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Saturday, January 11, 2014

मकर संक्रांति - संकल्प सिद्धि दिवस



(मकर संक्रांति 14th January, 2014).

मकर संक्राति के विशेष अवसर पर अनेक सिद्ध प्रयोग किए जा सकते हैं, और सभी निश्चित रूप से सिद्धिदायक होते ही हैं, इसीलिए इसे संकल्प सिद्धि दिवस भी कहा जाता है. यह तो भगवान सूर्य का वह तेजस्वी दिवस है जिसमे कोई भी साधक किसी भी संकल्प को लेकर यदि साधना शुरू करता है तो अवश्य उसका कार्य सिद्ध होता है. हम सबको ये ज्ञात है की सूर्य की दो गतियाँ होती हैं, उत्तरायण और दक्षिणायण. ‘आयण’ का अर्थ होता है ‘movement’… सूर्य की गति 6 महीने उत्तरायण में होती है, और 6 महीने दक्षिणायण में. प्रत्येक वर्ष 14th January को सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाते हैं और 14th July यानि कर्क संक्रांति तक उत्तरायण में होते हैं, इसी प्रकार से अगले ६ महीने दक्षिणायन में उनकी गति होती है.


उत्तरायण में प्रवेश करने के प्रथम दिवस को ही पुरे भारतवर्ष में ‘मकर संक्रांत’ के रूप में मनाते हैं... तमिल नाडू में ‘पोंगल’... आसाम प्रदेश में माघ बिहू और भोगल बिहू .. उत्तर प्रदेश में खिचड़ी.. और बिहार में तिल संक्रांत के रूप में इसे ही हम मनाते हैं. हरयाणा और पंजाब में भी लोड़ी मानाने के पीछे यही मान्यता है की अब से बड़े दिन की शुरुआत हो रही है, ठण्ड के चरम सीमा पर पहुँचने के बाद अब गर्मी के आने का शुभ संकल्प.. और इस दिन के विषय में भगवान कृष्ण ने ‘गीता’ में कहा है की देवताओं के लिए दिन की शुरुआत होती है.. उनके लिए उत्तरायण दिन है, और दक्षिणायण का समय है रात. इसीलिए यह माना जाता है की इस दिन ही वो ६ महीने की नींद से पुनः जागृत होते हैं. प्रत्येक शुभ कार्यों की शुरुआत इस दिन से सफलता पूर्वक की जा सकती है !

विवाहित स्त्रियाँ इस दिन अपने पति के लम्बी उम्र की कामना के लिए वव्रतोपासना करती हैं, की जिस प्रकार से दिन की अवधि बढ़ रही है उसी प्रकार से इनकी उम्र भी बढती रहे !

मकर शनि ग्रह की राशि है, जो की सूर्य-पुत्र हैं. सूर्य देव का मकर राशि में प्रवेश करने का तात्त्पर्य यह है की सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके गृह में प्रवेश करते हैं. ये दोनों ही अत्यंत प्रभावशाली ग्रह है और इस दिन इनकी पूजा करने से निश्चय ही पिता-पुत्र के रिश्ते सुधारते हैं, परिवार में सम्पन्नता आती है, मनुष्य अपने जीवन में उचाईयों को छूता है. ग्रहदोष भी दूर होते हैं. इस दिवस पे तिल के लड्डू बनाने और खाने के पीछे भेद भी यही है- तिल शनिदेव का प्रतीक है और गुड़ प्रतीक है सूर्यदेव का. इसीलिए इस दिन तिल के लड्डू के उपयोग से स्वाभाविक रूप से इन दोनों ग्रहों के शुभ फल प्राप्त होते हैं ! प्रत्येक साधक इस दिन स्नान कर सूर्य को उनके 12 नामों से अर्ध्य देता है और अपनी श्रद्धानुसार तिल-दान, वस्त्र-दान, पात्र-दान इत्यादि संपन्न करता है.


