मित्रों हम बात कर रहे थे, कि हम किस प्रकार से ज्ञात करें की हमारे पास जो
रत्न, या जो विग्रह, या जो सामग्री हमने ली है, वह कितनी प्रमाणिक है..
ऐसे कई साधक आए, उन्होंने कहा कि मैंने साधनायें तो बहुत सी की... मगर किस्मत का
द्वार बंद का बंद.....!
भला ऐसा कैसे हो सकता है ? इतनी सारी मेहनत आखिर कहाँ जाती है ! उसे समझने के लिए
हमें समझना होगा, की सदगुरुदेव जब भी किसी शिष्य को साधना पथ पर अग्रसर करते थे,
तो क्या आप जानते हैं, वह उन्हें कौन सी साधना करवाते थे..?
भाई, वो हमें नवग्रहों की साधना करने को कहते थे, जिसके बिना तो अगर साधना करें भी
तो सफलता के शिखर पर पहुँच पाएंगे ही, यह कहा ही नहीं जा सकता ! आप भले ही थोड़े
पैसे खर्च करके साधना सामग्री घर ले आएंगे, थोड़ा समय भी अपने दिन चर्या से निकाल
लेंगे, मगर अगर समय ही विपरीत चल रहा है, तो आप उसे शुरू भी नहीं कर सकेंगे. अगर
कर भी दिया तो कभी ऐसा होता है कि कोई मेहमान घर में आ गया, या आपको बाहर जाना पड़
गया कहीं काम के सिलसिले में, या अगर कुण्डली में धन भाव ही कमज़ोर है.. तो धन की
समस्या तो निश्चित अच्छे-अच्छों को ले डूबती है..... आप आर्थिक स्थिती से जूझेंगे,
या अपना काम देखेंगे, या साधना करेंगे ??
अगर हमें जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है, तो उसके लिए सिर्फ एक मात्र
सहारा साधना का मार्ग है, और जब तक नवग्रहों का साथ नहीं है, तब तक साधना में
सफलता से तो इतनी ही दूरी पर हैं आप जितनी स्वप्न और हकीकत के बीच की दूरी होती है
! तो क्या यह अनिवार्य है कि अब सारी साधनाओं को छोड़कर ग्रहों की साधना करने में
लग जायें, क्या इसका भी कोई उपाय नहीं होगा, सीधा सा, सरल सा... बिलकुल, उसका भी
उपाय हमारे पास है.... कि हम सीधे ही उस ग्रह से सम्बंधित रत्न धारण कर लें, इससे
हम बुरे ग्रहों के प्रभाव को कम कर सकते हैं और अच्छे ग्रहों के शुभ फल को कई गुणा
बढ़ा भी सकते हैं !
हम सबने सदगुरुदेव को देखा है कि वे अपनी अनामिका ऊँगली में हीरे की अँगूठी धारण
किये रहते थे, उनका मिथुन लग्न था और मिथुन लग्न में शुक्र सर्वाधिक कारक ग्रह
होता है, जिसका कारक रत्न हीरा होता है ! दोस्तों आप सोच सकते हैं की आखिर उन
अवतारी युगपुरुष को भला रत्नों की क्या जरुरत..... वह तो स्वयं अनंत सिद्धियों के
स्वामी थे ! उनके एक इशारे पर तो सारे देवी-देवता कार्य करने में लग जाते थे, फिर
उन्हें इन सबकी क्या आवश्यकता.. तो भाई, आपको समझना होगा की अवतारी पुरुष भी नवग्रहों
के नियमों से बंधे होते हैं, उन्हें भी इसका पालन करना ही होता है, जब तक उन्होंने
मनुष्य शरीरे धारण किया हुआ है ! मर्यादा पुरुषोत्तम राम को भी ग्रहों के कुप्रभाव
से जंगल-जंगल भटकना पड़ा, यह परेशानी आपके जीवन में नहीं आए इसीलिए मैंने आज इतना
सब-कुछ आप ही के लिए तो लिखा है !
अगर किसी व्यक्ति को शराब पीने की बुरी आदत है.. अगर कोई झुट्ठ बोलता है, गंदे काम करता है, या किसी स्त्री को उनका पति अगर दुर्व्यवहार करता है, आप उन्हें पुखराज पहनव दें, वह व्यक्ति ऐसा बदल जाता है, देखकर मालूम ही नहीं पड़ता क्या यह वही आदमी है !
कितने स्त्रियों की अगर शादी नहीं हो रही होती है, उन्हें अगर पुखराज पहना दिया
जाये, महीने दो महीने में निश्चित है कि शादी का योग बन ही जाता है, तो यह सब कैसे
हुआ ??
