यही समझ में आता है कि यह जीत दिलाएगा, मगर ध्यान दें – चन्द्रमा, जिसका नक्षत्रेश वक्री है.

२. तृतीय उपेश – शनि जो कि अपने खुद के तारे में है यह नवं भावस्थ है, जो कि पराजय कारक माना जायेगा.
पंचम, सप्तम और नवं भाव पराजय 
दसम, एकादश, तृतीय इत्यादि विजय का सूचक माना जाता है.

३. पंचम उपेश – बुद्ध.

४. एकादश उपेश – बुद्ध.

अतः इतने थोड़े से समय में ही मैं इस निर्णय पर पहुँच गया कि इस के०पी० होररी कुंडली के हिसाब से अस्ट्रेलिया कि जीत है, मगर बहुत कम अंतर से, उसी समय मैंने उसे बताया और हम स्कोर देखते-देखते बातें करने लगे. कुछ समय बाद अंततः परिणाम यही निकला. 
इस पद्धति से हम किसी के भी हार-जीत का सही फल कथन लगा सकते हैं, इसकी प्रमाणिकता कई बार सिद्ध की जा चुकी है.

Saturday, January 3, 2015

Pandrahiya Yantra Sadhana




सम्पूर्ण श्रृष्टि कर्म प्रधान है, बिना कर्म किये किसी भी फल कि प्राप्ति संभव नहीं होती, विशिष्ट इच्छापूर्ति कि तो बात ही क्या करें ! और हमारे जीवन में हमारी कई इच्छाएं हैं, जो हम चाह कर भी पूरी नहीं कर पाते... तो फिर क्या करें ?



व्यापार आगे नहीं बढ़ रहा है,


मनोवांछित विवाह नहीं हो पा रहा है..

अच्छी नौकरी नहीं मिल रही है...

किसी ने तंत्र प्रयोग करा दिया हो !

तो इन सब के लिए हमें साधना करना ज़रूरी ही है, और यह भी उच्च कोटि का कर्म ही है, ऐसा नहीं है कि आप आसन पर बैठ मंत्र जाप कर रहे हैं तो कुछ कर नहीं रहे ..... ऐसा बिलकुल भी नहीं है ! ऐसा तो स्थूल दृष्टि से देखने वाले व्यक्ति सोच सकते हैं कि मंत्र साधना या अनुष्ठान करना कोई कर्म नहीं होता | वास्तव में अनुष्ठान करना, जप-तप-दान-धर्म आदि का फल तो कभी भी व्यर्थ जाता ही नहीं है | हाँ, यह बात है कि सही तरीके से विधान संपन्न करना बहुत अधिक आवश्यक है अगर आपको उचित फल चाहिए तो |

पन्द्रहिया यन्त्र साधना के बारे में आज मैं लिखा रहा हूँ जो आपमें से जिसे भी अपने जीवन को संवारना हो, वह इस मकर संक्रांति के पर्व पर 14 जनवरी को यह साधना अवश्य करे !
यूं तो मकर संक्रांत का अपना ही एक अलग महत्व है, पर यह दिन इसलिए भी मैंने आपको बताया क्यूंकि इस यन्त्र को लिखने का एक निश्चित समय निर्धारित है, उसी दिन लिखने से, ठीक उसी प्रकार से लिखने पर और मंत्र जाप करने पर ही इस यन्त्र कि सिद्धि संभव हो पाती है, अन्यथा नहीं. 

क्यूंकि इस यन्त्र के बारे में तो आपने बहुत चर्च सुनी ही होगी, बहुतों के मुंह से आपने ये सुना होगा कि केवल इस एक यन्त्र के प्रभाव से उनकी खोयी हुई आर्थिक सम्पन्नता पुनः वापस मिली है, व्यापार में आश्चर्यजनक लाभ हुआ है इत्यादि इत्यादि.... मगर उन दुकानदारों ने क्या किया कि इस यन्त्र को ताम्बे के पत्र पर बनवाकर ऊंचे दामों में बेचने लग गए. इससे उनकी खूब कमाई होने लगी, कोई 2,100 मूल्य का यन्त्र बेचता, कोई और अधिक !
मगर आप एक बात बताइए, कि जब उसमें स्पष्ट निर्देश है कि ठीक इसी प्रकार से इसी क्रम से इनमे अंक भरें जायें, इसी तिथि को लेखन हो, इस स्याही से ही लेखन हो,... तो फिर अपने मन से सिर्फ उसकी आकृति बना देने से कैसे लाभ हो जायेगा ?

और इसका मंत्र जाप कौन करेगा ? ..............जो कि 21 दिन करना है.....

और जब मंत्र और यन्त्र सिद्ध ही नहीं किया गया, तो फिर ऐसे यन्त्र कि आकृति चाहे ताम्बे के पत्र पर बना ली जाये, या रजत पर या स्वर्ण पर, चाहे रोज़ उसकी धूप-अगरबत्ती करें, प्रसाद चढ़ाएं, फिर भी वह लाभ क्या दे पायेगी, और कितना दे पाएगी.

