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Wednesday, December 31, 2014

अभी तो 2014 नहीं आया, आप 2015 कि बधाईयाँ दे रहे हैं ?




मित्रों सभी लोग देखा-देखी 2015 new year की बधाइयाँ दे रहे हैं !

अर्थात 2014 साल बीत गए 2015 शुरू हो गया ?

लेकिन 2014 साल किसके बीत गए ?


2014 साल पहले क्या था ? क्या इस धरती को बने सिर्फ 2014 साल बीते हैं ?



दरहसल 2014 साल पहले ईसाई धर्म की शुरुआत हुई थी और क्योंकि अंग्रेजों ने भारत को 250 साल गुलाम बनाया था इसीलिए आज ये उन्हीं का कैलंडर हमारे देश चला रहा है !

जबकि हम हिन्दू (सनातनी ) तो जब से से धरती बनी है तब से हैं !_______________________________


खैर आप आते है मुख्य बात पर !
क्या सच मे 2015 आ गया ?? 

2015 तो क्या भी तो 2014 भी नहीं आया !!

मित्रो आपने थोड़ा भी विज्ञान पढ़ा हो तो ये बात झट से आपके समझ मे आ जाएगी !! की 2015 आया ही नहीं बल्कि 2014 भी नहीं आया !!
आइए अब मुख्य बिन्दु पर आते हैं ! पहले ये जानना होगा कि एक वर्ष पूरा कब होता है ??? और क्यों होता है ???
एक वर्ष 365 दिन का क्यों होता है ??
और एक दिन 24 घंटे का ही क्यों होता है ??
तो पहले बात करते हैं 1 दिन 24 घंटे का क्यों होता है ?
तो मित्रो आपने पढ़ा होगा की हमारी जो धरती है ये अन्य ग्रहों की भांति सूर्य के चारों और घूम रही है !! और चारों और घूमते-घूमते अपने आप मे भी घूम रही है ! इस वाक्य को फिर समझे कि एक तो पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ गोल-गोल घूम रही है और चारों तरफ चक्र लगाते-लगाते अपने आप मे भी घूम रही है !! अर्थात आपने -आप मे घूमने के साथ साथ सूर्य के चारों और घूम रही है !
पृथ्वी अपने अक्ष(अपने आप ) मे घूमने में 24 घंटे का समय लेती है,ध्यान से समझे अपने आप मे घूमते हुये पृथ्वी का जो हिस्सा सूर्य की तरफ होता है वहाँ दिन होता है और दूसरी तरफ रात !!
जिसे हम एक दिनांक(एक दिन ) मान लेते हैं। तो इस तरह पृथ्वी के अपने आप मे एक चक्र पूरा होने पर एक दिन पूरा हो जाता है जो की 24 घंटे का होता है !!
अब बात करते एक साल 365 दिन का कैसे होता है ??
तो जैसा की हमने ऊपर बताया की अपने अक्ष पर घूमने के साथ-साथ पृथ्वी सूर्य के चारों और भी घूम रही है ! सूर्य के चारों ओर पूरा एक चक्कर लगाने में पृथ्वी 365 दिन 6 घंटे का समय लेती है।
अब 365 तो समझ आता है लेकिन अब जो 6 घंटे है इसका कुछ adjust करने का हिसाब किताब बनता नहीं तो इन एक साल को 365 दिन का ही मान लिया ! तब ये फैसला अब जो हर साल 6 घंटे बच जाते है तो चार साल बाद इन 6+6+6+6 =24 घंटे 24 घंटों का पूरा एक दिन बन जाता है, !
इसलिए हर चार साल बाद leap year आता है जब फरवरी महीने मे एक दिन बढ़ा कर जोड़ देते हैं ओर हर चार वर्ष बाद 29 फरवरी नामक दिनांक के दर्शन करते हैं।बस सभी समस्याओं की जड़ यह 29 फरवरी ही है। इसके कारण प्रत्येक चौथा वर्ष 366 दिन का हो जाता है।
यह कैसे संभव है? सोलर कलेंडर के हिसाब से तो एक वर्ष वह समय है, जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपना एक चक्कर पूरा करती है। चक्कर पूरा करने में 366 दिन नहीं अपितु 365 दिन 6 घंटे का समय लगता है। इस लिहाज से तो एक साल जिसे हम 365 दिन का मानते आये हैं, वह भी गलत है। परन्तु फिर भी, क्योंकि इन अतिरिक्त 6 घंटों को चार साल बाद एक दिनांक (दिन )के रूप में किसी वर्ष में शमिल नहीं किया जा सकता इसलिए प्रत्येक चौथे वर्ष ही इनके अस्तित्व को स्वीकारना पड़ता है।
फिर भी किसी प्रकार इन 6 घंटों को एडजस्ट करने के लिए प्रत्येक चार वर्ष बाद 29 फरवरी का जन्म होता है। अब यहाँ आप देखिये की हर साल हामारे पास 6 घंटे फालतू बच रहे थे !