यह हुआ उस पुखराज रत्न हाँथ में धारण करने के प्रभाव से ! वह रत्न आपके उँगलियों
के मूल में उन रों छिद्रों में सूर्य के किरणों से आपके शरीर में अति शुख्म
पीली-पीली किरणें डालता है, इसका प्रभाव ये होता है कि हमारा सारा जीवन ही गुरुमय
हो जाता है. संक्चिप्त में अगर कहा जाये, तो अगर सारे जीवन को एक ही बार में
संभालना है, धन भाव को दृढ़ करना है, जीवन की लक्ष्य प्राप्ति के लिए पहला कदम
बढ़ाना है, तो सरलता से आपको गुरु रत्न पुखराज हर हाल में धारण करना चाहिए ! इसमें
यह भी सोचने की जरुरत नहीं होती की ज्योतिष क्या कहता है, कुण्डली में कौन से ग्रह
कैसे हैं, मैंने अभी आपसे कहा गुरु सर्वाधिक कारक ग्रह है, वह फायदा ही करेगा अगर
करेगा तो, चाहे आठवें घर का स्वामी हो अनिष्ट कभी नहीं करेगा...
और तब क्या करें जब अगर इसके लिए इतने पैसे पास में नहीं हों तो ?
तब आप येल्लो टोपाज़ नामक उपरत्न पर इस ग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा करवा के पहन सकते
हैं, जो की केवल कुछ हज़ार रूपों में आता है, आप अपने घर बैठे मन लें ! आप विश्वास
नहीं करेंगे कि इतना सस्ता सा उपरत्न, और धारण करने के कुछ ही दिनों में अपना असर
दिखाता है, सारा जीवन बदला-बदला सा लगता है, पहले की अपेक्षा आपके सारे काम अब
बिना रुकावट के हो जाते हैं, उसको पहनकर भी आपका कोई काम रुक जाता हो, ये तो मैं
मान ही नहीं सकता. आपने खुद सुना होगा किसी के मुँह से कि अरे ! उसके हाँथ में तो
पुखराज है ! यह उसने पहना था, और वह दिन था... और आज का दिन.... इतनी उन्नती....
लोग खुद इस बात को स्वीकार करते हैं, आप तो स्वयं अनुभव करेंगे ही !
सदगुरुदेव द्वारा लिखित पुस्तक “कुण्डली-दर्पण” में विभिन्न राशियों के कारक
ग्रह इस प्रकार से दिए हैं, यानि जो आपकी लग्न-राशी है, उस हिसाब से कौन स रत्न
आपको सबसे ज्यादा लाभ देगा, वह आप यहाँ देखकर समझ सकते हैं-
1. यदि मेष लग्न हो, तो कारक- बृहस्पति, सूर्य व मंगल | बृहस्पति इस कुण्डली में सर्वाधिक कारक ग्रह
माना गया है ! यानि आपको गुरु रत्न पुखराज या फिर येलो टोपाज़ पहनना बहुत ही शुभ फल
देगा !
2. यदि वृष लग्न हो, तो कारक- शनि इसमें सबसे अधिक कारक ग्रह होता है,
क्यूंकि वह नौवें और दसवें भाव का अधिपति होता है ! आपके लिए शनि रत्न नीलम
सर्वाधिक उपयुक्त है !
3. यदि मिथुन लग्न हो, तो कारक- शुक्र सर्वाधिक कारक ग्रह है ! शनि भी कारक
ग्रह माना गया है, अतः आप शुक्र रत्न असली हीरा या सफ़ेद पुखराज धारण कर सकते हैं !
सदगुरुदेव स्वयं हमेशा हीरा धारण करे रहते थे, उनकी लग्न राशी मिथुन थी !
4. यदि कर्क लग्न हो, तो कारक- मंगल सर्वाधिक कारक ग्रह है,
गुरु भी कारक ग्रह है !
5. सिंह लग्न हो, तो कारक- सूर्य और मंगल !
6. यदि कन्या लग्न हो, तो कारक- शनि सर्वाधिक कारक ग्रह है !
7. यदि तुला लग्न हो, तो कारक- शनि सर्वाधिक कारक ग्रह है
एवं बुद्ध तथा शुक्र भी कारक हैं !
8. यदि वृश्चिक लग्न हो, तो कारक- चन्द्र सर्वाधिक कारक ग्रह है !सूर्य और
गुरु भी कारक हैं !
9. यदि धनु लग्न हो, तो कारक- सूर्य और मंगल प्रबल कारक ग्रह हैं !
10. यदि मकर लग्न हो, तो कारक- इस कुण्डली में शुक्र सर्वाधिक कारक ग्रह
माना जाता है ! बुद्ध और शनि भी कारक ग्रह हैं !
11. यदि कुंभ लग्न हो, तो कारक- शुक्र सर्वाधिक कारक ग्रह है !
12. यदि मीन लग्न हो, तो कारक- मंगल और चन्द्र सर्वाधिक प्रबल कारक ग्रह हैं
!