आप भी इस दिन एक विशिष्ट साधना संपन्न कर अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए संकल्प ले सकते हैं, इस साधना से. साधक अपने नियमानुसार प्रातः स्नान कर, सफ़ेद धोती धारण कर और ऊपर कोई ऊनी चादर वगेरह ओढ़कर अपने साधना कक्ष में पूर्व दिशा की और मुख करके आसन पर बैठ जायें. सबसे पहले गुरुदेव का स्मरण करके उनसे निवेदन करें की आपकी साधना सफल हो. फिर एक माला गुरु मंत्र की करें. फिर गणपति का स्मरण करें. तत्पश्चात दायें हाथ में जल लेकर अपनी मनोकामना बोलें जिसके लिए आप ये साधना संपन्न कर रहे हैं, फिर जल जमीन पर छोड़ दें.

सामने बाजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछा कर उसपर 13 चावल की ढेरियाँ बनाएं और उसपर 1-1 सुपाड़ी स्थापित करें. अब प्रत्येक सुपाड़ी पर 1-1 तिल और गुड़ से बने हुए लड्डू अर्पित करें. इसके बाद सामने अनामिका उंगली से कुमकुम से स्वास्तिक चिन्ह बनाएं और उसपर गंगाजल से धोकर पहले से ही बनवाया हुआ एक ‘तांबे का कड़ा’ उस स्वास्तिक चिन्ह पर स्थापित कर दें. यह कड़ा आप कहीं से भी खरीद सकते हैं, जो की एक तरफ से खुला हुआ हो एवं धारण करने योग्य हो. इसी कड़े को सिद्ध करने की विधि आगे बताई जा रही है...

किसी तांबे के पात्र में शुद्ध जल लेकर सूर्य के परम प्रभावशाली नामों से, सूर्य देव का आवाहन करते हुए, प्रत्येक नाम के साथ नमः लगाकर, उन सुपाड़ियों के सामने और कड़े पर जल अर्पित करें, साथ ही कुमकुम एवं लाल पुष्प भी चढ़ाएं-

सविता ,
प्रभाकर,
धर्मध्वज,
कालचक्र,
कामद,
सर्वतोमुख,
प्रशान्तात्म,
तेजपति,
अज,
दिपान्तासु,
प्रजाध्यक्ष,
संवर्तक,
भानु.

अब मध्य में रखे सूर्य कड़े पर २१ बार मूल मंत्र पढ़ते हुए तिल एवं लाल पुष्प अर्पित करते हुए सूर्य देव का आवाहन उसपर करें.

मूल सूर्य मंत्र –

      || ॐ हं खं खखोल्काय नमः ||
|| OM HAM KHAM KHAKHOLKAAY NAMAH ||

फिर इसपर 8 दिशायों में स्थित देवियों की पूजा करते हुए निम्न मंत्र पढ़ते हुए इनपर तिल चढ़ाएं-

रां दिप्तायै नमः ||
रीं सूक्ष्मायै नमः ||
रूं जयायै नमः ||
रं विभूतये नमः ||
रों विमलायै नमः ||
रां अमोघायै नमः ||
रं विद्युतायै नमः ||
रें भाद्रायै नमः ||

ये आठों शक्तियां सूर्य की शक्तियां हैं, और साधक को सूर्य शक्ति के प्रभाव से अपना गुण-प्रभाव देने में समर्थ हैं. अब पुनः मूल मंत्र की ११ माला मंत्र जप स्फटिक माला से संपन्न करके उस कड़े को धारण कर सकते हैं.
इस प्रकार से सिद्ध किये हुए कड़े को धारण करने से हम देखते हैं की हमारी मनोकामना सिद्धि में स्वतः ही सहायता मिलती रहती है, वह मार्ग की बाधाओं को समाप्त करता रहता है और साधक अगर चाहे तो आगे भी नित्य इस मंत्र की एक माला फेर सकता है जब तक की उसकी इच्छा की पूर्ति नहीं हो जाता.



इस प्रकार यह साधना संपन्न होती है, अगले दिन उस वस्त्र में ही उन सुपाड़ियों और पूजन सामग्री को डालकर विसर्जित कर आयें.

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