तो 4 साल बाद 6+6+6+6 घंटे जोड़ 24 घंटे का एक दिन बनाकर leap year बना दिया ! साल का एक दिन बढ़ा दिया !

अब हर साल जो 6 घंटे बच रहे थे वो तो 4 साल बाद adjust कर दिये ! लेकिन हर चार साल बाद 1 पूरा दिन जो फालतू बन रहा है उसे कहाँ adjust करेंगे ??

अब अगर 4 साल बाद हमारे पास एक दिन फालतू बच रहा है 

इसी प्रकार 100 साल बाद 25 दिन ज्यादा बच गए !


और इसी प्रकार
200 साल बाद 50 दिन ज्यादा बच !
400 साल बाद 100 दिन फालतू बच गए !
800 साल बाद 200 दिन फालतू !
1200 साल बाद 300 दिन फालतू
और 365 x 4 = 1460 वर्षों के बाद ( 365 दिन ) एक पूरा वर्ष भी तो बना देता है।
अब हर साल 6 घंटे जो फालतू बच जाते थे उसे हम हम प्रत्येक चार साल बाद 29 फरवरी के रूप में एक दिन बढ़ा कर एडजस्ट कर रहे थे। इस हिसाब से तो प्रत्येक 1460 वर्षों के बाद पूरा एक बर्ष फालतू बन जाता है l leap year मे एक दिन बढ़ाने की तरह 1460 साल बाद पूरा एक वर्ष बढ़ना चाहिए (adjust होना चाहिए ! अत: अभी 2015 नहीं, 2014 ही होना चाहिए।
क्योंकि ईस्वी संवत(ईसाइयो का जन्म ) मात्र 2015 वर्ष पुराना है, अत: अभी 2013 की सम्भावना नहीं है। क्योंकि इसके लिए 2920 वर्ष का समय लगेगा।
क्या झोलझाल है यह सब?
दरअसल सोलर कलेंडर के अनुसार दिनांक, माह व वर्ष केवल पृथ्वी व सूर्य की स्थिति पर निर्भर करते हैं। जबकि इस पूरे ब्रह्माण्ड में अन्य आकाशीय पिंडों को नाकारा नहीं जा सकता। इनका भी तो कोई रोल होना ही चाहिए हमारे कलेंडर में। इसीलिए विक्रम संवत में हमारे हिंदी माह पृथ्वी व सूर्य के साथ-साथ राहु, केतु, शनि, शुक्र, मंगल, बुध, ब्रहस्पति, चंद्रमा आदि के अस्तित्व को स्वीकार कर दिनांक निर्धारित करते हैं।पृथ्वी पर होने वाली भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार ही महीनों को निर्धारित किया जाता है न कि लकीर के फ़कीर की तरह जनवरी-फरवरी में फंसा जाता है।
आप अँग्रेजी की कोई भी डिक्शनरी उठाईए !!

Sept का अर्थ- सात

Oct, का अर्थ -आठ

Nov, का अर्थ -नौ

Dec का अर्थ - दस 
होता है

किन्तु जब महीनो की बात आती है तो
 .....


Sept,
को नौवाँ,


Oct,
को दसवां 

Nov
को ग्यारहवा ,

Dec को बारवहाँ महीना माना जाता है !!