और क्या कभी इस बात को आपने सोचा, कि जिस रत्न को आपने धारण किया हुआ है, क्या
उसमें उस ग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा हुई है ????
तो ज़रा मुझे कोई समझाना, कि जिस ग्रह देव को आपने हाँथ में पहना हुआ है, उसका
आवाहन आपने उस पत्थर में नहीं किया, आपने उन्हें वहां विराजने को नहीं कहा, उन्हें
स्थान दिया ही नहीं, तो वह रत्न रत्न कहलायेगा कैसे, वह तो एक पत्थर का टुकड़ा हुआ.
वह कभी कभार संयोग से आपको अच्छा फल दे जाता होगा, बस !
इसके लिए हमें वह अति दुर्लभ रत्न प्राण-प्रतिष्ठा विधि ज्ञात होनी चाहिए,
सदगुरुदेव द्वारा लिखित पुस्तक रत्न-ज्योतिष से मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ,
आपकी सुविधा के लिए-
“किसी भी ग्रह के रत्न में जब तक उस ग्रह
की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं की जाती वह रत्न व्यर्थ-सा होता है तथा उसके पहनने से कोई
प्रभाव उत्पन्न नहीं होता, क्यूंकि केवल पत्थर तो पत्थर ही है, अतः रत्न धारण करने
वाले को चाहिए कि शुभ मुहूर्त में यज्ञ के साथ प्राण-प्रतिष्ठा करवाके धारण करे |
सर्वप्रथम रत्न धारण करने वाला स्नान कर, पूर्व की तरफ मुँह कर काम, क्रोध, लोभादि
को छोड़ बैठ जावे एवं दाहिने हाँथ में जल, कुंकुम. अक्षत, दूर्वा, एवं दक्षिणा लेकर
संकल्प करे-
“ ॐ विष्णु विष्णु विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य
विष्णोराज्ञा प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणो द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह
कल्पे सप्तमे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति में कलियुगे कलिप्रथमचरणे भारतवर्षे
भरतखंडे जम्बू द्वीपे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मावर्तेक देशे (जगह का नाम)
क्षेत्रे, बौद्धावतारे, (साल की संख्या) संवत्सरे, (अमुक) नक्षत्रे, (अमुक)
राशिस्थिते सूर्य चन्द्र देवगुरो शेषेसु ग्रहेषु यथायथा स्थानस्थितेसु सत्सु एवं
ग्रह गुण विशेषण विशिष्टतायाम पुण्यतिथौ (अमुक) गोत्रो (अमुक) शर्माऽहं ममात्मन श्रुतिस्मृति
पुराणोक्त फल्वाप्त्ये ममकलत्रादिभिः सः सकलाधि व्यादि निरसन पूर्वक दीर्घायुष्य
बलपुष्टि नेरुज्यादि (अमुक) ग्रह सम्बन्धे (अमुक) रत्ने प्राण-प्रतिष्ठा सिध्यर्थ
करिष्ये |
इसके पश्चात हाँथ में जल अक्षत लेकर प्राण-प्रतिष्ठा मंत्र पढ़ें-
ततो जलेन प्रक्षाल्य प्राण-प्रतिष्ठा कुर्यात् || प्रतिमायाः कपलौ दक्षिण पाणिना
स्पष्टवा मन्त्राः पठनीयाः || अस्य श्री प्राण-प्रतिष्ठा मंत्रस्य विष्णुरुद्रौ
ऋषी ॠृग्यजुः सामानिच्छदांसि प्राणख्या देवता || ॐ आं बीजं ह्रीं शक्तिः क्रों
कीलकं यं रं वं शं षं सं हं सः एतः शक्तयः मूर्ति प्रतिष्ठापन विनियोगः || ॐ आं
ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं हं सः देवस्य प्राणाः इस प्राणाः पुरूच्चार्य
देवस्य सर्वेनिन्द्रयाणी इहः | पुनरुच्चार्य देवस्य वाङ् मनश्चक्षुः श्रोत्र
घ्राणानि इहागत्य सुखेन चिरं तिष्ठतु स्वाहा || प्राण-प्रतिष्ठा विधाय ध्यायेत ||
ववं प्राण-प्रतिष्ठा कृत्वा पंचोपचारै पूजयेत् ||"
इस प्रकार उस विधि-विधान से रत्न की प्राण-प्रतिष्ठा कर मुद्रिका का पूजन करने के पश्चात उसे धारण करें |”
इस प्रकार उस विधि-विधान से रत्न की प्राण-प्रतिष्ठा कर मुद्रिका का पूजन करने के पश्चात उसे धारण करें |”
(अगली पोस्ट में.... लक्ष्मी को अपने घर में बुलाने के लिए अचूक
प्रयोग- श्री सूक्त समबन्धित)
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