पन्द्रहिया यन्त्र सिद्ध करने कि विधि यह एक अति प्रभावशाली यन्त्र जिसके निर्माण में ही कुछ ऐसा है कि इससे कई प्रकार के मनोरथ सिद्ध होते हैं. इसमें एक से लेकर नौ अंक नौ खानों में भरे जाते हैं, मगर कौन सा अंक किस खाने में भरना है, पहले कौन सा अंक लिखना है कौन सा बाद में...... इसी के अनुसार फल प्राप्ति होती है. यह यन्त्र 4 प्रकार के बनते हैं – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्णीय यन्त्र. मुख्यतः ब्राह्मण यन्त्र ही सर्वाधिक प्रचलित है क्यूंकि यह सबसे अधिक प्रभाव देता है. 

इस यन्त्र को लाल चन्दन या हिन्गूल या अष्टगंध से उस दिन लीकें जब चन्द्रमा मिथुन / तुला / कुम्भ राशिस्थ हो. इस तिथि को स्नान करके उत्तराभिमुख होकर सामने एक खाली घड़ा रख लिया जाता है. इसके बाद भोजपत्र पर अनार कि कलम से अष्टगंध से इस यन्त्र आपको लिखना है. इसके ऊपर के भाग पे घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें, और नीचे के भाग में गुग्गल का धुप जला लें. और साथ में नैवेद्य इसकी बायीं और रखा जाता है.
यन्त्र लिखते समय आपको बीज मंत्र का उच्चारण निरंतर करते रहना है. 
फिर यन्त्र लिखने के पश्चात पीली हकीक माला से केवल 6 माला मंत्र जाप इस छोटे से मंत्र का कर लें जो कि केवल तीन अक्षरों का है | यही क्रिया 21 दिनों तक करें, नित्य नया यन्त्र निर्माण करना है और छः माला मंत्र जाप करना है, यन्त्र सिद्ध हो जायेगा. इसके बाद यन्त्र का प्रयोग जब भी किया जाए तो उसी अनुसार लाभ प्राप्त होता है,
- विद्या प्राप्ति 
- लक्ष्मी प्राप्ति
- वशीकरण 
- आरोग्यता 
- तंत्र बाधा निवारण
- पुत्र – रत्न कि प्राप्ति 
- मनोवांछित कार्य सिद्धि 
इसका प्रयोग का तरीका सिर्फ इतना है कि यन्त्र सिद्ध कर लेने के पश्चात आपको कुछ संख्या में यन्त्र लिखकर उसकी छोटी गोली बनाकर आंटे में मिलाकर मछलियों को खिला देना है. आपने जिस भी कार्य के लिए प्रयोग किया था वह कार्य निश्चित ही होता है.



Panchdashi Yantra (शूद्र संज्ञक)

कृपया आपसे एक निवेदन है कि मैं पूरी प्रक्रिया और बीज मंत्र इत्यादि यहाँ नहीं लिख पाउँगा, क्यूंकि अब साधना करने वाले लग बहुत कम हो गए हैं, मुख्यतः लोगों को सिर्फ विधान एकत्र करके रखने में दिलचस्पी है. उसे करके लाभ पाने में वे संकोच करते हैं, तो मैं भी केवल उन्हीं कुछ व्यक्तियों को यह विधान बताना चाहूँगा जो वास्तव में साधना करने वाले हैं. अतः आप कृप्या सारी सामग्री जैसे कि भोजपत्र, पीली हकीक माला, अनार कि कलम, गुग्गल आदि कि व्ययवस्था जल्द कर लीजिये और मुझसे संपर्क करके पूरी विधि जान लीजिये फिर साधना करिए. 

क्यूंकि गुप्त विधान यूँही सभी को नहीं बता दिए जाते, फिर उससे लाभ भी नहीं मिलता !


इस यन्त्र साधना से क्या-क्या लाभ प्राप्त हो सकते हैं ?

१ से नौ तक अगर यन्त्र लिखकर सिद्ध करते हैं तो यक्ष सिद्ध होता है.
२ से शुरू कर लिखने पर राज्याधिकार में विजय मिलती है.
३ से शुरू कर लिखने पर व्यापार वृद्धि.
४ से शुरू कर लिखने पर सभी दोषों का, उच्चाटन आदि प्रयोग नष्ट हो.
५ से शुरू कर लिखने पर अशुभ फल मिलता है, इसे न करें.
६ से शुरू कर लिखने पर मारण प्रयोग से रक्षा.
७ से शुरू कर लिखने पर वशीकरण सिद्धि.
८ से शुरू कर लिखने पर अत्यधिक धन लाभ.

मेरा सुझाव यही है कि सभी को ३, ४ और ८ से शुरू करके अंक भरने वाला क्रम करके अवश्य कम-से-कम एक बार तो देखना ही चाहिए. आपको इस क्रिया में अधिक समय नहीं लगेगा | 21 दिन कि साधना है, इसलिए बहुत सरल भी है. अच्छे समय का लाभ ज़रूर उठाएं और जब साधना करने का मन बना लें तो मुझे सूचित कर दीजियेगा मैं पूरी प्रक्रिया समझा दूंगा. सदगुरुदेव आपको पूर्णता दें. आपके लिए आने वाले शुभ पर्व पर नित्य नयी सफलताओं कि कामना करता हुआ, आपका गुरुभाई..