जबकि इन्हें क्रमश: सातवाँ
, आठवा, नवां व दसवां महिना होना चाहिए था।
दरअसल ईस्वी संवत(ईसाईयों के जन्म ) के प्रारंभ में एक वर्ष में दस ही महीने हुआ करते थे। अत: September, Octuber, November December क्रमश: सातवें, आठवे, नवें व दसवें महीने हुआ करते थे।
किन्तु अधूरे ज्ञान के आधार पर बना ईस्वीं संवत(ईसाई लोग ) जब इन दस महीनों से एक वर्ष पूरा न कर पाया तो आनन-फानन (जल्दी जल्दी में ) 31 दिन के जनवरी व 28 दिन के फरवरी का निर्माण किया गया व इन्हें वर्ष के प्रारम्भ में जोड़ दिया गया।
फिर वही अतिरिक्त 6 घंटों को 29 फ़रवरी के रूप में इस कैलंडर में शामिल किया गया। ओर फिर वही झोलझाल शुरू।

इसीलिए पिछले वर्ष भी मैंने लोगों से यही अनुरोध किया था कि
1 जनवरी को कम से कम मुझे तो न्यू ईयर विश न करें। तुम्हे अज्ञानी बन पश्चिम का अन्धानुकरण करना है तो करते रहो 31 दिसंबर की रात दारू, डिस्को व बाइक पार्टी। और क्या आपने कभी अपने पड़ोसी के बच्चे का जन्मदिन मनाया है ??? तो फिर ये ईसाई अँग्रेजी नव वर्ष क्यों ???
क्या इस दुनिया को बने हुए सिर्फ 2014 वर्ष हुए है ???

नहीं ! ईसाई धर्म की शुरुवात 2014 वर्ष पहले हुई है !! जब हम हिन्दू ,भारतीय और हमारी संस्कृति उतनी ही पुरानी है जितनी ये धरती !!तो खैर !ईसाई धर्म की शुरुवात 2014 वर्ष पहले हुई है !!तब यह झमेला कैलंडर शुरू हुआ है !! और क्यों अंग्रेजों ने भारत पर 250 साल राज किया था और क्योंकि अंग्रेज़ो के जाने के बाद आजतक भारत मे सभी अँग्रेजी कानून वैसे के वैसे ही चल रहे है !! तो ये अँग्रेजी कैलंडर भी चल रहा है !! ये एक गुलामी का प्रतीक है इस देश मे !!
हम अपने सभी धार्मिक पवित्र कार्य विवाह की तारीक निकलवाना ,बच्चे का चोला , और यहाँ तक हमारे सारे त्योहार भारतीय हिन्दू कैलंडर के अनुसार मानाते है ! तभी तो ये त्योहार हर साल अँग्रेजी कैलंडर के अनुसार अलग अलग तारीक को आते है !! जब भारतीय कैलंडर के अनुसार उसी तारीक वही होती है वो बात अलग है ज़्यादातर लोगो को भारतीय कैलंडर देखना नहीं आता क्यों कि उनको पढ़ाया नहीं गया तो उनको समझ नहीं आता जबकि हमारा भारतीय ,हिन्दू कैलंडर पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है, scientific है !! फिर भी हम मानसिक रूप से अंग्रेज़ियत के गुलाम है ! और उनके पहरावे उनके त्योहार, हर चीज उनकी नकल करते हैं !!


हम उन लोगों कि मजबूरी को फैशन और आधुनिकता समझ रहे है !! इस एक वाक्य को अगर आपने पूर्ण रूप से समझना है कि कैसे हम उनकी मजबूरीयों को फैशन समझते है !!
उसके लिए यहाँ click करे और राजीव भाई का ये व्याख्यान जरूर जरूर सुनें !!






नोट : ग्रहों की स्थिति के आधार पर हिंदी मास बने हैं, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि ज्योतिष विद्या को सर्वश्र मानकर बैठ जाएं । हमारी संस्कृति कर्म प्रधान है । सदी के सबसे बड़े हस्तरेखा शास्त्री पंडित भोमराज द्विवेदी ने भी कहा है कि कर्मों से हस्त रेखाएं तक बदल जाती हैं ।

- राजीव भाईजी.

Tuesday, December 30, 2014

Why Vedic Astrology fails ?



कई ज्योतिषियों को यह भ्रम है कि वैदिक ज्योतिषी और K.P. दोनों अलग - अलग विधि हैं ज्योतिष के ... मैं पूछता हूँ क्या उन्होंने K.P. का अध्ययन किया ?
यदि नहीं किया है, तो अवश्य करें, क्यूंकि उसके बिना वे ऐसी धारणा भला कैसे रख सकते हैं.

आज भारत में इतने संख्या में जोतिषी भरे पड़ें हैं और मैं दावे के साथ कहता हूँ, कि आप 5 ऐसे जानकार ज्योतिषियों से अपनी जन्म-कुण्डली दिखा लीजिये वे आपको पांच अलग बातें बता देंगे. और पाँचों कि बातें, पाँचों कि राय, उनका निष्कर्ष आपस में भिन्न रहेगा. तो फिर ऐसा क्यूँ है ??

और फिर सामान्य जन इसके लिए क्या करे, कहाँ जाये ..?

क्यूँ न खुद ही आपको कोई ऐसी विधि बता दी जाए जो सही हो, सरल हो, जिससे आप स्वयं अपने जीवन कि समस्याओं का निराकरण कर सकें.

मैंने इसीलिए ब्लॉग के माध्यम से सबकुछ आपके सामने रखने का निर्णय किया था
नहीं तो मैं भी अन्य ज्योतिष कि तरह धनोपार्जन तो कर ही सकता था, फिर ऐसा करने कि मुझे क्या ज़रुरत थी..... इसकी इसलिए आवश्यकता थी तांकि आपका धन, आपका समय नष्ट न हो... आपके जीवन में सुधार हो, और सच - मुच ज्योतिष के माध्यम से आप लाभ ले सकें. K.P. के माध्यम से तो लोगों ने Shares तक में invest करके लाखों रुपये कमाएं हैं, क्यूंकि यह इतना सही होता है, अगर यह गलत होता तो भला ऐसा कैसे संभव हो पाता था ? और फिर अगर आप स्वयं इसे सीख लें तो आप स्वयं क्या-क्या कर सकते हैं... 


आज के लेख में मैं ASPECT OF PLANETS अर्थात ग्रहों कि आपस में दृष्टि को समझाऊंगा. 
महर्षि पराशर ने बताया है कि सभी ग्रह सातवें भाव पर दृष्टि डालते हैं. इसके साथ ही शनि 3rd और 10th घर में, बृहस्पति 5th और 9th घर पर और मंगल 4th और 8th पर भी दृष्टि डालते हैं | और इन ग्रहों कि ये दृष्टियाँ 7 वें घर कि दृष्टि से अधिक बलवान होती है | मगर, केवल इतने से काम नहीं चलेगा, इसी वजह से गलती होती है ! 

भाव से भाव कि दृष्टि देखने में इसलिए गलती कि सम्भावना बहुत अधिक हो जाती है, क्यूँ गलती होने कि संभावना बनती है, क्यूंकि एक राशि में होते है - 30°, परन्तु दो ग्रहों के बीच वास्तविक दृष्टि कितनी है, यह देखना है तो सबसे सरल तरीका है ग्रहों के अंश को देखो !  
जो कि शायद कम ही गिने चुने ज्योतिष जानते हैं देखना और उसका प्रभाव .....
तो वही मैंने आज यहाँ लिखा है, अगर इस विधि से देखेंगे तो बिलकुल एक - एक बात समझ में आती है. 
सीधी सी बात है न, अगर हमारे पास एक घडी है, जिसमें सेकंड कि सुई है ही नहीं, तो वह घडी हमें केवल मिनट ही तो बताएगा... सेकंड नहीं बता सकता वह. इसी प्रकार से अगर मिनट वाली सुई भी हटा दो, तो घंटे वाली सुई तो सिर्फ एक-एक घंटे का समय बताएगा, या तो 9 बजेंगे, या फिर सीधे 10..... अब अगर बिच में वह सुई है तो 9:11 बजा है या 9:48 या 9:35 वह हमें ठीक-ठीक नहीं मालूम.
ठीक इसी कारण से ग्रहों कि दृष्टि भी हमें ग्रह-अंश से देखना चाहिए.



1. Conjunction                      0°                           सर्वाधिक शुभ, बलि 

2. Opposition                        180°                       अशुभ

3. Trine                                 120°                       बहुत शुभ

4. Square                               90°                         अत्यधिक अशुभ



5. Sextile                                 60°                         ट्राईन के सामान शुभ

6. Semi - Square                    45°                        कम अशुभ 

7. Semi - Sextile                     30°                        कुछ शुभ 

8. Quincunx                            150°                      विपरीत फल

9. Quintile                               72°                        शुभ 

10. Biquintile                          144°                      ट्राईन के समान शुभ

11. Sesquiquadrate                135°                     45° के समान कुछ अशुभ



12. Vigintile                            18°                        कुछ शुभ

13. Quindecile                         24°                        कुछ शुभ

14. Decil Semiquintile            36°                        काफी शुभ 



15. Tredecile                          108°                      शुभ 

                                                 54°                        कुछ शुभ 
                                     
                                                162°                      कुछ शुभ 



कोई भी ग्रह इसमें भी उसी अनुसार दृष्टि कर रहा है जैसा वेदोक्त बताया है अर्थात ऐसा नहीं है कि कोई ग्रह नियमों को छोड़कर 2, 6, या 11 में दृष्टि डाल दे ! बिलकुल नहीं... अर्थात यह सूक्ष्मता के लिए अवश्य अपनाई जा सकती है, अन्यथा गलती कि संभावना होती है.

contd....

Saturday, December 27, 2014

Stellar Studies necessary for Correct Predictions !





क्यूँ आज के समय में कई ज्योतिषियों कि भविष्यवानियाँ गलत हो जाती हैं, अगर इस बारे में विचार करें तो इसका कारण है कि कई लोग ग्रह के नक्षत्रेश को नहीं देखते, या उन्होंने कभी इस तरीके से सोचा नहीं | तो भले ही वे ज्योतिष पूरी ईमानदारी से सभी सूत्रों का अध्ययन करे फिर भी फलादेश संदिग्ध ही रहेगा जब तक नक्षत्रेश और उप का अवलोकन न कर लिया जाए | वह इसीलिए क्यूंकि यह सूक्ष्म बातें होती हैं | आईये अब इस लेख में समझते हैं कि यह अध्ययन क्यूँ महत्वपूर्ण है और क्या प्रभाव देता है

मान लीजिये एक कमरे के मध्य में एक प्रकाश का श्रोत है , एक बल्ब लगाया हुआ है | कमरे कि दीवारें पारदर्शी शीशे की हैं ! कमरे के बाहर कि तरफ चारों दिशाओं में 3 अलग-अलग रंग के कांच लगा दिए गए हैं, जो कि कुल मिलाकर 12 हो गए | ये बारह अलग रंग के कांच 12 राशियों के प्रतीक हैं और प्रकाश का श्रोत एक ग्रह के समान है ! 
इसके बाद अब 27 नक्षत्रों के प्रतीकात्मक उनके बाहर फिर और 27 रंग के परदे या कांच लगाये गए | इसे समझने के लिए कृप्या चित्र देखें -


अब जब कोई व्यक्ति बाहर खड़े होकर अन्दर टंगे बल्ब को देखता है तो उसे वह बल्ब कई रंग का दिख सकता है

हो सकता है कि पीले रंग कि राशि हो और लाल रंग का नक्षत्र तो उसे वह बल्ब नारंगी दिखेगा ! 

या फिर हो सकता है कि पीले रंग कि राशि में काले रंग का नक्षत्र हो जिससे बल्ब गहरे रंग का दिखे !

और ये राशि और नक्षत्र लगातार गतिशील रहते हैं, अतः इनका प्रभाव भी बदलता रहेगा | इस छोटे मगर महत्वपूर्ण प्रयोग से हमें यह समझ में आया कि केवल राशि का स्वामी ही नहीं बल्कि नक्षत्र स्वामी भी निश्चित रूप से अपना पूरा प्रभाव डालता है, इसलिए जब गन्ना करें तो नक्षत्रेश और उपेश भी अवश्य देखना होगा अगर सटीक फलादेश करना है तो, नहीं तो लाखों लोग तो फलादेश कर ही रहे हैं | उनसे लोगों को कितना लाभ मिलता है कितना इसके प्रति उनका विशवास बढ़ा है अथवा घटा है हम सभी जानते हैं | इतना समझ लेने के बाद अब अगली पोस्ट में कैसे नक्षत्र हमारी जीवन के विभिन्न घटनाओं को प्रभावित करते हैं या कैसे हम पता कर सकते हैं हमारे जीवन में कौन सी घत्ब्ना कब घटेगी, वह देखेंगे !



एक बात और इससे यह भी पता चलता है कि ग्रह उच्च, नीच, शत्रु क्षेत्री अथवा मित्र क्षेत्री होने से ग्रह का कैसा प्रभाव निर्धारित होता है | क्यूंकि अगर 15 Wt का बल्ब जल रहा है तो वह 100 Wt वाले बल्ब से कम ही तो रौशनी देगी न.. फिर इसका उपाय क्या है ?... इसी के लिए लोगों को रत्न धारण का उपाय बताया जाता है जिससे कि उस ग्रह यानि ऊर्जा श्रोत को ही जागृत किया जा सके ! मुझे यह कहते हुए भी संकोच नहीं है कि कुछ ऐसे लोग आ गए हैं इस क्षेत्रस में, जो बस एक या दो चीज देखकर सीधे रत्न बता देते हैं और कई तो सस्ते रत्न ही महंगे करके दे देते हैं ! मेरा मानना ये है की इस उपाय के लिए आप जो भी रत्न लें थोडा महंगा हो तो हो मगर एक दो वह प्रभाव देने वाला हो, और दूसरी ठीक तरह से अध्ययन करके बताया गया हो | ज्योतिष अपने स्वार्थ के लिए भी कोई न कोई ग्रह-रत्न बताते फिरते हैं कृप्या नेत्र मूंद कर किसी पे विशवास न करते हुए स्वयं समझकर उपाय को करें, इससे व्यर्थ खर्च से बच सकेंगे !

Thursday, December 25, 2014

कृष्णमूर्ति पद्धति सिद्धांत -






कृष्णमूर्ति पद्धति सिद्धांत -

12 राशियों में से किसी भी एक राशि में स्थित ग्रह का दायरा काफी लम्बा होता है, अर्थात पूरे 30 अंशों कि राशि में तो वह ग्रह कहीं भी हो सकता है न, तो इस वजह से वे सभी कुण्डलियाँ  जिसमें सूर्य कन्या राशि में स्थित होगा उसका फल एक सा ही होगा ऐसा नहीं बताया जा सकता !

कृष्णमूर्ति पद्धति में एक नयी विधि को सामने लाया गया, जिसमें किसी ग्रह को केवल उसके राशि और भाव में स्थित होने भर से ही फलादेश न करते हुए, उस ग्रह के नक्षत्रेश, उपेश और उनका उस ग्रह पर क्या प्रभाव पड़ रहा है इसे देखकर फिर फलादेश किया जाता है | कहने कि बात नहीं है कि इस प्रकार से गणना करने पर सत्यता के काफी निकट और यदि सूक्ष्मता से देखें तो आश्चर्यजनक रूप से सही फल निकलता है |

सभी ग्रह बसंत सम्पात में निरयण पद्धति के अनुसार भ्रमण करते हैं जिसे गोचर कहते हैं | इस प्रकार मेष राशि (30 अंश) में आने पर सबसे पहले वह ग्रह अश्विनी नक्षत्र (13 : 20 अंश) में गोचर करेगा, फिर उसी राशि के अगले नक्षत्र भरणी में, इस प्रकार से अंत में वह अंतिम राशि मीन में रेवती नक्षत्र में होगा | इस प्रकार से सभी 27 नक्षत्रों का चक्र पूर्ण होता है | अब प्रत्येक नक्षत्र (13 : 20) का दायरा भी काफी बड़ा है इसलिए उसे विमशोत्तरी दशानुसार 9 भागों में विभाजित करते हैं जिसे ‘उप’ कहते हैं | नक्षत्र के स्वामी को नक्षत्रेश कहते हैं और उप - स्वामी को उपेश | 

सामान्यतः तो हम यही जानते रहे हैं कि गुरु, शुक्र, शुभ संगत बुद्ध, शुक्ल पक्ष का चन्द्र शुभ ग्रह होते हैं,

और

सूर्य, मंगल, शनि, राहू और केतु अशुभ परन्तु 
कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार किसी गृह का शुभ फल प्राप्त होना है या अशुभ यह उस ग्रह के उप – नक्षत्र में स्थित होने से तय होता है, अर्थात उपेश जिन शुभाशुभ भावों का स्वामी होगा वह तय करेगा कि वह ग्रह कैसा फल देगा !